शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
रविवारीय अंक में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-
जीवन दर्शन और संदेशों से समाहित डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी मनमोहक दोहावली-
उच्चारण: दोहे "आता खूब बहाव" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जब आते हैं सुमन में, सरल-तरल कुछ भाव।
दिल की नदिया में तभी, आता खूब बहाव।1।
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तन-मन को गद-गद करें, अनुशंसा के भाव।
तारीफों के लेप से, भर जाते हैं घाव।2।
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ज़िंदगी की वास्तविकताओं से रू-ब-रू होते हुए सकारात्मकता की डोर थामे रहने का सार्थक संदेश देती आदरणीय शांतनु सान्याल जी की ख़ूबसूरत रचना का आनन्द लीजिए-
हम खिलें हर हाल में चाहे जितना भी हो
आसमां अब्र आलूद, राह तकती
है बहारें तेरी इक नज़र के
लिए, ढूंढ़ती है नूर
ए महताब
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ऋतु परिवर्तन में प्रकृति का मनमोहक चित्रण करता आदरणीया कुसुम कोठारी जी का गीत आपको नए सफ़र पर ले जाएगा-
लो कुहासा भग गया अब
धूप ने आसन बिछाया
ऐंद्रजालिक ओस ओझल
कौन रचता रम्य माया
पर्वतों ने गीत गाएये पवन संगीत देती।।
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आदरणीय ओंकार जी की चिंतनीय रचना में रिश्तों का कटु यथार्थ उमड़ पड़ा है -
बहुत कमज़ोर है
यह रिश्तों की चादर,
यहाँ से सिलो,
तो वहाँ से फट जाती है,
पर चाहूँ भी,
तो बदल नहीं सकता इसे,
बाज़ार में मिलती जो नहीं है।
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आदरणीया अनीता सैनी 'दीप्ति' जी की रचना में दार्शनिक परिप्रेक्ष्य मरुस्थल की अथाह पीड़ा को उद्घाटित करता है-
गूँगी गुड़िया : तथागत
उसने एकांतवास का
मोह भी त्याग दिया है
त्याग दिया है
बरगद की छाँव में
आत्मलीन होने के विचार को
उस दिन वह मरुस्थल से
मिलने का वादा निभाएगा
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आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' जी की रचना में नश्वर जीवन की समझ और मुक्ति का व्यापक संदेश समाहित है-
ये तेरा है ये मेरा है
लड़ते रहे बनी ना बात,
खून जिस्म में कमा के लाते
फिर भी सुनते सौ सौ बात
मुंह फेरे सब अपनी गाते
अपनी ढपली अपना राग,
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आदरणीया जिज्ञासा सिंह जी की रचना में भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही कमाल करते हुए समर्पण के नए आयाम बिखेर रहे हैं-
साँझ ढले बैठती तीर मैं,
निज मन के अँघड़।
श्वाँसों की सौ आँख बचाकर,
तुमको लेती पढ़॥
रंग-बिरंगे डोरों पर लिख,
तिरते भाव सजाती॥
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भारतरत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की प्रतिभा का लोहा विश्वभर ने माना। समतामूलक समाज के निर्माण हेतु संविधान की रचना में उनका अमूल्य योगदान अविस्मरणीय है-
दलित वर्ग के प्रतिनिधि और पुरोधा थे डाॅ. भीमराव रामजी अंबेडकर -
डाॅ. आम्बेडकर दलितों के मसीहा के साथ ही ऐतिहासिक महापुरुष भी हैं। उन्होंने अपने आदर्शों और सिद्धांतों के लिए आजीवन संघर्ष किया जिसका सुखद परिणाम आज हम दलितों में आई हुई जागृति अथवा नवचेतना के रूप में देख रहे हैं। वे न केवल दलित वर्ग के प्रतिनिधि और पुरोधा थे, अपितु अखिल मानव समाज के शुभचिंतक महामानव थे। भारतीय संविधान के निर्माण में उनका योगदान सर्वोपरि है। उन्हें जब संविधान लेखन समिति के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई तो उन्होंने कहा- "राष्ट्र ने एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी मुझे सौंपी है। अपनी पूरी शक्ति केन्द्रीभूत कर मुझे यह काम करना चाहिए।" इस दायित्व को निभाने के लिए उनके अथक परिश्रम को लेखन समिति के एक वरिष्ठ सदस्य श्री टी.टी.कृष्णामाचारी ने रेखांकित करते हुए कहा कि-"लेखन समिति के सात सदस्य थे, किन्तु संविधान तैयार करने की सारी जिम्मेदारी अकेले आम्बेडकर जी को ही संभालनी पड़ी। उन्होंने जिस पद्धति और परिश्रम से काम किया, उस कारण वे सभागृह के आदर के पात्र हैं। राष्ट्र उनका सदैव ऋणी रहेगा।"
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
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पठनीय लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु धन्यवाद एवं आभार आदरणीय चर्चाकारः रवीन्द्र सिंह यादव जी !
सुप्रभात! चर्चा मंच का एक और पठनीय अंक, शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंपठनीय प्रस्तुति। मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण शीर्षक पंक्तियों के साथ शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
सभी रचनाकारों हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को चर्चा पर रखने के लिए हृदय से आभार।
आपकी सूक्ष्म समीक्षा में रचना का सार विस्तारित हो गया। मेरी रचना को मान देने के लिए आभार आपका। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
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