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गुरुवार, जनवरी 12, 2023

"कुछ कम तो न था ..."(चर्चा अंक 4634)

सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

10 जनवरी विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 

नये साल की अपनी पहली प्रस्तुति लेकर हाजिर हूँ।

मैं कामिनी सिन्हा  

देखते-देखते वक़्त कैसे गुजर जाता है पता ही नहीं चलता "2023" आ भी गया और 11 दिन गुजर भी गए 

 गुजरे सालों ने हमें क्या दिया क्या नहीं इसका हिसाब क्या लगाए... 

बस, संगीता दी के इस शेर का मर्म समझ सब्र कर लेते हैं 

जो नहीं  मिला ज़िन्दगी में, उसका कुछ ग़म तो न था । 

पर मिला जितना भी ज़िन्दगी में, वो भी कुछ कम तो न था 

तो जो मिला है ईश्वर को उसके लिए शुक्रिया कहते हुए आज की चर्चा की शुरुआत करते हैं...

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 हिंदी हमारी मातृभाषा है और अपनी माँ की शान में जितना कहे कम है 

अपनी चिरपरिचत अंदाज यानि दोहा शैली में मातृभाषा का गुणगान करते हमारे शास्त्री सर 

दोहे "विश्व हिन्दी दिवस-हिन्दी की पहचान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


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हिन्दी है सबसे सरल, मान गया संसार।
वैज्ञानिकता से भरा, हिन्दी का भण्डार।।
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दुनिया में हिन्दीदिवस, भारत की है शान।
सारे जग में बन गयी, हिन्दी की पहचान।।
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भ्रमित हैं जो दूसरी भाषा से मोहित,

कुछ कम तो न था ...


पानी की चाहत में  हम, जो घूमे  सहरा - सहरा 
दिखा सराब  तो हममें भी सब्र कुछ कम तो न था ।

बह गया आँख से पानी, रिस गए दिल के छाले 
यूँ  शिद्दत से छुपाए थे, मेरा ज़र्फ़ कुछ कम तो न था । 

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गागर में सागर समेटने की कला में माहिर है हमारी हरदिल अजीज कवयित्री "मीना जी" 
कम शब्दों में इतनी गहरी बात कह जाती है जो अंतःकरण में गहरे पैठ जाती है 
अब देखिये न,हाथों की लकीरों को गूगल मैप बना डाला 
वाकई,गौर करने वाली बात है ये आड़ी-टेढ़ी  रेखाएं जिसमे सम्पूर्ण जीवन रहस्य  छिपा है 
गूगल मैप से कम थोड़े ही है....
 

“क्षणिकाएँ”


अक्सर मैं 

हाथ की लकीरों में

तुम्हें ढूँढा करती हूँ 

क्या पता …,

गूगल मैप की तरह इनमें 

तुम्हारी कोई 

निशानदेही कहीं मिल ही जाए ॥

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कोहरा मन पर छाया हो या वातावरण पर उसके मर्म को महसूस कर बाखूबी शब्दों में पिरोना जानती है हमारी प्रिय कवयित्री अनीता जी  
कोहरे की चादर में लिपटी सांसें


कोहरे की चादर में 

लिपटी सांसें

उठने का हक नहीं है

इन्हें !

जकड़न सहती

ज़िंदगी से जूझती ज़िंदा हैं

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छुपम-छुपाई खेल रहे रवि,

और पवन पुरजोर चल रही ।

दुबके सोये पता ना चलता,

रात कटी कब भोर टल रही ।

अब,जब वसुधा और अम्बर का मिलन हो रहा है तो रवि  छुप ही जायेगें न 

शीत ऋतु का मनोरम चित्रण करती हमारी प्रिय सुधा जी 

वसुधा अम्बर एक हो गये



सकल सृष्टि स्तब्ध खड़ी सी,

बाट जोहती ज्यों बसंत का ।

श्रृंगारित होगी दुल्हन सी,

शुभागमन हो रति अनंग का ।

ठिठुरती ठंड में मुस्कुराता है तो सिर्फ "गुलाब" जिसकी मनमोहक रंगत और खुश्बू हमारे तन-मन दोनों को ताजगी दे जाता है।हमें गुलाबों की बगिया का सैर कराने ले जा रही है सखी कविता रावत जी 
गुलाब प्रदर्शनी


