चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आज मैंने अपनी नज़र से ये चिट्ठे चुने हैं। आप भी इन पर दृष्टिपात कर लें।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
बतौर तोहफा एक ग़ज़ल पेश कर रही हूँ.
अपनी राय से ज़रूर नवाजें -
गुज़रो न बस क़रीब से ख़याल ...
"गुजरो न यूँ करीब से खयाल की तरह।
तेरे मेरे बीच
एक दुआ
एक सदा
मेरी बेखुदी
तेरी बेरूख़ी
चटका हुआ आईना
काँपता पीले पत्ते सा
फिर भी यह रिश्ता
जन्म तक यूँ ही चलता रहेगा !!
साथ ज...
"जैसे महक रमी हुई फूलों के अंग में।
मैं तो जनम-जनम रहूँगी साथ-संग में।।"
लीजिये एक और शब्द चित्र "श्याम श्याम भजो" कैसेट से.
मेरी राधा के संग मंगनी ,
कराइ दे मेरी मैया-२ ...
"वो ही नबी-करीम है, वो ही तो श्याम है।
वो ही तो ओम् नाम है, वो ही तो राम है।।"
हमें सभी के लिए बनना था और शामिल होना था सभी में हमें हाथ बढ़ाना था
सूरज को डूबने से बचने के लिए और रोकना था अंधकार से कम से कम
आधे गोलार्ध को हमें बात करना...
"मिलकर के प्रयास करें, अब पर्यावरण बचाना है।
धरती माता की गोदी में हमको पेड़ लगाना है।।"
- इस बार के तरही को लेकर कुछ विशेष करने की इच्छा है ।
इच्छा ये है कि इस बार तरही का आयोजन दोनों प्रकार से हो ।
हालंकि तारीख को लेकर कुछ असमंजस है फिर भी ...
"आपका प्रयास सफल हो, यही करता हूँ कामना!"
- इन दिनों कार्टून से लगाव हो गया है..
और कार्टून नेटवर्क पर टॉम और जैरी भी पसंद आने लगे है..
कभी टीवी चलवाकर भी कार्टून देखे जाते है.. ये कार्टून देखते दे...
"भुवन भास्कर तेज तुम्हारा, फैल रहा है जल-थल में।
हे रंजन आदित्य तुम्हारा, खेल निराला अंचल में।।"
उन्नीस सालों में भी पूरा इन्साफ नहीं मिल सका रुचिका को -रुचिका गिरोत्रा ने सन 1993 में एस पी एस राठौड़, तत्कालीन आई जी, हरियाणा के द्वारा प्रताड़ित होने के बाद आत्महत्या कर ली.इससे पहले 12 अगस्त, 1990 में रुचिका ...
"अफसरशाही पर अंकुश जिस दिन भारत में लग जायेगा।
सोया भाग्य हमारी धरती का उस दिन ही जग जायेगा।।"
कहना कठिन हुआ कि मुझे तुमसे प्यार है
न कहा, नहीं खबर ही मगर इन्तजार है
शाखों से लिपटी बेल को देखा जो ख्वाब में
क्या ख्वाब पूरे होंगे ये दिल बेकरार है ...
"प्यार का राग आलापने के लिए,
शुद्ध स्व, ताल, लय उपकरण चाहिएँ।
कृष्ण और राम को जानने के लिए,
सूर-तुलसी से ही आचरण चाहिएँ।।"
२०१० में ग्रह गोचर - २०१० का साल ग्रह गोचर के हिसाब से कुछ अलग ही विशेषता प्रदर्शित कर रहा हैं |
इस साल चार बड़े ग्रह (जो मंद गति से भ्रमण करते हैं ) शनि,राहू,केतु तथा ब्रहस्पति...
झूलमझूली - झूला झूलने की है ठानी , झूले पर बैठी गुडिया रानी , मन में आया तेज चलाऊं , ऊँची थोडी पेंग बढ़ाऊं , माँ ने बोला, धीरे चलाना , तेज गति से गिर ना जाना , पर उसन...
"मम्मी जी ने इसको डाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
खुश हो जाती हूँ मैं कितनी,
जब झूला पा जाती हूँ।
होम-वर्क पूरा करते ही,
मैं इस पर आ जाती हूँ।
करता है मन को मतवाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।"
अब आप ये चिट्ठे भी देख लें:-
आज सुबह टहल कर वापिस ही लौटे थे और अखवार पढने की
कोशिश कर रहे थे तभी मोबाईल बज उठा .
देखा तो अनजाने से लम्बे नम्बर से फोन था . फ़ोन उठान...
पन्ने पर फरवरी २००७ लिखा है,
इसलिये लगभग तीन साल पहले की
एक अधूरी कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
अधूरी इसलिये कि उस क्षण-विशेष की संवेदना और .....
कैद बख्शी है हमें यों ज़िन्दगी के नाम पर
ज्यों अंधेरे का कत़ल हो रौशनी के नाम पर
और क्या करते भला हम आदमी के नाम पर
छल-कपट करते रहे हैं बन्दगी के नाम पर ...
