मित्रों
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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एक किताब की तलाश
किताबों की दुनिया में शायद ’वेबकूफ इन्सान’ एक ऐसा विषय है, जिस पर सबसे कम लिखा गया होगा. एक अप्रेल को मन में कोतूहल का जागना स्वभाविक है कि आखिर क्या वजह होगी कि ज्ञानी लेखकों ने इस विषय पर अपनी कलम क्यूँ नहीं चलायी? जब कोई उत्साहजनक उत्तर न मिला तब सोचा की खुद ही इस विषय लिख कर देखते हैं. लिखना शुरु भी किया. एक दो पन्ने लिख भी दिये. फिर एकाएक लगा अरे ये क्या, यह तो मैं अपनी आत्मकथा याने आटोबायोग्राफी लिख रहा हूँ. घबराहट में तुरंत लेखन स्थगित कर दिया. ये भी भला कोई उम्र है आटोबायोग्राफी लिखने की? अभी तो कितना कुछ करना बाकी है, कितना कुछ लिखना बाकी है...
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मीन मेख
आजाद देश के आजाद कलमकार लोग कोई भी,कहीं भी, किसी भी मुद्दे पर मीन मेख निकालते रहते हैं; अब उत्तर प्रदेश की नई योगी सरकार के कृषक-ऋण माफी के मामले को ही लीजिये आलोचक कह रहे हैं कि “ये वोटों पर डाका डालने का एक जुमला था जो ‘हाथी की पाद’ साबित हुई है.”...
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय
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पतरोल
(*यह कहानी यू के की है। ओह उत्तराखण्ड की, जो कभी उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा था। उत्तराखण्ड के एक छोटे से शहर के बहुत मरियल नाम वाले मोहल्ले की।* ) गुड्डी दीदी, जगदीश जीजू से प्रेम करती थी। जब तक हमें यह बात मालूम नहीं थी, जीजू हमारे लिए जगदीश सर ही थे। जगदीश सर, गुड्डी दीदी के घर किराये में रहते थे और ट्यूशन पढ़ाते थे। गुड्डी दीदी भी जगदीश सर से ट्यूशन पढ़ती थी। यह बात किसी को भी पता नहीं थी कि गुड्डी दीदी, जगदीश सर से प्रेम करती है...
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काश पैसा भी बासी होने लगे
हमारी एक भाभी हैं, जब हम कॉलेज से आते थे तब वे हमारा इंतजार करती थीं और फिर हम साथ ही भोजन करते थे। उनकी एक खासियत है, बहुत मनुहार के साथ भोजन कराती हैं। हमारा भोजन पूरा हो जाता लेकिन उनकी मनुहार चलती रहती – अजी एक रोटी और, हम कहते नहीं, फिर वे कहतीं – अच्छा आधी ही ले लो। हमारा फिर ना होता। फिर वे कहतीं कि अच्छा एक कौर ही ले लो। आखिर हम थाली उठाकर चल देते जब जाकर उनकी मनुहार समाप्त होती। कुछ दिनों बाद हमें पता लगा कि इनके कटोरदान में रोटी है ही नहीं और ये मनुहार करने में फिर भी पीछे नहीं है...
smt. Ajit Gupta
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तेरी जो लत है जी चुराने की
बेबज़ा को बज़ा बताने की कोशिशें हो रहीं ज़माने की
ज़िन्दगी की फ़क़त है दो उलझन एक खोने की एक पाने की...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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खेल भावना से देख
चोर सिपाही के खेल
वर्षों से
एक साथ
एक जगह
पर रह
रहे होते हैं
लड़ते दिख
रहे होते हैं
झगड़ते दिख
रहे होते हैं
कोई गुनाह
नहीं होता है
लोग अगर
चोर सिपाही
खेल रहे होते हैं ...
एक साथ
एक जगह
पर रह
रहे होते हैं
लड़ते दिख
रहे होते हैं
झगड़ते दिख
रहे होते हैं
कोई गुनाह
नहीं होता है
लोग अगर
चोर सिपाही
खेल रहे होते हैं ...
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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कहते हैं लोग
कहते हैं लोग तारे आसमाँ पे होते हैं
मन में कोई खुद के झाँक के देखे
वहाँ भी असंख्य दिपदिपाते
सपनों से भरे सितारे होते हैं...
Tere bin पर
Dr.NISHA MAHARANA
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खास उम्र की महिलाएं
Mukesh Kumar Sinha
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। आभार 'उलूक' के सूत्र 'खेल भावना से देख चोर सिपाही के खेल' को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंसर मेरे ब्लॉग को भी चेक करें और आपके यहाँ जगह दे.
जवाब देंहटाएंwww.allinonebest.com