बाबा समीरानंद बता रहे हैं 2010 में आपका भविष्य, आश्रम में आईये अपना भविष्य देखिये और प्रसाद पाईये.वर्ष २०१० में आपके चिट्ठे का भविष्य: श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी सुनें अपने चिट्ठों का वर्षफल श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी के श्री मुख से. यह आपके चिट्ठे के अंग्रेजी नाम के आरंभिक शब्द पर आधारित है: तुरंत देखें, आपका चिट्ठा किस शब्द से शुरु होता है और जानें वार्षिक फल: सर्वप्रथम हिन्दी ब्लॉगजगत का संभावित भविष्य: वर्ष २०१० मिश्रित फलकारी रहेगा. जहाँ एक ओर नये चिट्ठाकार निरंतर जुड़ते जायेंगे, कुछ पुराने चिट्ठाकार विवादों में पड़ अपने चिट्ठे बंद करने की कागार पर आ जायेंगे. गुटबाजी की संभावनाएँ बनी रहेंगी और सच होने के बाद भी नकारी जायेंगी. नये एग्रीगेटर्स आयेंगे, पुरानों में सुधार आयेगा और एक नया रुप प्रस्तुत किया जायेगा. चर्चा मंचों की बाढ़ आ जायेगी. बात बात में विवाद होंगे जिनके मुख्य विषय लिंगीय भेदभाव, धर्म और व्यक्तिगत महत्ता में कमी होंगे. अनेकों चिट्ठाकारी सम्मेलनों और मिलनों का आयोजन होगा.
आज की चर्चा प्रारंभ करते हैं. राजू बिन्दास! की मार देब चोट्टा सारे.. देखिये आप भी ये क्या कह रहे हैं.
मेरे पड़ोस में एक अधिकारी रहते थे. आजमगढ़ के रहने वाले थे. छुट्टियों में कभी-कभी उनका एक भतीजा आता था नाम था बंटी. उम्र यही कोई आठ-नौ साल. खाने पीने में थोड़ा पिनपिनहा. मैं और अधिकारी का बेटा अक्सर बंटी को छेड़ते थे, कुछ यूं- बंटी, दूध पी..ब ? नाहीं.. बंटी, बिस्कुट खइब..? ना...हीं... बंटी, चाह पी ब... ना..आं... दू घूंट मार ल...मार देब चोट्टïा सारे. इतना कह बंटी पिनपिनाता हुआ उठ कर चला जाता था. कुछ दिन पहले एक वाक्या बंटी की याद दिला गया. मैंने सोचा कुछ ब्लॉगर्स जो अच्छा लिखते हैं, उनकी काबिलियत का फायदा अपने पेपर के लिए उठाया जाए. दो-तीन लोग शार्ट लिस्ट हुए. इत्तफाक से सभी हाईफाई प्रोफाइल, हाई सैलरी वाले थे. ब्लॉग में पूरा पुराण लिख मारते हैं
ताऊ डॉट इन पर पहले चलती थी गोलियां अब हो रही है गजलों की बौछार, हो जाईये होशियार, गब्बर तमाचे भर कर शेर कर रहा है प्रहार अरे ओ सांभा ! सुनता है मेरी गजल या दबाऊं घोडा? गब्बर और सांभा की डकैती का धंधा फ़िल्म मे काम करने की वजह से छुट गया था. पूरा गिरोह बिखर गया था. वापस आकर दोनों ने जैसे तैसे अपना गिरोह वापस संगठित किया और इन दोनो की मेहनत रंग लाई. दोनो ने अपना डकैती का धंधा वापस जमा लिया. अब ५० कोस तो क्या ५०० कोस तक बच्चे बूढ्ढे जावान सब इन दोनों के नाम से डरने लगे थे. दिन दूनी रात चोगुनी उन्नति करते जारहे थे. साल २००९ बीतने को है. गब्बर और सांभा बैठे हैं. गब्बर को गजल सुनाने का बडा शौक हैं. अब ऐसे शातिर डाकुओं के पास गजल सुनने कौन आये? और गब्बर को सनक सवार की वो तो गजल सुनायेगा और गजल सुनायेगा तो कोई दाद खुजली देने वाला भी चाहिये.वो देखो.कौन बैठा, किस्मतों को बांचता है, उसे कैसे बतायें, उसका घर भी कांच का है.नहीं यूँ देखकर मचलो, चमक ये चांद तारों सी,जरा सा तुम संभलना, शोला इक ये आंच का है.
ब्लॉग जगत के एक नए चिट्ठाकार से परिचय करवाते हैं.मैं शबनम हूँ..ओस की नन्हीं बूँद ये कहती हैं क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलती पर शबनम की कविता पढ़िए.
100 वीं पोस्ट और नूतन वर्षाभिनन्दन २०१० (ललित डोट कॉम) मैने इस ब्लॉग पर 15 सितम्बर 2009 मंगलवार हिंदी दिवस से लिखना प्रारंभ किया था. सामाजिक सरोकारों से संबधित विषयों पर एक अलग ब्लाग होना चाहिए. यह सोच कर ललित डाट कॉम का उदय हुआ. जिस दिन मैंने इस पर पहली पोस्ट डाली, उस दिन हिंदी दिवस था. मेरा प्रथम आलेख हिंदी दिवस को ही समर्पित था.इन १०० पोस्टो में मैंने ब्लाग जगत को बड़े करीब से साक्षी भाव से देखा है. यहाँ होती हुयी हलचलों से मैं वाकिफ हुआ. ब्लॉग के बुखार को समझने की कोशिश की. जीवन में नए ब्लॉग मित्र बने. सभी से मुझे सहयोग मिला. यह आभासी दुनिया भी वास्तविक जीवन के बड़े करीब लगी. क्योंकि सारे किरदार तो वहीं से आते हैं. कोई अलग दुनिया नहीं है. वही दुनिया की अच्छाईयाँ-बुराईयाँ, पक्ष-विपक्ष मैंने यहाँ पाए.