डॉ. अनिल चड्ढा की द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित बाल कविता
एक नन्ही-मुन्नी के प्रश्न मैं जब पैदा हुई थी मम्मी,
तब क्या लड्डू बाँटे थे ? मेरे पापा खु...
विगत आलेख में मैं ने लिखा था कि
"यौनिक गालियाँ समाज में इतनी गहराई से प्रचलन में क्यों हैं,
इन का अर्थ और इतिहास क्या है? इसे जानने की भी कोशिश करनी चाहिए...
[कलम की जुबान से...]
आज चिंतन के क्षणों में डूबता है एक सूरज व्यक्ति का विक्षोभ लेकर
और अन्तर की मनोरम घाटियों में एक स्वर ही गूंजता है आस्था के अर्थ का विस...
सब चलता है...बस अपना काम चलाओ,
प्रभु के गुण गाओ...
कमोवेश यही मनोस्थिति हम सब की है...
हम झल्लाते हैं, गरियाते हैं,
गुस्साते हैं, दांत भींचते हैं...फिर ये कह...
कुछ क्षणिकाएं .........
(१) बलात्कार के बाद .....
कुछ आवारा बादल
गली के उस पार भागते हुए निकल गए
मैंने खिड़की से बाहर झाँका
चाँद उकडूं बैठा सिसक रहा था अफव...
चेयरमैन ने कहना आरम्भ किया,
‘‘हमारी कंपनी आर-डी-बी-ए-
अर्थात रीजनल डेवलपमेन्ट फॉर बिजनेस एप्लीकेशंस का कार्य है
जंगलों, बीहड़ों इत्यादि में रहने वाली जंगल...
विशेषकर उस वय तक जबतक कि संतान पलटकर
अपने अभिभावक को जवाब न देने लगे,
उनकी अवहेलना न करने लगे,
विरले ही कोई माता पिता अपने संतान के विलक्षणता के प्रति अनाश्व...
मैं सैनिकों के रानीखेत क्लब में
पर्वतराज हिमालय की ओर मुंह किये
नंदा देवी की मनोरम चोटी को अपलक निहार रहा था,
जो मुझे मिस्र के किसी बच्चा पिरामिड की तरह लग र...
एक कोशिश -
कुछ परवाजों को
पंख नही मिला करते
कुछ दरख्तों पर
फूल नही खिला करते
अब तो कलमों की स्याही भी सूख चुकी है
कोई मेरे आंसुओं को पिए ----तो क्यूँ?
कोई मेरे ज़ख्...
"इस पोस्ट का भी तो मज़ा लें!"
बाबा लोगो का ब्लागिंग दर्शन और कलयुगी नीतिज्ञान :)
समाधिस्थ अवस्था में बैठे हुए हैं ।
बिल्कुल अपने ध्यान में निमग्न...
कुछ खबर नहीं कि संसार में क्या हो रहा है,
और संसार में वे हैं भी या नहीं ।
ये दोनों काफी देर तक उनके सामने बैठे रहे..
इतने में ही, न जाने कब की लगी
स्वामी ललितानन्द महाराज की समाधी टूटी ।
बाबा जी ने बडी ही दया दृ्ष्टि से इन लोगों की ओर देखा ।
इन लोगों नें भी श्रद्धाभाव से चरणस्पर्शपूर्वक उन्हे प्रणाम किया
।"बच्चा!- तुम लोग कौन हो और कहाँ से आए हो ?"....
और "चर्चा मंच" के इस अंक के अन्त में....
ये मजेदार कार्टून भी देख लें!
आज के लिए इतना ही....!!!
सुंदर चर्चा, आभार।
ReplyDelete--------------
मानवता के नाम सलीम खान का पत्र।
इतनी आसान पहेली है, इसे तो आप बूझ ही लेंगे।
सुन्दर है। आपकी काव्य पंक्तियां अच्छी हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा..
ReplyDeleteआदित्य के लिए सुन्दर पंक्तिया लिखने के लिए आभार.....
बहुत बढिया शाश्त्रीजी, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
चर्चा में एक साथ इतने सारे संकलन देख कर मन प्रसन्न हो जाता है,
ReplyDeleteशुक्रिया और आभार
bahut badhiya..
ReplyDeleteis baar to bahut hi shandar charcha ki hai..........sabhi padhne layak.
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा .. सारे चुने हुए पोस्ट हैं !!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर चर्चा, जो छूटे भी उन्हें आपने पढ़वा दिया, आभार ।
ReplyDeleteअच्छी लगी यह चर्चा शुक्रिया
ReplyDeleteउम्दा चर्चा, विविधतावो से भरी !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा शास्त्री जी ........
ReplyDeleteआज की चर्चा भी बहुत अच्छी लगी धन्यवाद्
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा..
ReplyDeleteआनन्द आ गया शास्त्री जी। आज आपसे बात करना भी सुखद रहा।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
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www.manoramsuman.blogspot.com
बढ़िया
ReplyDeleteबी एस पाबला
बढ़िया शैली..रुचिकर...आभार. आनन्द आया.
ReplyDeleteचर्चित चर्चा. धन्यवाद.
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