फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

रविवार, मार्च 12, 2023

"शब्द बहुत अनमोल" (चर्चा-अंक 4646)

सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है 

(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)

"शब्द" बहुत अनमोल होते हैं। 

ये घाव भी देते हैं और मरहम भी लगते हैं। 

कुछ शब्द बोलकर ही हम किसी को श्रापित कर देते हैं 

और वरदान या दुआ भी देते हैं 

 इसलिए कहते हैं कि-सोच समझ कर बोले 

स्वस्थ रहें सब जगत मेंदाता दो वरदान।

शीत ग्रीष्म-बरसात मेंदुखी न हो इन्सान।

चलिए दुआओं भरी इन शब्दों के साथ शुरू करते हैं

 आज का ये चर्चा अंक 

--------------------

एक एक दोहा अनमोल जिनका मनन करना ही चाहिए 

 सोलह दोहे "शब्द बहुत अनमोल" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

हरे-भरे सब पेड़ होंछाया दें घनघोर।

उपवन में हँसते सुमनमन को करें विभोर।

--

ज्ञान बाँटने से कभीहोंगे नहीं विपन्न।

विद्या धन का दानकरबन जाओ सम्पन्न।

----------------------

जीवन में समंजस्य बैठना बहुत जरूरी है कुछ खुलकर कहना होता है

 कुछ सहना भी होता है.... 

कम शब्दों में बड़ी बात कहना बिभा दी को बखूबी आता है।  

ज्वार/भाटा


"जानती हूँ, मुझे अनुरागी चाहिए था। लेकिन अनुराग लिव इन में रहा जाए तभी साबित हो यह नए शास्त्र के हिसाब से भी सही नहीं है।"

----------------------------------

एक पुकार बुलाती है हमेशा मगर....हम कानों पर हाथ रखे होते हैं 

लाखों में कोई एक आत्मा ही इस पुकार को सुन पाती है... 

एक पुकार बुलाती है जो

कोई कथा अनकही न रहे  

व्यथा कोई अनसुनी न रहे  , 

जिसने कहना-सुनना चाहा 

वाणी उसकी मुखर हो रहे   !

----------------------

भ्र्ष्टाचार कुकुरमुत्ते की तरह फैल चूका है

अगर इसे खत्म करना है तो शुरुआत खुद से ही करनी होगी....

भ्रष्टाचारअभी अचानक नहीं है निकला,              
मानव हृदय को जिसने कुचला,                
विविध रूपधर भर धरती में
अवलोक रहा है बारंबार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
ज्ञान नहीं है,तर्क नहीं है
जन है जग है मोह कई है
----------------------------चलिए मिलते हैं आत्ममुग्धा जी के माध्यम से  एक अद्भुत व्यक्तित्व से सत-सत नमन है उन्हें 

कला और कलाकारआज मैं मिली पदमश्री डॉ. यशोधर मठपाल से , उनके लोक संस्कृति संग्रहालय में । मठपालजी की उम्र  85 वर्ष  है, लेकिन एनर्जी इतनी कि वो संग्रहालय दिखाने हमारे साथ चल लिये अपनी छड़ी लेकर । हर चीज के बारे में वो बड़े उत्साह से बता रहे थे और बहुत ही अपनेपन से अपनी सहेजी हुई धरोहर दिखा रहे थे। फाइन आर्ट गैलेरी में मैं उनकी बनायी बड़ी बड़ी पेंटिंग देखकर अचंभित हो गयी तो उन्होने हँसते हुए कहा कि "मैं लगभग 40000 पेंटिंगस् बना चुका हूँ....------------कला और कलाकार की बाते चल रही हो और इस जिंदादिल शख्सियत का जिक्र ना हो जो खुद तो मुस्कुराता ही रहता था और हमें भी ठहाके लगाने पर मजबूर करता था सतीश जी का असमय जाना बड़ा अफसोसजनक रहा बिनम्र श्रद्धांजलि उन्हें जाने भी दो यारों - Satish Koushik RIP 9 March 2023