अखिल भारतीय गुलाब प्रदर्शनी देखने के साथ ही यह बताते हुए खुशी है कि आज गुलाब का फूल सिर्फ घर के बाग-बगीचों और किसी को भेंट करने का माध्यम भर नहीं है, बल्कि आज कृषक गुलाब की खेती कर बड़े पैमाने पर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रहे हैं। हमारे मध्यप्रदेश में गुलाब आधारित सुंगन्धित उद्योग एवं खेती संगठित क्षेत्र में पूर्व वर्षों में नहीं की जाती थी,

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समाज में भी व्याप्त कुछ काँटे हमारे फूलों की बगिया को तबाह करने पर तुले है। आईये अब कुछ गंभीर मुद्दों पर  विचार कर लें। हमारी छोटी ब्लॉगर मनीषा ने बहुत गंभीर मुद्दा उठाया है और शायद एक बड़े अभियान का आह्वान कर रही  है लेकिन मैं बेटी मनीषा से कहना चाहूँगी कि मेरे विचार से ये  नास्तिकता प्रचार अभियान ना होकर इंसानियत जागरूकता अभियान हो तो बेहतर होगा क्योंकि नास्तिकता इंसानियत का पाठ पढ़ा दे ये भी सम्भव नहीं...  

इंसानियत का दुश्मन क्यों तू आज बना?


किसी को हिंदू तो किसी को मुस्लिम तूने नाम दिया, 

किताबों वाले हाथों में पत्थर तूने थमा दिया।

स्याही से रंगने वाले हाथों को रक्तरंजित तूने करा दिया, 

प्रेम व सौहार्द की खुशबुओं से महकने वाले बागों में 

नफ़रत का बीज तूने लगा दिया।

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बाजार के चक्रव्यूह में तो हम फंस चुकें हैं 

जरूरत है खुद को बचाने की 

इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने का रास्ता तलाश करते आदरणीय गगन जी 

बाजार के चक्रव्यूह में अभिमन्यु बनता उपभोक्ता



जबसे बाबा रामदेव ने बाजार के समर में आयुर्वेद का परचम थामा है, तबसे जाने-माने नामों यथा तुलसी, आंवला, हल्दी, अदरक के साथ-साथ अन्य नामालूम से साग-सब्जियों-लता-गुल्मों-पौधे-पत्तियों के दिन भी फिर गए हैं ! हर कॉस्मेटिक ब्रांड अपने उत्पाद में किसी भी वनस्पति का नाम थोप खुद को प्रकृति का सगा सिद्ध करने पर तुला हुआ है साथ ही लोगों के रुझान और मौके को ताड़ते और आयुर्वेद के नाम को भुनाते हुए अपने उत्पाद की कीमत तिगुनी-चौगुनी कर दी है ! एक ऐसे ही बाल बढ़ाऊ और केश निखारू उत्पाद ने प्याज को ही अपना ब्रांड एम्बेस्डर बना डाला है !-----------------------एक बेहद गंभीर मुद्दें पर प्रकाश डाल रही है आदरणीया पल्लवी जी विषय बहुत गंभीर है और मैं इनके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ इंटरनेट का ये भयावह रूप हमारी पूरी नस्ल को तबाह कर देगा, इस पर चिंतन बेहद जरुरी है। ~अश्लीलता परोसता इंटरनेट ~

 इस मोबाइल नामक यँत्र की जितनी तारीफ़ करूँ कम ही होगी। लेकिन वही दूसरी ओर अब जो कुछ भी मैं कहने जा रही हूँ, वह भी इस इंटरनेट के इस मोबाइल नामक खतरनाक यँत्र की वह देंन है, जो इंटरनेट का एक बहुत ही घिनौना और भयावह रूप लेकर हमारे सामने आता है।-----------------------------आज का सफर यहीं तक, अब आज्ञा देफिर मिलती हूं रविवार कोआपका दिन मंगलमय हो कामिनी सिन्हा 


15 टिप्‍पणियां:

