वन्दना गुप्ताज़िन्दगी ना वादा किया ना वादा लिया मगर फिर भी साथ चले ना इंतज़ार किया ना इंतज़ार लिया मगर फिर भी हमेशा साथ रहे…..
| जाने कब से मैं इस सफ़र में हूँ मंज़िल मिली नहीं डगर में हूँ बहलाते रहे मुझे अँधेरे हर सू मुझे ये गुमाँ रहा सहर में हूँ……
|
ऐसे लोगों को जो कि पहली बार हिन्दी में टाइप कर रहे होते थे, उन्हें सबसे अधिक गूगल इंडिक ट्रांसलिटरेसन टूल ही पसंद आता था। जो लोग अब तक गूगल ट्रांसलिटरेसन टूल से अब तक ऑनलाइन लिख रहे थे …..अब वह सीधे अपने कंप्यूटर पर आफ-लाइन भी फोनेटिक हिंदी टाइपिंग कर सकते हैं| गूगल ने अपना इंडिक ट्रांसलिटरेशन आईएमई टूल ज़ारी कर दिया है। गूगल ने यह टूल एक साथ 14 भाषाओं (अरबी, फ़ारसी, ग्रीक, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, नेपाली, पंजाबी, तमिल, तेलगू और ऊर्दू) में टाइप करने के लिए ज़ारी किया है।
|
शायद, आज मैं मिलूँगा तुमसे ! (हिमांशु) आज सुबह धूप जल्दी आ गयी नन्दू चच्चा को महीने भर का काम मिल गया छप्पर दुरुस्त हो गया आज बगल वाली शकुन्तला का "सर्दी नहीं पड़ेगी" की भविष्यवाणी फेल हो गयी - पन्ना बाबा चहक उठे
| जो देखा भूलने से पहले : मोहन राणा :भीगती शाम ठिठुरती सर्द पानी में दरवाजे के बाहर ही है अब नया साल समय को बाँचता दस्तक देने से पहले कुछ छुट्टे पैसे ही बचे हैं उसकी जेब में ये कुछ दिन, …..
|
लघुकथादुष्कर्मी- प्राण शर्मापंद्रह वर्षीय दीपिका रोते-चिल्लाते घर पहुँची. माँ ने बेटी को अस्तव्यस्त देखा तो गुस्से में पागल हो गयी– ” बोल ,तेरे साथ दुष्कर्म किस पापी ने किया है?” ” तनु के पिता मदन लाल ने. ” सुबकते हुए दीपिका ने उत्तर दिया …..
|
आप भगवान को जानते हैं उससे भी बड़ा प्रश्न है मानते हैं या अपनी जिद को ही ठानते हैं न मानते हैं न मानने देते हैं पर अब तो आपको मानना ही पड़ेगा यूं ही अब तक तो चलता रहा पर अब यूं ही नहीं चलेगा…….
|
मगजपच्ची से भेजा-फ्राई तक - [image: brain] ज ब किसी मसले पर अत्यधिक सोच-विचार होता है तब अक्सर इसे *मगजपच्ची *या * मगजमारी* कहा जाता है यानी यानी बहुत ज्यादा दिमाग लगाना। स्पष्ट है कि ...
|
जैसा कि आप पहले पढ चुके हैं कि ताऊ की शोले फ़िल्म बनना रुक गयी तो गब्बर और सांभा वहां से भाग कर वापस जंगल की और पलायन कर गये थे. रास्ते मे गांव के बच्चों ने सांभा को पत्थर मार दिये थे तो सांभा तुतलाने लग गया था. गब्बर ने उसका इलाज जैसे तैसे करवाया और सांभा ठीक होगया.
