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रविवार, अप्रैल 09, 2017

"लोगों का आहार" (चर्चा अंक-2616)

मित्रों 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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लौट आओ 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 
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आईना रंग क्यूँ बदलता है 

मान लेना न यह के पक्का है 
आदमी आदमी का रिश्ता है 
यूँ तो लाखों गिले हैं ज़ेरे जिगर 
कौन तेरा है कौन मेरा है 
इश्क़ की क्या नहीं है ... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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अहम् 

मुझे पता था कि तुम दरवाज़े पर हो, 
तुम्हें भी पता था कि मुझे पता है. 
मैं इंतज़ार करता रहा कि तुम दस्तक दो, 
तुम सोचती रही कि 
मैं बिना दस्तक के खोल दूं दरवाज़ा. 
दोनों ही चाहते थे कि दरवाज़ा खुल जाय, 
पर न तुमने दस्तक दी, 
न मैंने दरवाज़ा खोला. 
कविताएँ पर Onkar 
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तू इसमें रहेगा 

और यह तुझ में रहेगा 

प्रेम में डूबे जोड़े हम सब की नजरों से गुजरे हैं, एक दूजे में खोये, किसी भी आहट से अनजान और किसी की दखल से बेहद दुखी। मुझे लगने लगा है कि मैं भी ऐसी ही प्रेमिका बन रही हूँ, चौंकिये मत मेरा प्रेमी दूसरा कोई नहीं है, बस मेरा अपना मन ही है... 
smt. Ajit Gupta 
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विजातीय विवाहों पर उग्रता क्यों 


गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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सेल्फ़ी ,सेल्फ-ही ,सेल-फ्री 

सेल्फ़ी एक शब्द जो न जाने कहाँ से चलकर आया 
और एक छत्र राज्य करने की अभिलाषा पाले 
मोबाईल साम्राज्य पर कब्जा कर बैठा... 
अर्चना चावजी Archana Chaoji 
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बोझ 

“ देख कितने अच्छे लग रहे हैं दोनों ! स्कूल जा रहे हैं पढ़ने को !” कूड़े में से बेचने लायक काम का सामान बीन कर इकट्ठा करना निमली और उसके छोटे भाई सुजान का रोज़ का काम है ! इसे बेच कर जो थोड़े बहुत पैसे घर में आ जाते हैं उनसे माँ कभी-कभी उन्हें मीठी गोली भी दिला देती है ! गोली के लालच में इस वक्त वही बटोरने के लिए बड़े-बड़े बोरे कंधे पर लटकाए दोनों डम्पिंग ग्राउंड की ओर जा रहे थे ! हठात् सामने से आते स्कूल जाने वाले सौरभ और कनिका पर नज़र पड़ी तो निमली के मन के उद्गार फूट पड़े ... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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'वो शोला था, जल बुझा...' 

मुक्ताकाश....पर आनन्द वर्धन ओझा  
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उलझे ख्वाव .... 

किसी दिन अँधेरे में चाँद की लहरों पर होकर सवार 
समुन्दर की तलहटी पर उम्मीदों की मोती चुगना ।। 
किसी रात गर्म धुप से तपकर आशाओं के फसल को 
विश्वास के हसुआ से काटने का प्रयत्न तो करना ... 
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ग़ज़ल 

बिन तेरे जिंदगी में’ पहरेदार भी नहीं 
दुनिया में’ अब किसी से’ मुझे प्यार भी नहीं... 
कालीपद "प्रसाद" 
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अनमोल मोती 

प्यार पर Rewa tibrewal 
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सुमन की पाती 

सु-मन (Suman Kapoor) 
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प्रार्थना का धर्म 

धान के बीज बो दिए हैं 
तालाब के किनारे किनारे 
उम्मीद में कि बादल बरसेंगे 
और पौध बन उगेंगे फिर से खेतो में... 
सरोकार पर Arun Roy 
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ऐसा कुछ गुमान था.. 

प्रतिभा चौहान 

अपनी हकीकत पर मुझे इत्मिनान था 
क्योंकि मेरी नजरों में आसमान था... 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
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छोड़ दुनिया वो गये क्या 

याद कर भर नैन आये 

ज़िन्दगी में अब चली है 
आज कैसी यह हवायें राह में 
क्यों आज मेरे यह कदम फिर डगमगाये 
प्यार की अब ज़िन्दगी में 
खो गई उम्मीद थी 
जो छोड़ दुनिया वो गये 
क्या याद कर भर नैन आये 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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दोहे  

"हुए हौसले पस्त" 

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माँ के चेहरे पर रहे, सहज-सरल मुसकान।
माता से बढ़कर नहीं, कोई देव महान।।
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व्रत-तप-पूजन के लिए, आते हैं नवरात।
माँ को मत बिसराइए, कैसे हों हालात।।
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बिना अर्चना के नहीं, मिलता है वरदान।
प्रतिदिन करना चाहिए, माता का गुणगान।।
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जय दुर्गा नवरात में, बोल रहे थे लोग।
बाकी पूरे सालभर, मुर्गा का उपभोग।।
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जीभ चटाखे ले रही, होठों पर हरिनाम।
हिन्दू ज्यादा खा रहे, मौमिन हैं बदनाम।।
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नहीं क्षम्य के योग्य हैं, दोनों के ऐमाल।
रोजाना दोनों करें, झटका और हलाल।।
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कुछ को सूकर से घृणा, कुछ को गौ से प्यार।
सामिष भोजन से बढ़े, आपस में तकरार।।
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सुधर जाय यदि देश के, लोगों का आहार।
तब ही होगा वतन में, सब तबकों में प्यार।।

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    हृदय से आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर चर्चा. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सूत्रों का संकलन ! मेरी लघु कथा 'बोझ' को आज की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री शास्त्री जी। मेरी रचना को आपने चर्चा के काबिल समझा।

    जवाब देंहटाएं

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