  1. उपयोगी लिंकों के साथअच्छी चर्चा प्रस्तुत की है बहन कामिनी सिन्हा जी ने।
    आपका बहुत-बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित श्रमसाध्य-सार्थक और रोचकता से परिपूर्ण चर्चा ! अपनी पोस्ट का लिंक यहाँ देख कर अपार हर्ष हुआ ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. लेकिन मैं बेटी मनीषा से कहना चाहूँगी कि मेरे विचार से ये
    नास्तिकता प्रचार अभियान ना होकर इंसानियत जागरूकता अभियान हो तो बेहतर होगा
    सही कहा आपने मैम🙏
    मैं सबको बस ये बताना चाहती हूँ कि इंसानियत से बढ़कर कुछ भी नहीं है न पूजा, न पाठ, न कोई धर्म, न कोई जाति!
    ये तस्वीर मैंने गूगल से ली थी तो नीचे लिखें हुए शब्दों पर मैनें खास ध्यान नही दिया था, और मैं नास्तिकता का प्रचार अभियान करने जैसा कोई इरादा नहीं है मैं बस अंधविश्वास के खिलाफ़ थी हूँ और रहुंगा!
    ये तस्वीर में जो लिखा है मैं उसे अभी मिटा देती हूँ!
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद मैम 🙏🙏🙏🥰

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मनीषा, आस्तिकता और अन्धविश्वास में आसमान और जमीन का फर्क है। वैसे ही बेटा धर्म और मजहब में भी बहुत फर्क है। आपने अनजाने में ये तस्वीर लगाई है मगर ऐसी ही तस्वीरें हमारे सनातन धर्म को बदनाम कर रही है। इस तस्वीर को ध्यान से देखो पहला कचरा हिन्दू ही फेंक रहा है।बेटा जात पात और मजहब के खिलाफ मैं भी हूं लेकिन कोई हमारे सनातन धर्म को बदनाम करे ये मुझे गवारा नहीं। क्योंकि सिर्फ एक सनातन धर्म ही है जो इन्सानियत का पाठ पढ़ाता है।आप सही इतिहास उठा कर देख सकते हो । सही इसलिए कहा कि क्योंकि पिछले सदी के इतिहास ने भी हमें गुमराह ही किया है । आपने इन्सानियत को जागृत करने के लिए आवाज़ उठाई है ये बड़े गर्व की बात है मगर इन छोटी छोटी बारिकियों पर ध्यान देना हमारा फ़र्ज़ है।ढेर सारा स्नेह आपको

      हटाएं
    2. जी धन्यवाद🙏
      आगे से ध्यान रखेंगे 🙏

      हटाएं
  4. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!

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  5. उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति । हर लिंक पर आपकी सुंदर समीक्षा रचना को और भी आकर्षक बना रही है । मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए दिल से धन्यवाद जवं आभार आपका ।

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  6. उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति । प्रत्येक लिंक पर आपकी सुंदर समीक्षा लिंक को और भी आकर्षक एवं पठनीय बना रही है ।मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार ।

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  7. प्रिय कामिनी ,
    आज की चर्चा में हर सूत्र के साथ संक्षिप्त टिप्पणी चर्चा को सार्थक कर रही हैं । बेहतरीन संयोजन ।
    मेरी रचना को लेने के लिए आभार ।

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  8. सुंदर पोस्ट.
    हरेक बागे अदब में बहार है हिंदी
    कहीं गुलाब कहीं हरसिंगार है हिंदी
    ये रहीम दादू औ रसखान की विरासत है
    कबीर सूर औ मीरा का प्यार है हिंदी
    सादर प्रणाम शास्त्री जी

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  9. चर्चा प्रस्तुति का बहुत ही सुंदर संग्रहणीय अंक ।
    सार्थक समीक्षा से सृजन का लेखकीय तत्व उजागर हुआ । रचना तक पहुंचने की जिज्ञासा जगी। आभार एवम अभिनंदन।

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  10. सुप्रभात! सराहनीय रचनाओं के सूत्रों से सजा सुंदर अंक, जिसमें हर रचना के बारे में सूत्र रूप में कुछ जानकारी भी दी गयी है। मनीषा जी के प्रश्न का आपने बहुत संतोषपूर्ण उत्तर दिया है कामिनी जी। आभार!

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  11. आदरणीया नमस्कार !
    आपको लोहड़ी,सक्रांति,पोंगल एवं बिहू पर्वों की अनेक शुभकामनाएं !
    जय श्री कृष्ण जी !
    जय भारत ! जय भारती !

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  12. बहुत खूबसूरत चर्चा संकलन

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