गब्बर और सांभा की डकैती का धंधा फ़िल्म मे काम करने की वजह से छुट गया था. पूरा गिरोह बिखर गया था. वापस आकर दोनों ने जैसे तैसे अपना गिरोह वापस संगठित किया और इन दोनो की मेहनत रंग लाई. दोनो ने अपना डकैती का धंधा वापस जमा लिया. अब ५० कोस तो क्या ५०० कोस तक बच्चे बूढ्ढे जावान सब इन दोनों के नाम से डरने लगे थे. दिन दूनी रात चोगुनी उन्नति करते जारहे थे.
|
पतझर पील़ा पड़ गया पत्ता झरने को है वृक्ष से समय - समुद्र में विलीन होने को विकल है एक बूँद। बीते वक्त पर खीझना भी है रीझना भी ऐसे ही चलना है जीवन को सोचें क्या किया ? करना है क्या ?
| साहित्य-सहवास नव वर्ष आ रहा है - नव वर्ष आ रहा है उत्कर्ष आ रहा है सबके हृदय में जैसे नव हर्ष आ रहा है आओ फिर सपने देखें कुछ औरों के कुछ अपने देखें ये जानते हुए कि सपने टूट...
|
Posted by Shabdsudha '' दादी, पापा रोज़ शराब पी कर, माँ को पीटते हैं. आप राम -राम करती रहती हैं, उन्हें रोकती क्यों नहीं?''पोती ने नाराज़गी से पूछा. '' अरे तेरा बाप किसी की सुनता है?, जो वह मेरे कहने पर बहू पर हाथ उठाने से रुक जायेगा और फिर पति -पत्नी का मामला है, मैं बीच में कैसे बोल सकती हूँ? '' ''आप जब अपने कमरे में माँ की शिकायतें लगाती हैं, तब तो वे आपकी सारी बातें सुनते हैं, और फिर पति -पत्नी की बात कहाँ रह गई ? रोज़ तमाशा होता है ''………………..
|
|
कहते हैं कि हिन्दी पट्टी में हर कोई जन्मजात इतिहासकार और डाक्टर होता है। किसी भी रोग की चर्चा कीजिए हर किसी के पास उस रोग के दो-चार उपचार होते हैं। हर किसी के पास इतिहास का निजी संस्करण उपलब्ध रहता है। प्रमाणिक इतिहास केे प्रति उदासी या लापारवाही हिन्दी समाज की आम प्रवृत्ती प्रतीत होती है। ऐसे समाज में सहज भाषा में प्रमाणिक इतिहास को प्रस्तुत करना बुद्धिजीवियों का जरूरी दायित्व है। प्रो. नयनजोत लाहिड़ी की चर्चित पुस्तक फाइडिंग फारगाटेन सिटीज का हिन्दी में अनुदित होना इस दिशा में एक सरहानीय प्रयास है। प्रोफेसर लाहिड़ी प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व की आधिकारिक विद्वान है। प्रो. लाहिड़ी ने पुस्तक की भूमिका में ही स्पष्ट किया है कि वह यह पुस्तक पुरातत्वविदों के साथ ही आम पाठकों को भी ध्यान में रख कर लिख रही हैं…………..
