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रविवार, मार्च 05, 2017

"खिलते हैं फूल रेगिस्तान में" (चर्चा अंक-2601)

मित्रों 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
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यह चर्चा मेरी भूलवश या ब्लॉगर की 
गड़बड़ी से कल भी प्रकाशित हो गयी थी। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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दोहे  

"5 मार्च मेरे पौत्र प्रांजल का जन्मदिन" 

मना रहे थे लोग जब, होली का त्यौहार।
पौत्र रत्न के रूप में, मुझे मिला उपहार।।
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जन्मदिवस पर पौत्र को, देता हूँ आशीष।
पढ़-लिखकर बन जाइए, वाणी के वागीश...
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एक किरण आशा की 

Akanksha पर Asha Saxena 
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ये मिजाज़ है वक़्त का 

अपने गम को खुद सहो, खुशियाँ देना बाँट 
अर्पित करते फूल जब, कंटक देते छाँट 
ये मिजाज़ है वक़्त का... 
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ग़ज़ल 

बेवफा रिश्ते निभाने आ गया  
आज मुझको आजमाने आ गया... 
कालीपद "प्रसाद" 
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----- ॥ रंग -धूरि ॥ ----- 

उरियो नहि सेंदुरी ऐ री रंग धूरि 
कुञ्ज गलिअ कर कुसुम कलिअ यहु 
अजहूँ न पंखि अपूरि... 
NEET-NEET पर Neetu Singhal 
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और वह शांत हो गये... 

आनन्द वर्धन ओझा 
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जन्म दिन का जश्न न मनने की खुशी 

मुकेश इस समय मेरे सामने होता तो शाल-श्रीफल से उसे सम्मानित कर देता। मेरी ससुराल, इन्दौर-उज्जैन के बीच, सावेर में है। मुकेश मेरा सबसे छोटा साला है। शासकीय विद्यालय में अध्यापक है। रहता तो सावेर में है किन्तु इन्दौर में भी मकान बना लिया है..
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 
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मनमर्जी -  

लघुकथा 

मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु' 
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अनाथ – सनाथ 

“दादी, आप मुझे छोड़ के मत जाओ ! पापा मुझे होस्टल भेज देंगे !” आठ साल की नन्ही दिशा दादी से लिपट कर बेतहाशा रोये जा रही थी ! दादी का कलेजा चाक हुआ जा रहा था लेकिन भरे मन से इंदौर वापिस जाने के लिए वो धीरे-धीरे अपना सामान समेट रही थीं ! जब स्थिति अपने नियंत्रण में ही न हो तो रुकने से फ़ायदा भी क्या ! दिशा को अपने अंक में समेटते हुए दादी उसे समझा रही थीं, “ऐसे रोते नहीं बेटा ! होस्टल में तुम्हें बहुत सारे दोस्त मिल जायेंगे ! यहाँ तो तुम बिलकुल अकेली हो जाती हो पापा के ऑफिस जाने बाद ! वहाँ तुम्हारा खूब मन लग जाएगा ! फिर तो तुम दादी को भी भूल जाओगी ! है ना... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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बलम तुम निकले पानी के बोल्ला। 

सिपहिया के भेसे में ठोल्ला 
बलम तुम निकले पानी के बोल्ला। 
छागल लियावे के बातें कहे थे 
हमका सजावे के बातें कहे थे 
पहिनाए दिहे भंईसी के चोल्ला 
बलम तुम निकले पानी के बोल्ला... 
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PAWAN VIJAY 
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अब शराफत का जमाना नहीं रहा 

किस्मत कुछ ऐसी रही कि 
जिस जमाने में हम पैदा हुए, 
शराफत और इमानदारी 
इस दुनिया से विदा हो चुके थे. 
ऐसा हम नहीं कह रहे हैं 
हमारे शहर भर के बुजुर्ग बताया करते थे. 
जिससे सुनो बस यही सुनते थे कि.. 
अब शराफत का जमाना नहीं रहा... 
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तू नहीं होता है तो कौन वहाँ होता है 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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चाहत ... 

कहाँ खिलते हैं फूल रेगिस्तान में ...  
हालांकि पेड़ हैं जो जीते हैं  
बरसों बरसों नमी की इंतज़ार में ... 
Digamber Naswa 
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भली करेंगे राम, भाग्य की चाभी थामे- 

ताले की दो कुंजिका, कर्म भाग्य दो नाम। 
कर्म कुंजिका तू लगा, भली करेंगे राम... 
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फागुन आते ही 

Akanksha पर Asha Saxena 
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15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । प्राँजल को जन्मदिन की शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर सूत्र ... आभार मुझे शामिल
    करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  3. जन्मदिवस की प्रांजल को हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनायें ! बहुत सुन्दर एवं पठनीय सामग्री से सुसज्जित विस्तृत चर्चा ! मेरी लघुकथा 'अनाथ - सनाथ' को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ..

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर और रोचक चर्चा..आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरे ब्लाग पोस्ट को शामिल करने के लिए आदरणीय शास्त्री जी का हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. उम्दा चर्चा.. . मेरी दो-दो रचनाए शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी। प्रांजल को जन्मदिन की बहुत सारी शुभकामनाएं...

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर व्यवस्थित चर्चा! प्राँजल को जन्मदिन पर ढेरों शुभाशीष !
    मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर चर्चा मंच...।
    वाह !!
    http://eknayisochblog.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  10. उम्दा चर्चा |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  11. जन्मदिवस की प्रांजल को हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनायें ! बहुत सुन्दर एवं पठनीय सामग्री से सुसज्जित विस्तृत चर्चा धन्यवाद !!

    जवाब देंहटाएं
  12. सभी लिंक्स बहुत अच्छे लगे | अच्छी चर्चा

    जवाब देंहटाएं

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