फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

रविवार, अप्रैल 09, 2023

"हमारा वैदिक गणित" (चर्चा अंक 4654)

 सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है ,

(शीर्षक आदरणीय गगन शर्मा जी की रचना से )

वक़्त बहुत तेजी से गुजर रहा है और हम ठहर से गए है 

खैर,

बिना किसी भूमिका के चलते है आज की रचनाओं की ओर....

-----------------------

गीत "गुलमोहर का रूप सबको भा रहा"

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

हो गया मौसम गरम,

सूरज अनल बरसा रहा।

गुलमोहर के पादपों का,

रूप सबको भा रहा।।

-------

 हमारा वैदिक गणित

03      0 8     (3+0)        38

06      1 6     (6+1)        76

09      2 4     (9+2)     114

12      3 2    (12+3)    152

15      4 0    (15+4)    190

18      4 8    (18+4)    228

21      5 6    (21+5)    266

24      6 4    (24+6)    304

27      7 2    (27+7)    342

30      8 0    (30+8)    380

यह तो लंबे समय से ज्ञात है कि भारतीय गणित की समृद्धि शून्य की खोज से भी आगे तक फैली हुई है। उसी समृद्ध खजाने की एक कड़ी है वैदिक गणित, एक अद्भुत, चमत्कारी एवं क्रान्तिकारी ग्रन्थ ! जिसमें अथर्ववेद के परिशिष्ट के एक हिस्से में उल्लेखित 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्रों के सहारे शीघ्र गणना करने की अद्भुत व नितांत अलग सी विधियां बहुत ही सरल ढंग से सिखाई गई हैं ! इस ग्रंथ की यह विशेषता है कि यह किसी भी व्यक्ति की सरल और जटिल दोनों प्रकार की गणितीय समस्याओं को तेजी से सुलझाने में मदद करता है। यह कठिन अवधारणाओं को याद रखने के बोझ को भी कम करता है। 

------------------

है सुन्दर उपहार ज़िंदगी !

है  सुन्दर  उपहार ज़िंदगी

सुख-दुख का भण्डार ज़िंदगी ।


तेरा- मेरा प्यार ज़िंदगी 

मीठी- सी तकरार ज़िंदगी ।


खो बैठे धन अमर-प्रेम का 

तब तो केवल हार ज़िंदगी ।

------------------

मुखौटे”

बड़ा कठिन है 

‘सब ठीक है’ का

नाटक करना


अनजान होना

जान कर..


व्यथा ढकने के लिए 

मुखौटे पहने

बीते जा रहा है वक़्त 

------------------

लो ! मैं तो फिर वहीं आ गयी

"क्या होगा इसका ? बस खाना खेलना और सोना । इसके अलावा और भी बहुत कुछ है जीवन में बेटा !  कम से कम पढ़ाई-लिखाई तो कर ले । आजकल कलम का जमाना है । चल बाकी कुछ काम-काज नहीं भी सीखती तो कलम चलाना तो सीख !  बिना पढ़े -लिखे क्या करेंगी इस दुनिया में, बता ?... पढेगी-लिखेगी तभी तो सीखेगी दुनियादारी" !-------------------श्रम का मूल्य

शून्य रुप में पड़ी थी मिट्टी

सबकी ठोकरें खाती थी

मन मसोस कर रहती थी

बिना लक्ष्य के जीती थी.

एक कुम्हार ने आकर श्रम से 

मिट्टी को खोदा और गूंथा धा

---------------

मन - छाया

छायाओं से लड़कर कोई 

जीत सका है भला आजतक 

सारी कश्मकश 

छायाएँ ही तो हैं 

उनके परिणामों से बंधे 

हम जन्म-जन्म गँवा देते हैं 

-------------------

पत्तियों सी ज़िन्दगी ...

कल मेरी बेटी ने विदेश से लौटते वक्त

मुझसे पूछा..माँ आपके लिए क्या लाऊँ तौहफ़ें में

मैंने कहा बस दो चार

मेपल ट्री की पत्तियाँ ले आना 

चाहे सूखी ही क्यों  हो।

ये ज़िंदगी की हकीकत का आईना हैं।

सूखी पत्तियाँ अच्छी लगती हैं।

सच जीवन का आपके सामने परोस देती हैं।

----------------

अनुभव जीवन के …

ज़िन्दगी वक़्त की रफ़्तार के साथ निरंतर चलती है पर कई बार कुछ ऐसे लम्हे आते हैं जो समय तो नहीं किंतु आपको रोक लेते हैं … मेरे जीवन में भी विगत कुछ हफ़्ते ऐसे बीते जिनकी चर्चा आप सब के साथ करना चाहता हूँ … विशेष कर उनके साथ जो हमारे जैसे अधेड़ हैं … (वैसे तो किसी भी आयु में ये हो सकता है) और इस बात पर ध्यान दे सकते हैं …
-------------------

बिना दाल भिगोये और बिना चाशनी के बनाये मूंग दाल लड्डू

दोस्तो, लड्डू तो आपने कई तरह बनाए और खाए होंगे लेकिन एक बार मूंग दाल के लड्डू इस तरीके से बनाकर देखिए...सभी को बहुत पसंद आयेंगे। तो आइए बनाते है बिना दाल भिगोये और बिना चाशनी के मूंग दाल लड्डू... 
-----------------------आज का सफर यही तक आपका दिन मंगलमय हो कामिनी सिन्हा 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर चर्चा। सभी लिंक्स शानदार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति।
    --
    आपका बहुत-बहुत आभार @कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. विविधताओं से परिपूर्ण सुन्दर सूत्रों से सजी प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत आभार मेरे अनुभव की चर्चा करने के लिए …

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा एवं पठनीय लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति।
    मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर, रोचक रचनाओं से सज्जित अंक। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. सराहनीय रचनाओं का सुंदर संकलन, ‘मन पाए विश्राम जहाँ’ को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी !

    जवाब देंहटाएं
  8. सराहनीय रचनाओं का सुंदर संकलन, ‘मन पाए विश्राम जहाँ’ को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी !

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन प्रस्तुति।
    निवेदन है कि विगत कई महीनों से मेरे ब्लॉग पोस्ट पर ब्लागर साथियों के कमेंट नहीं आ रहे हैं। चर्चा मंच पर भी मेरे ब्लॉग के लिंक नहीं आ रहे हैं। कृपया अपना स्नेह बनाए रखने का कष्ट करें

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।