|
येहूदा आमीखाई की ये कविता पहले भी लगा चुका हूं. आज पुनः लगा रहा हूं. इसलिए लगा रहा हूं कि इसकी प्रासंगिकता कभी ख़त्म नहीं होती: येहूदा आमीखाई (१९२४-२०००) इज़राइल में पैदा हुए बीसवीं सदी के बहुत बड़े कवि थे. तीस से अधिक भाषाओं में अनूदित हो चुके येहूदा की कविता युद्ध और नफ़रत से जूझ रहे संसार की ख़ामोश पुकार है. उनके बग़ैर बीसवीं सदी की विश्व कविता ने अधूरा रह जाना था. ज़्यादा लिखने से बेहतर है उनकी आख़िरी रचनाओं में से एक आप के सम्मुख रख दी जाए. मेरे समय की अस्थाई कविता हिब्रू और अरबी भाषाएं लिखी जाती हैं पूर्व से पश्चिम की तरफ़ लैटिन लिखी जाती है पश्चिम से पूर्व की तरफ़ बिल्लियों जैसी होती हैं भाषाएं
|
जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह
कल भूख से मर गए कुछ गरीब बच्चे मेरे शहर में यह हृदय-विदारक खबर जब किसी चैनल पर न आई इक नए युवा पत्रकार का दिल की धड़कन घबराई होकर परेशान उसने यह बात अपने संपादक से उठाई संपादक ने कहा - बड़े नौसिखिया हो यार ! किसने बना दिया हैं तुमको आज का पत्रकार? जो मरे वो तो बच्चे थे, बस भूखे लाचार इसमें इन्वोल्व न कोई नेता, भाई या तडीपार
| अजीत कुमार मिश्रा ने पूछा है - - - - मैं ने वोडाफोन कनेक्शन अप्रेल 2009 में लिया था नबम्बर 2009 में 7 माह बाद यह कहकर बंद कर दिया कि डाटा मिस मैच है। जब बिना सही तरह से जांच किया बिना फोन कनेक्शन जारी नहीं किया जा सकता है तो 7 माह बाद कनेक्शन को बंद करना क्या वैधानिक है? यदि नहीं तो इसके खिलाफ कहा जाया जा सकता है? कानूनी सलाह - - - -
मिश्रा जी,
यदि डाटा मिस मैच है तो कनेक्शन को बंद करना अनुचित नहीं है और वैधानिक भी नहीं है। लेकिन आप के द्वारा दी गई सूचनाओं को आप की सेवा प्रदाता कंपनी को आप को कनेक्शन देने के पहले ही जाँच लेना चाहिए था। उस से त्रुटि यह हुई कि उस ने आप को गलत पाई गई सूचनाओं के आधार पर कनेक्शन दे दिया। ……
|
मेरे शुभचिंतक जुटे हैं दिलोजान से मिटाने बदनुमा धब्बों को मेरे चेहरे से शुभचिंतक जो ठहरे लहूलुहान हूँ मैं कुछ भी देख नहीं सकता समझा नहीं पाता हूँ किसी को कि ये धब्बे मेरी आँखें हैं! (अनुराग शर्मा)
| अमरलता --- --- मनोज कुमार हे अमरलता ! हे अमरबेल ! दिखने में कोमल पर क्रूर, चूसे पादप को भरपूर, टहनी-टहनी, डाली-डाली, छिछल रही है तू मतवाली,
| कविता टुकड़ों में – 3 1. अवसाद से भीगी आत्मा का बोझ लिये अंधी आस्था का सुर गूंगे स्वरों के सहारे काठ की घंटियाँ बजाने की कोशिश में है, कुछ और नहीं हमारी कमजोर सोच के कंधो पर सवार ये हमारा बौना अहं है.
|
बताऊंगा, बताऊंगा...इतनी जल्दी भी क्या है...जिसे जल्दी है वो पोस्ट के आखिर में स्लॉग ओवर में अच्छी पत्नियों को ढूंढ सकता है...अब ढूंढते ही रह जाओ तो भइया मेरा कोई कसूर नहीं है...लेकिन पहले थोड़ी गंभीर बात कर ली जाए...बात एक बार फिर रुचिका की...क्या रुचिका के गुनहगार को सज़ा दिलाना इतना आसान है जितना कि शोर मच रहा है... रुचिका गिरहोत्रा केस में घटनाक्रम तेज़ी से होने लगा है...उन्नीस साल तक जांच में जो नहीं हुआ वो पिछले नौ दिन से हो रहा है...देश के केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली कह रहे हैं कि रुचिका के गुनहगार को फांसी या उम्र कैद भी हो सकती है...लेकिन क्या ये इतना आसान है...अदालतें हमारी-आपकी सोच से नहीं चलतीं...अदालतों को ठोस सबूत चाहिए होता है....
