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रविवार, अप्रैल 23, 2017

"सूरज अनल बरसा रहा" (चर्चा अंक-2622)

मित्रों 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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हँसते ही.... 

गिरिजा अरोड़ा 

मुझे नहीं मालूम कैसे 
पर हँसते ही फूल खिल जाते हैं 
दिल मिल जाते हैं 
ग़म के स्तंभ हिल जाते हैं 
रंग छा जाते हैं 
ढंग भा जाते हैं... 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal 

सामना 

जब सामना होगा तो बात भी हो जाएगी, 
पुरानी अटकी हुई वो रात भी हो जाएगी... 
खामोशियाँ...!!! पर Misra Raahul 
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आम 

नव अंशु पर Amit Kumar 
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तुम तो हार तभी गये थे... 

तुम्हारे लिए मुझे त्याग देना आसान था, 
क्यों की तुम महान बनाना चाहते थे... 
तुम खुद को संयम में, बांध कर जीना चाहते थे, 
क्यों कि तुम इक मिशाल बनाना चाहते थे... 
मुझे नही पता कि, 
तुम्हे तकलीफ हुई थी या नही... 
'आहुति' पर Sushma Verma 
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प्यार किया उनसे तो यह रिश्ता है निभाना 

करते हम प्यार उनको दुश्मन है ज़माना 
ढूंढते रहते नित मिलने का है बहाना... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi  
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अंगूठा 

अर्चना चावजी Archana Chaoji  
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दाव:-ए-हस्रते-दिल ... 

उलझनों से भरा दिल नहीं चाहिए 
मुफ़्त में कोई मुश्किल नहीं चाहिए... 
Suresh Swapnil 
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दो बूँद का सागर 

अनिल हूँ मैं ... 
मुझे तुम्हारी फैक्ट्री से निकलते 
जहरीले धुएं से क्या काम 
मुझे तो तोड़ देनी है ... 
नफरत और जलन उगलती 
सभी अयाचित चिमनियाँ  
अनल हूँ मैं ....  
Mera avyakta पर 
राम किशोर उपाध्याय 
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देवनागरी - 

ब्राह्मी से उद्भव ले विकसे 
जो देवनागरी के आखऱ, 
अक्षर अक्षरशः सार्थक हैं... 
प्रतिभा सक्सेना 
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मृत्यु 

जीवन का अंतिम उत्सव है मृत्यु 
पत्तियां पीली पड़ जाती हैं 
मरने से पहले... 
सरोकार पर Arun Roy 
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सालासर बालाजी धाम जाएं तो 

तुलसीदेवी सेवासदन को जरूर आजमाएं 

कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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मंजिल की तलाश में 

मंजिल की तलाश में 
बहुत दूर निकल आये हम... 
vandana gupta 
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सात फेरे 

सात फेरों से शुरू हुआ 
जीवन का ये सफर , 
सात फेरे सात जनम के लिए 
सात वचनों से गढ़े 
सात गांठों मे बंधे... 
प्यार पर Rewa tibrewal 
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वह दुनिया 

जी करता है, 
फिर से संकरी पगडंडियों पर चलूँ, 
लहलहाते धान के खेतों को देखूं, 
फूलों पर पड़ी ओस की बूंदों को छूऊँ, 
ताज़ी ठंडी हवा जी भर के पीऊँ... 
कविताएँ पर Onkar 
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गर्मी आई गर्मी आई 

अर्चना चावजी Archana Chaoji 
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बाल भवन के नन्हें कलाकारों का 

गौरैया के प्रति समर्पण 

गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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बेला के फूल 

स्पर्धा थी सौंदर्य की, मौसम था प्रतिकूल 
सूखे फूल गुलाब के, जीते बेला फूल | 
चली चिलकती धूप में, जब मजदूरन नार 
अलबेली को देख कर, बेला मानें हार... 
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नारी की सुरक्षा में ही 

मानव जाति की सुरक्षा है  

यह मानव जाति का दुर्भाग्य ही है कि एक ओर जहाँ लगभग आधी शताब्दी पूर्व मानव चरण चाँद पर पड़े थे , मंगल गृह पर यान उतर चुके हैं और अंतरिक्ष में भी मनुष्य तैरकर , चलकर , उड़कर वापस धरती पर सफलतापूर्वक उतर चुका है , वहीँ दूसरी ओर आज भी हमारे देश में विवाहित महिलाओं पर न सिर्फ दहेज़ के नाम पर अत्याचार किये जा रहे हैं , बल्कि उन्हें आग में झोंक दिया जाता है। यह मानवीय व्यवहार किसी भी तरह क्षमा के योग्य नहीं है। इन कुकृत्यों के अपराधियों की सज़ा कारावास से बढाकर फांसी कर देना चाहिए... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
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धूप और छाँव 

धूप और छाँव की लुकाछिपी 
कितनी अच्छी लगती है 
धूप में जब थक जाओ 
छाँव शीतलता देती है... 
aashaye पर garima 
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दोहे 

"धरती का त्यौहार" 

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अपना धर्म निभाओगे कब
जग को राह दिखाओगे कब

अभिनव कोई गीत बनाओ,
घूम-घूमकर उसे सुनाओ
स्नेह-सुधा की धार बहाओ
वसुधा को सरसाओगे कब
जग को राह दिखाओगे कब... 
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गीत 

"मैदान बदलते देखे हैं" 

इंसानों की बोली में, ईमान बदलते देखे हैं 
धनवानों की झोली में, सामान बदलते देखे हैं... 
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10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    सुन्दर, सार्थक, सारगर्भित सूत्रों से सुसज्जित आज का विस्तृत चर्चामंच ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका दिल से शुक्रिया!

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं

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