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गुरुवार, अप्रैल 27, 2023

"बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक 4659)

 मित्रों!

अप्रैल के अन्तिम गुरुवार की चर्चा में 

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दोहे "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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हित जिससे होता जुड़ा, वो होता साहित्य।
सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य।।
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जीवनपथ पर ओ मनुज, चलना सीधी चाल।
जीवनभर टिकता नहीं, फोकट का धन-माल।।
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उच्चारण 

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राष्ट्रीय एकता का बड़ा लक्ष्य पूरा हो रहा है 

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी

 

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हिटमैंस गर्लफ्रेंड - कामिनी कुसुम | सृष्टि प्रकाशन

संस्करण विवरण

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 42 | प्रकाशक: सृष्टि प्रकाशन 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

हिटमैंस गर्लफ्रेंड - कामिनी कुसुम | सृष्टि प्रकाशन | समीक्षा

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मेरा सफल होने का राज

                                                 जब  कदम उठाए थे

विशिष्ट कार्य करने के लिए 

कभी जल्दबाजी का नाम

 ना था मेरे पास |  

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चंदन वंदन

मंगल सुवासित प्रभात ।
पुलकित हुआ पात पात ।
फूलों का सुगंधित हास ।
पंछियों का सुरीला आलाप ।
समय जल सम प्रवाहित 
लहर लहर पल पल निरंतर । 

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खुसर-पुसुर

किताबों से सजी अलमारी से खुसर -पुसुर की आवाज़ आ रही थी ......।
पहली...आज तो क्या बात है !दरवाजा खुला । सुबह-सुबह दरवाजे की चरमराहट से मेरी आँख ही खुल गई लगता है मानो सालों से सो रहे  हैं ।
दूसरी ...और क्या एक साल से तो बंद है दरवाजा ,कोई हमें पढता ही नहीं ....
  पहली ...अरे हाँ आज पुस्तक दिवस है न ..शायद आज हम पर जमी धूल झाड कर ,हमारे साथ फोटो लेगें और फिर सोशल मीडिया पर हेकड़ी जमाएगें कि देखो हमें पुस्तकों का कितना शौक है ।
   शुभा मेहता  

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“समर्पण”

वर्जनाओं की

 देहरी से..


कब बँध कर 

रहती आई हैं

वे सब

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किताबी घर

पुस्तक दिवस पर विशेष 

निकली ईंट
हिलेगी बुनियाद
किताबी घर
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छोड़ेंगे नहीं
खिड़की कपाट भी
पुस्तक चोर

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सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे

stair night

मौसम बदलने लगा धीरे-धीरे

जगा आँख मलने लगा धीरे-धीरे ।

जमाना जो आगे बहुत दूर निकला

रुका , साथ चलने लगा धीरे - धीरे। 

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सीक्रेट फ़ाइल 

सूरज के तेवर के साथ ट्रैफ़िक की 

आवाजाही भी बढ़ती जा रही थी, 

इंतज़ार में आँखें स्कूल-बस ताक रही थीं। 

अपनेपन की तलाश में प्रतिदिन की तरह निधि, 

प्रभा के समीप आकर खड़ी हो गई और बोली- 

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मुरादाबाद की साहित्यकार 

(वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) 

वैशाली रस्तोगी के 101 दोहे 

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साँझ 

उतर रही है साँझ 

क्षितिज से
गालों पे 

फिर तिरे  दामन पे

पाँव रख 

हौले से 

बिखर गई गुलशन में

रक्स-ए-बहाराँ बन के….

                 - उषा किरण 🌸🍃🌱 

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मियाँ ! शायरी ख़ुद असरदार होगी

 अस्वस्थ्य होने के कारण काफ़ी दिन से 
कोई पोस्ट साझा नहीं कर सका। 
आज एक पुरानी ग़ज़ल में कई संशोधन करके 
उसे नया रूप दिया है। 
आपकी प्रतिक्रिया हेतु 
यहां प्रस्तुत कर रहा हूं
ग़ज़ल--- ओंकार सिंह विवेक
©️
ज़रा  भी   अगर  फ़िक्र  में  धार  होगी,
मियाँ!शायरी   ख़ुद   असरदार   होगी।

सफ़र  का  सभी   लुत्फ़  जाता  रहेगा,
रह-ए-ज़िंदगी   ग़र   न   दुश्वार   होगी। 

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चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था …

सैण्डल जिस-पल नीली साड़ी की चुन्नट पे अटका था.
चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था.