और फिर हमारे पास भी तो कुल चार ही दिन है जीवन में, काम करते रहो अपना और ऐसा कुछ कर चलो कि कोई तनिक ठहरकर ओम शांति लिख दें, समय हो तो कंधा देने आ जाए, समय हो तो दो घड़ी बुदबुदा दें, दो घड़ी सम्हल जाये अपने हालात में, दो घड़ी विचार लें, दो घड़ी मुस्काते हुए देख लें घर परिवार को कि सब ठीक है ना, अपने बाद की जुगत से सब ठीक चलता रहेगा ना ...क्योंकि वो कहते है ना - "उड़ जायेगा हंस अकेला"
------------------------------
महिलाओं के अधिकार के बारे में जगरुक करता 
अनीता सुधीर जी का एक लेख 

महिलाओं के अधिकार

महिलाओं के अधिकार से तात्पर्य ऐसी स्वतंत्रता से है जो व्यक्तिगत बेहतरी के लिये तथा सम्पूर्ण समुदाय की भलाई के लिये आवश्यक है।
प्रत्येक महिला या बालिका का समाज में जन्मसिद्ध अधिकार है।  न्याय के मूलभूत सिद्धांतों के तहत वमानवीय दृष्टिकोण से ये नितांत आवश्यक है कि महिलाओं को पूर्ण संरक्षण प्रदान करे व उन्हें स्वयं के निर्णय लेते हुए जीवन जीने का अवसर प्राप्त हो।
--------------------------
ज्योति जी बता रही है कुछ किचन टिप्स 

कटा हुआ तरबूज फ्रिज में क्यों नहीं रखना चाहिए?

गर्मियों के मौसम में ठंडी चीजें ज्यादा अच्छी लगती है। इसलिए अक्सर लोग फलों को ठंडा करके खाते है। यदि आप भी तरबूज काटकर फ्रिज में रखकर ठंडा करके खाते है तो सावधान हो जाइए। फ्रिज में ठंडा किया हुआ तरबूज आपको नुकसान पहुंचा सकता है! 
तरबूज में 92 प्रतिशत पानी होता है, जो गर्मी में बहुत फायदेमंद होता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन और फाइबर आदि कई पौष्टिक तत्व पाए जाते है।
-----------------------
कहते हैं क्षमादान सबसे बड़ा दान है 
दूसरों को क्षमा करना खुद के शांति के लिए भी जरूरी है  


दूसरों को क्षमा करें भले ही किसी ने माफ़ी ना भी मांगी हो... 
उनका व्यवहार उनकी जागरूकता, 
संस्करण के स्तर पर निर्भर करता है... उन्हे माफ कर दो.
--------------------जब शांति की बात चल ही रही है तो आईये जानते हैं कि-"शांति" शब्द यूँ ही नहीं बोलते काश हमारी पिछली पीढ़ी हर बात को हमें एक कर्मकांड बनाकर नहीं सौपती बल्कि उसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी समझाती तो आज हम अपने ही सनातन धर्म से यूँ अनभिज्ञ नहीं रहते एक बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक लेख,जिसको साझा करने के लिए गगन जी को तहे दिल से शुक्रिया "शांति" का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है :

आज मन में पता नहीं क्यूँ एक के बाद एक प्रश्न अपना सर उठा रहे थे ! ऐसे ही एक सवाल के बारे में मैंने पंडितजी से फिर पूछ लिया कि पूजा समाप्ति पर हम "शांतिका उच्चारण तीन बार क्यों करते हैं ?
रामजी ने बताया कि शांति एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह सब जगह सदा विद्यमान रहती है। जब तक इसे हमारे या हमारे क्रिया-कलापों द्वारा भंग ना किया जाए। इसका यह भी अर्थ है कि हमारी गति-विधियों से ही शांति का क्षय होता है पर जैसे ही यह सब खत्म होता हैशांति पुनबहाल हो जाती है। 

आज का सफर बस यहीं तक 
फिर मिलती हूँ गुरुवार को 
तब तक आज्ञा दीजिये 
आपका दिन मंगलमय हो 
कामिनी सिन्हा 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका बहुत-बहुत आभार @कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक भूमिका और एक से बढ़कर एक विविधरंगी रचनाओं के सूत्र देती चर्चा, मन पाए विश्राम जहाँ को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।

    जवाब देंहटाएं
  4. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।