अजय झा जी आ गए हैं गांव से, कई दिनों नए नहीं खुली थी इनकी फाईला, लेकर आयें हैं चर्चा दो लाईना सिर्फ़ दो पंक्तियां ,,,हमेशा की तरह (चिट्ठी चर्चा ) अब तो मुझे यकीन हो गया है कि अभी भी हमारे बीच कुछ मित्र /शत्रु हैं जिनका मकसद यहां लिखने/पढने .......हिंदी की सेवा से इतर भी की उद्देश्यों की पूर्ति में लगे हैं । और न हो तो बस कुछ भी कह सुन कर , अपनी वजह बेवजह की आपत्तियां दर्ज़ करा के माहौल को अशांत करने का प्रयास करते हैं । मैं ये तो नहीं कहूंगा कि आप अपना ये काम छोड दें ......क्योंकि चाहे अनचाहे आप उसे नहीं छोड पाएंगे........आखिरकार वो आपका चरित्र जो ठहरा । मगर ......हां , मगर .......गौर से सुन लें कि ......कहीं ऐसा न हो कि शराफ़त आखिरकार अपनी शराफ़त का आवरण हटा दे .......तो वो दिन , वो पल आपके लिए आखिर होगा ...कम से कम ब्लोग्गिंग के लिए तो अवश्य ही ...।उम्मीद है कि ईशारा काफ़ी होगा ....और विश्वास है कि पहले की तरह आप मानेंगे नहीं ॥
पढ़िए हो जाएगी पेट में हलचलें, महेंद्र मिश्रा जी लाये हैं आपके लिए हंसी के गुलगुले हंसी के गुलगुले ताउजी के नाम... साल 2009 अपने जाने की घडियों का इंतज़ार कर रहा है . सन 2010 आने को बेताब है उसके आगमन की ख़ुशी में हम क्यों न थोडा हंस ले मुस्कुरा लें . आज के चुटकुले ताउजी के नाम है .
एक नए बाबा जी से मिलवाते हैं, सभी समस्या का समाधान लाये हैं. अपने को असली बाबाजी बतलाएं हैं. समस्या बताइए..समाधान पाइए ! सुनिए लंगोटा नंद महामठ वाणी ब्लागवाणी के सभी भक्तों का कल्याण हो..क्या आपके ब्लॉग पर टिप्पणियां कम आ रही हैं? क्या आपकी प्रेमिका नही पट रही है? क्या आपकी पत्नी आपकी रोज पिटाई कर रही है? क्या आपकी उपरी आमदनी कम हो रही है ? क्या भ्रस्टाचार में लिप्त होकर भी आप कमाई नही कर पा रहें हैं? तो देर किस बात की है ..आइये लंगोटा नंदजी महाराज जी के पास ..अपनी टिपण्णी द्वारा अपनी समस्या बतावें और समस्याओं से मुक्ति पावें !
ठीक दस साल पहले मिली थी वो मुझे ! दिल के चमन में एक कली खिली थी.कब न जाने यु ही पलक झपकते दस साल गुजर गये, पता ही न चला। अचानक मुझसे मिलना और फिर कुछ ही लम्हों मे सदा के लिये मेरे साथ ही ठहर जाने का घडी भर मे लिया उसका वो फैसला आज भी वक्त बे-वक्त मुझे उन लम्हों के बारे मे सोचने पर मजबूर कर देता है। मैं समझता हूं कि इतनी जल्दी फैसला कोई भी प्राणि दो ही परिस्थितियों मे लेता है, एक तो तब जबकि उसे जो मिला है
इस तरफ भी देखिये मचा हुआ है युद्ध. ब्लोगर है या ब्लागरा कौन शब्द है शुद्ध, बात आगे बढ़ गई, कहाँ थी और कहाँ तक पहुँच गई,वर्ष बीतते बीतते मुझे मिली यौनिक और लैंगिक उत्पीडन करने की धमकियां! ओह! मैं ब्लागजगत में असहमतियों के मुद्दों को यही सार्वजनिक मंच पर निपटा लिया जाना उचित समझता हूँ . मुझे धमकाया जा रहा है कि मैं अपने वकील /विधि परामर्शी से मिल कर एक मामले में मुतमईन हो लूं -सो मामला यहाँ महा पंचायत में रख रहा हूँ,बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो ,ज़बाने ख़ल्क़ को नक़्क़ारा ए ख़ुदा समझो.
तब सात समंदर पार का सपना, सपना ही बस रह जाता है
हर दिन आईने के सामने, अब और ठहरना मुश्किल है
अक्स देखते ही ख़्वाबों का, ताजमहल ही ढह जाता है
चलते चलते-एक नजर
मुरारी पारीक जी की मिष्टी महफ़िल सजी हुयी है, रेडियों मिष्टी 95 ऍफ़ एम् पे धडाधड रचनाएँ पढ़ी जा रही है. आप भी सुने महफ़िल में नीरज जी गोस्वामी, समीर लाल जी "समीर", राजेश कुमार "राजेशा",
"अपने ही समाज के बीच से निकलती हुई दो-दो लाइनों की कुछ फुलझड़ियाँ-2"
रक्षक ही भक्षक बनें,किसे सुनाएँ पीर|
शांति का दूत
लघुकथा शांति का दूत
--- --- मनोज कुमार