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गुरुवार, अप्रैल 06, 2023

'बरकत'(चर्चा अंक 4653)

सादर अभिवादन। 
गुरुवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।


ट्रेन की खिड़की से बाहर वह देख रहा था-
खेत खलिहान और खिली हुई सरसों
मैं देख रही थी-
 खिड़की के काँच पर उभरता उसका अक्स
उसने कहा- "यहाँ कितनी बरकत है"
मैंने कहा- "बहुत"

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

उच्चारण: दोहे "बलशाली-हनुमान" 

महासिन्धु को लाँघकर, नष्ट किये वन-बाग।
असुरों को आहत किया, लंका मे दी आग।।
--
कभी न टाला राम का, था जिसने आदेश।
सीता माता को दिया, रघुवर का सन्देश।।
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ट्रेन की खिड़की से बाहर वह देख रहा था-
खेत खलिहान और खिली हुई सरसों
मैं देख रही थी-
 खिड़की के काँच पर उभरता उसका अक्स
उसने कहा- "यहाँ कितनी बरकत है"
मैंने कहा- "बहुत"
--
मुझे लगता था कि 
मेरे पास है समाधान
दुनियां भर की  समस्याओं का 
कि अगर  मैं किसी देश के राष्ट्रपति से मिल  लूं 
तो रोक लूंगा उसे अपने पड़ोसी राष्ट्र पर बम गिराने से । 
--
ह्रदय का असहज स्पंदन 
फूलों की गमक-सा 
बिखर गया है
पहाड़ कटने का क्रूर संगीत सुन 
बदन सिहर गया है  
--
कुछ भी क़ायम कहाँ, ग़ैर यक़ीनी सूरतहाल, 
न फ़लक अपना, न ज़मीं अपनी, न ही
कोई बानफ़स चाहने वाला, बस 
दो पल के मरासिम, फिर 
तुम कहाँ और हम 
कहाँ,
--
मैने देखे;
सिर के कटे हुए कुछ बाल  उसके बच्चे के,
उस पल बर्फ फिर बरसी
आसमां से नहीं आंखों से 
--
बंदूक से छुटी गोली का
तलवार को म्यान में डालने का
निरदोष पर पड़े थप्पड़ का
किसी नारी के न्याय के पुकार का
इन आवाजों को गायब करने
का यही समय होता है
--
अपनी विशाल प्रतिमाओं को ही
समझ न बैठूं असली
खिसक न जाय जमीन कहीं पैरों के नीचे की
उड़ने न लगूं मैं कहीं हवा में
इसीलिये सम्मानों से
बचने की कोशिश करता हूं
--
वो लोगों के दिल मिलाता है खुशियां बांटता है !
ये सुनकर सब हंस पड़े के टिंडर और शादी डॉट कॉम 
के होते  हुए आज के युग में ये सब?
--

वहि रे दोकनियाँ म रंग बिकत है 

लाल औ पीला मिलय गुलाल फागुन मा।


वहि रे दोकनियाँ म चुनरी बिकत है

रंगबिरंगी चटख गोटेदार फागुन मा।

--

आहान: “जन्मभूमि ॥ हाइबन ॥

 “अरी बावली ये तो पढ़ने वाले बच्चों का ठाँव है । कितनी दूर में फैली कितनी बड़ी कॉलेज कि एक गाँव बस जाए  फिर उतनी ही बड़ी सीरी और मूजिमघर (म्यूज़ियम) । मूजिमघर  तो दूर दिसावर से आए लोग भी देखने आते हैं । कितना बड़ा हॉस्पिटल है यहाँ आस-पास के गाँवों के लोग इलाज की ख़ातिर यही तो आते हैं । इन सब से नाम बड़ा है यहाँ का .., मैं ठीक  कह रही हूँ ना बेटी !”
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बात उन दिनों की है जब मुझे नया-नया आत्म ज्ञान मिला कि अन्य नौकरियों की तरह शोध और शिक्षा अब शौक़ या हॉबी न रह कर नौकरी बन चुके हैं. जैसे की बहुत से ज्ञानीजन बता चुके हैं कि इन्टर के बाद सबसे इन्टेलीजेन्ट लोग इंजीनियरी या डॉक्टरी में प्रवेश ले लेते हैं. उसके बाद वाले आईएएस या एमबीए में सेलेक्ट हो जाते हैं. जिनके पास सामाजिक गतिविधियों के कारण पढने-लिखने का समय कम होता है, वो नेता बन सकते हैं और उनके नीचे आइएएस और इंजीनियर काम करते हैं. 
--

आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति।
    हनुमान जयन्ती की शुभकामनाएँ।
    आपका बहुत-बहुत आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति।
    हनुमान जयन्ती की शुभकामनाएँ।
    आपका बहुत-बहुत आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. विविधताओं से परिपूर्ण बहुत सुन्दर सूत्रों का संयोजन । बेहतरीन सूत्रों से सजी प्रस्तुति में “जन्मभूमि” को मान देने के लिए आपका सादर आभार ।सब को हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर और सारगर्भित रचनाओं का संकलन।
    मेरे लोकगीत को शामिल करने के लिए आभार और अभिनंदन। सभी रचनाकारों को बधाई💐💐

    जवाब देंहटाएं
  5. सराहनीय रचनाओं के सूत्र देती सुंदर प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  6. Bahut sundar, anek rachanaon ka ye sankalan behad vismarniya hai. Meri kavita ko yahan shamil karne ke liye aabhar. Sabhi rachanakaron ko badhai, dhanyavaad!

    जवाब देंहटाएं

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