बीती यादों की बुग्नी में जाने कितने लम्हे थे,
पर ये मन गोरी छलकत गगरी पन-घट पे अटका था. 
दिगम्बर नासवा

-- 

देह प्राण के अतिक्रम 

सूखे पत्तों का इतिहास कोई नहीं लिखता,
फूलों पर लिख जाते हैं लोग महा गाथिका,

शाखों के धुव्र छुपाए रखते हैं पत्तों के भ्रूण,
खिलते हैं पुष्प चाहे गहनतम रहे नीहारिका,

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''आज तेईस अप्रैल है। दो दिन बीत चुके हैं , तुम्हें गये हुए। सोच भी नहीं पा रहा हूँ, कि यथार्थ में ऐसा भी कुछ हुआ है। शरीर ढीला पड़ा हुआ है। अपने कमरे में बैठा हुआ हूँ, उसी कुर्सी पर। जब तुम छुप छुप कर पीछें खड़े होकर मुझे लिखा हुआ देखा करती थीं। अचानक तुम्हारे ख़ुश्बू से कमरा फिर भर गया है। तुम्हारा स्पर्श मेरे पीठ से होते हुए मेरे गर्दन को जकड रहा है और मुझे यह जकड़न ... आह, मैं बैचैन हो रहा हूँ , नोतून बोउ ठान ''  

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किस्सा - सक जैर अर विस्वास वैद

     

किस्सा तबारी छ जब चारधामा वास्ता क्वी मोटर रोड़ नि छै। जात्री रिऋीकेस बटे पैदल जान्दा छाया। गौचर बटे मील द्वी मील अग्ने चटवापीपळ गौं पड़दू। तबारी जात्रा टेम फर एक दिन तीन साधु बद्रीनाथै जात्रा पर छौ बल। ज्यौठा मैने बात तड़तड़ौ घाम। जोग्यूँ तैं तीस छै लगीं। जब जोगी चटवापीपळ मा पौंछी त बाटा मा पीपळा डाळा छैल मा थौ खाणू बैठ्यांतबारी तौंकि नजर बाटा ऐथर कै मवसी साळी अग्ने बंधी घळमळकार बाळैण भैंस पर लगिन। अब तौन मिस्कोट बणेंन कि यार तै घौर मु ठंडी टपटपी छांस मिल जाली। अर जोगी पौंछग्यां मथि खौळ मा। धै लगान्दी बौड़ी भैर ऐन अर जोग्यूँ तैं सेवा सौंळी करि। स्वामी जी बोला मि क्या सेवा पाणी कैर सकदी आपक। जोगी जगम अपणी डिमांड सि पैली मनखी तैं पुळयाण पटाण नि छौड़दा। मायी तू बड़ि भारी भग्यान जसीली मनख्याण छन। तेरी साळी सदानी लेणी लवाण गाजियूँन भौरिं रयां। नाती नतेण पूत संतान को भलौ सुख लिख्यूँ तेरा भाग मा। 

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डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी

मुस्कुराता हुआ फूल और मुस्कुराता चेहरा किसे नहीं भाता? फूलों की खूबसूरती और खुशबू हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इस दुनिया में कई ऐसे फूल भी जिसकी अपनी अलग अलग है। मिलते हैं फूलों के अजीबो गरीब दुनिया के एक और फूल से, जिसका नाम है "डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी"
डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी || Dendrophylax Lindenii ||

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आज के् लिए बस इतना ही...!

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10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सूत्रों से सजी सार्थक चर्चा ! मेरी ब्लॉग पोस्ट 'किताबी घर' को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  2. सभी रचनाएं बहुत सुंदर हैं। अलग अलग लिंकों को जोड़कर बनाई गई लाजवाब रचना। मेरे ब्लॉग पोस्ट को इस चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।

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  3. विविधता भरे उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति । मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका ।

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  4. बहुत सुन्दर सूत्र संयोजन । मेरे सृजन को चर्चा में सम्मिलित हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सहित आभार ।

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  5. सुंदर रचनाओं की चर्चा । बेहतरीन प्रस्तुति।

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  6. बहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

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  7. उम्दा अंक आज का |मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्य वाद |

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