आज रुचिका केस में दो अहम बातें हुईं...
|
. . नक्कार खाने में तूती बजाते है ब्लागर है लिख कर भूल जाते है
| "नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ....: एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी........और संवारा अमरेन्द्र ने देख कर बताइयेगा...: महफूज़"'' टूट जाऊँगा मैं तुमने सोचा यही , फिर भी देखो मैं पूरा नजर आ रहा | मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा …
| ये देश कलमबाजो का देश है जहाँ पुन्य आत्माए जन्म लेती है . भगवान ने इन्हें चिटठा नगरिया में रहने जगह क्या दे दी ये अब कलमबाजो के अघोषित भगवान बन गए है . यहाँ के हर जीव एक दूसरे को अपनी पोस्टो से जोड़ लेते है . ये जीव प्रेम प्रसंगों से लेकर घुड़का बाजी तक पोस्ट लिखने में माहिर है और समय समय पर अपनी टीप उलीचकर अपने प्रेम का इजहार करते रहते है .
|
प्रस्तुतकर्ता डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर लेबल: चुनाव, राजनीति, लोकतंत्र उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के स्थानीय निकाय के लिए चुनावी प्रक्रिया चल रही है। प्रत्याशियों का चयन हो चुका है, नामांकन प्रक्रिया हो चुकी है अब बस मतदान का इंतजार है। इसी इन्तजार के बीच मतदाताओं के खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया आसानी से चल रही है। (इसे एक आरोप कहा जा सकता है किन्तु यही सत्य है) टिकट का वितरण हुआ और कुछ दलों के बारे में यहाँ तक सुनने में आया कि धन का सहारा लेकर प्रत्याशियों का चयन किया गया। बहरहाल यह मुद्दा नहीं है, मुद्दा तो यह है कि………….
|
साल 2009 ने ग़मों को भुलाने का हौसला दिया, कई कहानियां लिखने का सामर्थ्य दिया, रूठ जाने जितने करीब के दोस्त दिए, जाते हुए इन पलों में आपके लिए ये एक छोटी सी कहानी. इसमें ओडी शब्द का अर्थ है बांस या खींप से बनाई गयी बड़ी जालीदार टोकरी जिसमें जानवरों को चारा डाला जाता है, पड़वा घर के बड़े कमरे को कहते हैं और जठे शब्द का अर्थ है जिस जगह. रात जब जागने लगती तो रेत के धोरे सोने चले जाते. दिन भर की थकी अल्हड़ जवान देह जैसे बेसुध सोयी हों ज़मीं के बिछावन पर. चाँद की रोशनी में रेत का अंग प्रत्यंग खिल जाता. मांसल देह अनंत लम्बाई तक फ़ैल जाती, चमकती गोरी सुडौल पिंडलियों को हवा धीमे धीमे बहती चूमती और संवारती जाती. वक्ष के तीक्ष्ण कटाव के हर बल को छू कर चांदनी किरचें बन बिखर जाती. उन्नत उरोज...
|
मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि उनके एक अधिकारी ने उन्हें दो टिकिट कैंसिल कराने को दिये. चार लोगों की रिटर्न जर्नी के टिकट थे, दिल्ली से चेन्नई तक के एसी - द्वितीय के. उन्होंने टिकिट कैंसिल कराये और पैसे वापस कर दिये जो कई हजारों में बनते थे. एक साधारण सी प्रक्रिया थी यह. अगले वर्ष अपनी एल०टी०सी० हेतु उन्हें रेलवे टिकिट के नम्बरों की आवश्यकता थी,………. भारतीय नागरिक - Indian Citizen
| का बताएं भैया! हम तो ठेठ गंवईहा ठहरे. कछु कहत हैं तो लोग मजाक समझत हैं. अरे भाई हमको मजाक आती ही नहीं है. लेकिन जो बात दिल से कह देत हैं (बिना दिमाग लगाये) वो मजाक बन जात है ससुरी. अगर हम बात दिमाग लगा के करत हैं तो लोगन का रोवे का परत है, का बताएं बड़ी समस्या हो गई है. अभी हम देखत रहे समस्या चहुँ ओर ठाडी है. टरने को नांव ही नहीं लेत है. लेकिन हम ठहरे गंवईहा बिना समस्या टारे हम ना टरे……….. ललित शर्मा
|
posted under Madhu-Muskan , PD by PD जो भी कामिक्स के शौकीन रह चुके हैं वे अच्छे से जानते हैं कि दूरदर्शन पर आने वाले "शक्तिमान" धारावाहिक से कई साल पहले मधु-मुस्कान में शक्तिमान नामक एक चरित्र प्रकाशित हुआ करता था.. एक झलक आप उसके एक पन्ने पर देखें.. इस मधु-मुस्कान के पृष्ठ के लिये मैं इस ब्लौग को धन्यवाद देता हूं और चलते-चलते बताता चलता हूं कि आप इस ब्लौग पर कई अतीत के बिखरे हुये कामिक्स का खजाना भी मिलेगा..
