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गुरुवार, अप्रैल 20, 2023

'राहें ही प्रतिकूल हो गईं, सोपानों को चढ़ने में' (चर्चा अंक 4657)

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।  

सादर अभिवादन l 

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं आज की चंद चुनिंदा रचनाएँ-

 --

उच्चारण: ग़ज़ल "पाषाणों को गढ़ने में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 
जाने कैसे भूल हो गई, अन्तर्मन को पढ़ने में।
कल्पनाएँ निर्मूल हो गईं, पाषाणों को गढ़ने में।
--
हार नहीं मानी मैंने, संघर्षों के तूफानों से,
राहें ही प्रतिकूल हो गईं, सोपानों को चढ़ने में।
--
लौटती हैं शाम ढले, यादों की कश्तियाँ,
जाते जाते गोधूलि को मेरा प्रीत लिखना,

तुलसी तले, माटी का जब प्रदीप जले,
हथेली पर काजल से, मनमीत लिखना, 
--

सुनो अभिनेता,

तुम भी चले जाओ,

किसी ने ताली नहीं बजाई,

इसका यह मतलब नहीं है 

कि तुम्हारा अभिनय बुरा था. 

--

गूँगी गुड़िया : बोधि वृक्ष 

 बोधि वृक्ष
बुद्ध में लीन हो चुका है एकदम लीन 
उसने समझा 
समय की भट्टी में
मनोविकारों के साथ 
धीरे-धीरे
जलने में ही परमानंद है
--
यादों के साथ जीना
और सीने पर 
दुनियादारी का
पत्थर रख कर 
आंसुओं को पीना
आसान नहीं है,  मित्र!
--
कभी निकल जाऊं में किसी ऐसे सफर पर..
जिसकी राहो का मुझे पता ना हो...
कही बैठ जाऊं किसी अनजाने के साथ,
कह दूं सारी मन की बाते...
जो मुझे जानता ना हो...
--

जब मैंने तुम्हें पुकारा

तुमने मुझे नजर अंदाज किया

यह तक भूले मैं भी तो लाइन में खड़ी हूँ

तुमसे भेट के  लिए |

--

"सोच का सृजन": खट्टे अंगूर 

"विचारणीय है, पूछ लूँ कि ऐसा क्या विशेष सृजन हो गया था जो बड़ा - बड़ा अवार्ड मिल गया ?"

"पूछ लो! रोका किसने है... ?"

"चुप रह जाना बेहतर लगा यह सोचकर कि अंत में पता क्या चलेगा ?"

"सच बोलने का हिम्मत होगा ही.."

"जुगाड़ वाले सच बोलेंगे क्या..!"

--

वाणभट्ट: काजी जी क्यूँ दुबले 

एक जमाना था जब काजी शब्द सामने आते ही किसी दुबले-पतले व्यक्ति की इमेज आँखों के सामने आ जाया करती थी. क्योंकि एक मुहावरा होता था - काजी जी क्यूँ दुबले, शहर के अन्देशे. उसका आशय ये हुआ करता था कि शहर भर की चिन्ता में काजी जी दुबले होते रहते हैं. जब से हिन्दुस्तान में ओबेसिटी और मोटापे की बात शुरू हुयी है, 

--

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचनाएं। मेरी रचना को रखने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. पठनीय लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति।
    मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु धन्यवाद एवं आभार आदरणीय चर्चाकारः रवीन्द्र सिंह यादव जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर रचनाओं के लिंक मिले हैं। हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति । कई अच्छी रचनाओं के लिंक मिले।
    निवेदन है कि विगत कई महीनों से मेरे ब्लॉग पोस्ट पर ब्लागर साथियों के कमेंट नहीं आ रहे हैं। चर्चा मंच पर भी मेरे ब्लॉग के लिंक नहीं आ रहे हैं। कृपया अपना स्नेह बनाए रखने का कष्ट करें

    जवाब देंहटाएं

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