मित्रों
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ब्लागिंग का स्वर्णिंम काल
और EVM से मठाधीषों के चुनाव
आज पता नही क्यों, ब्लागिंग के पुराने जमाने की बहुत याद आ रही है. वर्च्युअल दुनियां होते हुये भी कभी यह एहसास हुआ ही नही कि ये ”सूत ना कपास जुलाहों में लठ्ठमलठ्ठा” वाला काम है. पिछले तीन चार साल से ब्लागिंग भी बंद सी ही थी और फ़ेसबुक अपने को कभी रास आई ही नही थी. सो इन सबसे दूरी बनी ही रही. हां तो हमको याद आ रही थी ब्लागिंग के स्वर्णिम काल की तो उस कालखंड में बडे बडे मठाधीषों जैसे मठ बने हुये थे. और जैसे सच के मठाधीषों में तलवारें खिंच जाती हैं कुछ इसी तरह की तलवारें ब्लागिंग में भी खिंच जाया करती थी. कई मसले तो ऐसे होते थे जो भारतीय राजनिती के चुनावों से भी अहम होते थे...
ताऊ डाट इन पर
ताऊ रामपुरिया
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ख़ामोशी ...
एक एहसास
क्या बोलते रहना ही संवाद है ...
शब्द ही एकमात्र माध्यम है
अपनी बात को दुसरे तक पहुंचाने का ...
तो क्या शब्द की उत्पत्ति
मनुष्य के साथ से ही है ...
अगर हाँ तो फिर ख़ामोशी ...
Digamber Naswa
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----- || चलो कविता बनाएँ || -----
*हाथोँ हाथ सूझै नहि घन अँधियारी रैन | *
*अनहितु सीँउ भेद बढ़े सोइ रहे सबु सैन || १ || *
*क्रमश:*...
NEET-NEET पर Neetu Singhal
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संतोष ...।
झमाझम बारिश हो रही थी। पता नहीं क्यों बादल भी पुरे क्रोध से गरज रहा था। पल भर में मंदिर का परिसर जैसे खाली हो गया। कई को अंदर इसी बहाने कुछ और वक्त मिल गया।पूजा का थाल लिए लोग या तो अंदर की ओर भाग गए या कुछ ने प्रागण में बने छत के नीचे ठिकाना ढूंढा तो किसी ने अपने छाते पर भरोसा किया। महिलाएं हवा से अपनी पल्लू संभाली तो किसी ने पूजा की थाल को इन पल्लू से ढक लिया ...
अंतर्नाद की थाप पर Kaushal Lal
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दूर चले गए
मेरा नाम जपते-जपते,
वो मुझसे दूर चले गए,
मुझे ढाल लिया अपनी पसंद में,
और मेरे वजूद से दूर चले गए...
Anjana Dayal de Prewitt
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कुण्डलिया छन्द:
पलाश का फूल
पहचाना जाता नहीं, अब पलाश का फूल
इस कलयुग के दौर में, मनुज रहा है भूल
मनुज रहा है भूल, काट कर सारे जंगल
कंकरीट में बैठ, ढूँढता अरे सुमङ्गल
तोड़ रहा है नित्य, अरुण कुदरत से नाता
अब पलाश का फूल, नहीं पहचाना जाता।।
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प्यार में यूँ दगा नही करते
राह अपनी जुदा नहीं करते ,
आप को प्यार का सबब मिलता
जान तुमसे जफ़ा नहीं करते...
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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मूर्खता की बातें
हर रिश्ते में दो लोग होते हैं,
जिसमें से एक-
दूसरे को मूर्ख समझता है...
मेरे मन की पर
अर्चना चावजी Archana Chaoji
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दोहे
”उच्चारण खामोश"
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केवल मन में था बसा, धन का जिनके भाव।
डूब गयी मझधार में, उनकी छल की नाव।।
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देखा मद में चूर हैं, अपने जहाँपनाह।
तब चल पड़े वजीर सब, पकड़ दूसरी राह।।
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सोचा आम चुनाव में, पा जाऊँगा वोट।
हार गये दोनों जगह, नीयत में था खोट।।
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इतना भोला भी नहीं, प्रान्त उत्तराखण्ड।
हरदा के अभिमान का, तोड़ा सभी घमण्ड।।
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सीधे-सादे हों भले, लेकिन चतुर सुजान।
लोग उत्तराखण्ड के, रखते हैं ईमान।।
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सीना है जिनका बना, फौलादी चट्टान।
चिकनी-चुपड़ी बात को, जाते हैं पहचान।।
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सीमाओं की कर रहे, निगरानी जी तोड़।
भारत माँ के शत्रु की, देते गरदन तोड़।।
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कभी पहल करते नहीं, करने में जो वार।
ऐसे ही जाँबाज हैं, अपने पहरेदार।।
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जिनके दम पर देश की, बची हुई है आन।
सब करते शान से, पूजा और अजान।।
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उपजाता जो अन्न को, वह है कृषक महान।
नमन जवानों को करे, पूरा हिन्दुस्तान।।
विस्तृत चर्चा ... बहुत विस्तार से ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
वाह...
जवाब देंहटाएंआकर्षक रचनाएँ
सादर
बढ़िया मंगलवारीय अंक। चर्चा में 'उलूक' के सूत्र की चर्चा करने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर, सार्थक एवं पठनीय सूत्र ! मेरी रचना, 'द्रौपदी का दर्द', को सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसार्थक संकलन
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी! मेरी रचना को पहली बार चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंwww.travelwithrd.com
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
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