|
|
ना जाने क्यों इन बाँवरे सपनो के पीछे भागता हे ये चंचल मन , हर समय , या दिन के आठों पहर करता है जुगत इन्हें हकीकत में बदलने की चाहता है की इस दुनिया को अपने हिसाब से बदल दे, पर मुमकिन नहीं , …… वृंदा
|
गहिरी नदी अगम बहै धरवा, खेवन- हार के पडिगा फन्दा. घर की वस्तु नजर नहि आवत, दियना बारिके ढूँढत अन्धा..by Geetashree
कविता-- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना नए साल की शुभकामनाएं ! खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को नए साल की शुभकामनाएं ! जांते के गीतों को बैलों की चाल को करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को नए साल की शुभकामनाएं !
|
आखिरकार लगभग एक सप्ताह के ग्राम प्रवासके बाद वापसी हो ही गई । आजही दोपहर कोवापसी हुई है । अभी तो उंगलियों में गांव कीमीठी मीठी ठंड कास्वाद भी नहीं उतरा हैइसलिए ज्यादा तो शायद नहीं लिखा जाएगा ।मगर एकब्लोग्गर के सामने कंप्यूटर हो औरवो पोस्ट न लिख मारे तो फ़िर काहे काब्लोगरजी । और हम तो घोषित ब्लोग्गर हैं जी ...
| आज के लिए तो इतना ही…….. कैसा लगा आपको “चर्चा-मंच” का यह अंक?…… नमस्कार!!
|
बहुत अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंआने वाला साल मंगलमय हो।
सादर अभिवादन! सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंवाह इतनी सामयिक चर्चा ! एक दम एग्रीगेटर सी लगी कि इधर ब्लागर ने publish बटन दबाया कि उधर ये चर्चा में सम्मिलित. :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा..
जवाब देंहटाएंताऊ पहेली ने वाकई कमाल कर दिया कीर्र्तिमान बनाने में...जय हो सबके स्नेह का!!
आज और कल जुड़े रहे सब पहेली से!!!
nice
जवाब देंहटाएंवाह शाश्त्रीजी, इतनी विस्तृत और सुंदर चर्चा के लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद. आपने तो आज सुबह ५ बजे तक की सब पोस्ट समेट ली.
जवाब देंहटाएंनये साल की घणी रामराम.
शास्त्री सुंदर चर्चा- बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा शास्त्र जी ....आभार स्वीकारें
जवाब देंहटाएंविस्तृत और सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सुंदर चर्चा!
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी, अति सुन्दर चर्चा लगी, धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंaaj to bahut hi sundar charcha ki hai.........har post par rukna pad raha hai.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुर्लभ चर्चा की है आपने। बधाई एवं धन्यवाद। नव-वर्ष मंगलमय हो।
बहुत विस्तृत और सुंदर चर्चा. धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसभी शानदार और सुन्दर लिंक सजा दिये हैं आपने । आभार ।
जवाब देंहटाएंParrot in Hindi
जवाब देंहटाएंRabbit in Hindi
Saturn in Hindi
Tortoise in Hindi
Sparrow in Hindi