मित्रों
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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एक युगल शिकायती गीत ---
वरना क्या मैं------
कैसे कह दूँ कि अब तुम बदल सी गई
वरना क्या मैं समझता नहीं बात क्या..
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मुक्त-ग़ज़ल : 232 -
मीर के दीवान बिकते हैं ?
कहीं पर रात में आधी ; सजे अरमान बिकते हैं
कहीं पर दिन दहाड़े मौत के सामान बिकते हैं ...
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किसान की आह!
मैं किसान हूं।
पेशाब पीना मेरे लिए खराब बात नहीं है।
जहर पीने से बेहतर है पेशाब पीना।
जहर पी लिया तो मेरे साथ
मेरा पूरा परिवार मरेगा
पर पेशाब पीने से
केवल आपकी संवेदनाएं मरेंगी।
मेरा परिवार शायद बच जाए...
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प्लास्टिकासुर---
डा श्याम गुप्त
*धरती दिवस -*
यूं तो धरती को प्रदूषित करने में सर्वाधिक हाथ हमारे अति-भौतिकतावादी जीवन व्यवहार का है | यहाँ हमारी धरती को कूड़ा घर बनाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक एवं जो प्राप्ति, उपयोग , उपस्थिति एवं समाप्ति के प्रयत्नों से सर्वाधिक प्रदूषण कारक है उस तत्व को निरूपित करती हुई ,
पृथ्वी दिवस पर ....एक अतुकांत काव्य-रचना प्रस्तुत है---
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क्या मालूम
मैं किस ओर चला क्या मालूम ?
कॊई कहे ले गयी पवन उड़ाकर
कॊई कहता नदिया के तीर गया
ज्वाला के संग संग
दिन -रात जलाया दीप...
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लाल बत्ती की अभिलाषा -
अमृता की आत्मकथा रसीदी टिकट में एक वाक्या है कि किसी ने एक एक बार उनका हाथ देख कर कहा कि धन की रेखा बहुत अच्छी है और इमरोज़ का हाथ देख कर कहा की धन की रेखा बहुत मद्धम है .इस पर अमृता हंस दी और उन्होंने कहा की कोई बात नहीं हम दोनों मिल कर एक ही रेखा से काम चला लेंगे .... और इस वाकये के बाद उनके पास एक पोस्ट कार्ड आया जिस पर लिखा था ---- मैं हस्त रेखा का ज्ञान रखती हूँ ....
कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे
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सोचता हूँ के अगर जाऊँगा तो क्या लेकर
होते फिर शे’र मेरे क़ाफ़िया क्या क्या लेकर
बात बन जाती लुगत का जो सहारा लेकर
लिख दिया मैंने अभी एक अजूबा सी हज़ल
कह दो तो पढ़ दूँ यहाँ नाम ख़ुदा का लेकर ...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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दिल के लहू में......
डॉ. विजय कुमार सुखवानी
दिल के लहू में आँखों के पानी में रहते थे
जब हम माँ बाप की निग़हबानी में रहते थे...
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जिंदगी किताब और आखरी पन्ना ...
क्या सच में जीवन का अन्त नहीं ...
क्या जीवन निरंतर है ...
आत्मा के दृष्टिकोण से देखो तो शायद हाँ ...
पर शरीर के माध्यम से देखो तो ...
पर क्या दोनों का अस्तित्व है एक दुसरे के बिना ...
छोड़ो गुणी जनों के समझ की बाते हैं अपने को क्या ...
अचानक नहीं आता ज़िंदगी की क़िताब का
आखरी पन्ना हां ...
Digamber Naswa
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अमर शहीदॊं कॆ चरणॊं मॆं,,,,,
नंदनवन मॆं आग लगी है,पता नहीं रखवालॊं का,
कैसॆ कोई करे भरोसा,कपटी दॆश दलालॊं का...
kavirajbundeli
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सेल पर हैं हम
साल के पहले दिन का सेल
साल के अंतिम दिन का सेल
आज़ादी के जश्न का सेल
गणतंत्र का सेल
संविधान दिवस सेल...
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला
"नौकरी में आरक्षण नहीं मिलेगा"
Faiyaz Ahmad
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(१)
जालजगत है देवता, कम्प्यूटर भगवान।
शोभा है यह मेज की, ऑफिस की है शान।।
ऑफिस की है शान, बनाता अनुबन्धों को।
सारे जग में सदा, बढ़ाता सम्बन्धों को।।
कह मयंक कविराय, अनागत ही आगत है।
सबसे ज्ञानी अब दुनिया में जालजगत है...
शोभा है यह मेज की, ऑफिस की है शान।।
ऑफिस की है शान, बनाता अनुबन्धों को।
सारे जग में सदा, बढ़ाता सम्बन्धों को।।
कह मयंक कविराय, अनागत ही आगत है।
सबसे ज्ञानी अब दुनिया में जालजगत है...
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पढ़े-लिखे करते नहीं, पुस्+तक से सम्वाद।
इसीलिए पुस्+तक-दिवस, नहीं किसी को याद।।
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पुस्+तक उपयोगी नहीं, बस्ते का है भार।
बच्चों को कैसे भला, होगा इनसे प्यार।।
दोहे
"बत्ती नीली-लाल"
नहीं मिलेगी किसी को, बत्ती नीली-लाल।
अफसरशाही को हुआ, इसका बहुत मलाल।।
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लाल बत्तियों पर लगी, अब भगवा की रोक।।
सत्ता भोग-विलास में, छाया भारी शोक।।
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लालबत्तियाँ पूछतीं, शासन से ये राज़।
इतने दशकों बाद क्यों, गिरी अचानक ग़ाज़।।
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नेताओं का पड़ गया, चेहरा आज सफेद।
पलक झपकते मिट गया, आम-खास का भेद।।
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देखे कब तक चलेगा, यह शाही फरमान।
दशकों की जागीर का, लुटा आज अभिमान।।
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समय-समय की बात है, समय-समय का फेर।
नहीं मिलेगी भोज में, तीतर और बटेर।।
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अच्छा है यह फैसला, भले हुई हो देर।
एक घाट पर पियेंगे, पानी, बकरी-शेर।।
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भारी मन से हो रहा, निर्णय यह स्वीकार।
सजी-धजी इस कार का, उजड़ गया सिंगार।।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ
आभार
सादर
सुन्दर चर्चा। आभार 'उलूक' के सूत्र को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत चर्चा आज की ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे शामिल करने का ...
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएं