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रविवार, अप्रैल 02, 2023

'काश, हम समझ पाते, ख़ामोश पत्थरों की ज़बान'(चर्चा अंक 4652)

शीर्षक पंक्ति- आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना 'घड़ीसाज़ - - - --' से। 

सादर अभिवादन। 
रविवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।


काश, हम समझ पाते, ख़ामोश
पत्थरों की ज़बान, दिल की
गहराइयों से पुकारें, लौट
आएगी आवाज़,

बहते समय के स्रोत होते हैं बहोत
ही अप्रत्याशित, दो काँटों के
दरमियां झूलता सा
रहता है घड़ीसाज़,

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--

उच्चारण: दोहे "उल्लू बन जाना नहीं" 

मूर्खदिवस हो रहेभद्दे आज मजाक।
प्रथा अनोखी देखकर
लोग हुए आवाक।।
--
जाने कैसे चल पड़ाजग में अजब रिवाज।
बुद्धिमान मूरख बने
मूर्ख दिवस पर आज।।
--
मद्धम ही सही जल तरंग सा
है ज़िन्दगी का साज़,
हज़ार ग़म लिए
सीने में, न
बदले
जीने का अंदाज़,
--
लिखने का नैतिक दुस्साहस !
करते है
कुछ
मेरे जैसे लोग
कुछ
तुम में से भी होंगे
बिना जाने
कि
कैसे एक एक शब्द
एक एक वाक्य
तुम्हारा पर्याय बन
जुट जाता है
उस रचना में
--
चांद तन्हा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां-कहां तन्हा,
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुंआ तन्हा,
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा,
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी
दोनों चलते रहे कहां तन्हा,
जलती-बुझती सी रोशनी के परे
सिमटा-सिमटा सा एक मकां तन्हा,
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा… 
--
कोई दूसरी दुनिया है तुम्हारा साथ
जहाँ हँसने से उजाला होता है
तुम्हारे होने भर से समय रुक जाता है
घड़ियों की चाल बदल सकती हो तुम
--

बातों में वही शब्द,

होठों पर वही मुस्कुराहट,

सब कुछ वही है,

फिर भी मुझे क्यों लगता है

कि हम वैसे नहीं रहे,

जैसे कभी हुआ करते थे? 

--

उठो लाल - ANTARDHWANI 

पूरी रात नींद भर सोकर
मन से तमस दूर कर डाला,
बाल सूर्य ने आँखें खोलीं
पूरा विश्व लाल कर डाला।
--
बस उसी दिन से  जीवन को देखने का दृष्टिकोण बदल गया ।बात बात पर रोना बंद हो गया।
  शुरुआत हुई, उस सुनहरी किरण से जो काले बादलों के पीछे से झाँककर आश्वस्त करती है, कि बस दुःख अब समाप्त हुआ चाहते हैं। फिर उस किरण का विस्तार फैलता गया, और अंतत: बादल छंट गया, उजली धूप ने डेरा डाला, और आँसू बरसना ही भूल गए।
--
इतने में घंटी बजी और मेजबान लोग दरवाज़े की ओर बढ़ गये. आगंतुक बिना किसी संकोच के अन्दर आ गया. डाइनिंग टेबल पर अपना भारी-भरकम बैग रख एक सीट पर कब्ज़ा करके बैठ गया. उनकी बातों से लगा कोई और भी आने वाला है. एक बार घन्टी और बजी. एक और बन्दा बिना तक़ल्लुफ़ के आ कर सामने बैठ गया. अब छ: सीटें थीं और आदमी भी छ: थे. किसी के साथ बेइंसाफी की गुंजाईश दिख तो नहीं रही
--

आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति।
    आपका बहुत-बहुत आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. चर्चा में अमावा को स्थान देने के लिये हृदय से धन्यवाद...🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. हमेशा की तरह पैने और चुटीले दोहे...शात्री की का सतत लेखन बहुत प्रभावित करता है...बहुत ख़ूब...🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. दो काँटों के बीच ज़िंदगियाँ निकल जाती हैं...घड़ीसाज के माध्यम से बात कहने का अद्भुत अंदाज़...बहुत ख़ूब...👏👏👏

    जवाब देंहटाएं
  5. निश्चय ही दुस्साहस होता है शब्दों को लिखने का...

    विराट होगा
    उनके अर्थों (अनर्थों !)
    का फैलाव...

    बेहद संवेदनशील रचना...बहुत ही बढ़िया...👏👏👏

    जवाब देंहटाएं
  6. सेल्युलाइड की चकाचौंध ज़िन्दगी के बाहर इंसान की असली ज़िन्दगी होती है...न मिलता ग़म तो बर्बादी के अफ़साने कहाँ जाते...बेहतरीन अदाकारा मीना कुमारी से रूबरू कराने के लिये धन्यवाद...🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. अनकहे किस्से ही जमापूँजी हैं ज़िन्दगी की...

    तुम्हारे होने भर से समय रुक जाता है
    घड़ियों की चाल बदल सकती हो तुम

    बेहतरीन शब्द विन्यास...उम्दा रचना...🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  8. अत्यंत सुंदर प्रस्तुति..... मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. क्या था...साथ है बस इतना ही काफ़ी नहीं है क्या...जो था वही इस जन्म के लिये बहुत है...नवीनता की तलाश व्यक्ति को पुराने से दूर करने लगती है...इस कविता में भावाभिव्यक्ति बहुत ही ख़ूबसूरत तरह से की गयी है...जान के भी अनजान बने रहना कितना सुखद है...सुन्दर रचना...👏👏👏

    जवाब देंहटाएं
  10. अरे वाह...बहुत दिनों के बाद इतना प्यारा बालगीत पढ़ने को मिला...बचपन में इसी आशय की कविता हमारी पाठ्यपुस्तक में होती थी...बहुत ही सुंदर रचना...उठो लाल...🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  11. अपने हिस्से की धूप को संजो के रखना चाहिये...अपनों की यादें हमेशा साथ होती हैं और हमारे जीने का सम्बल भी...विचारों को शब्द देना कठिन होता है...हर किसी के लिये उन्हें व्यक्त कर पाना सम्भव नहीं होता...अद्भुत भावाभिव्यक्ति...अत्यन्त सराहनीय...🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीया अनीता सैनी "दीप्ती" जी ! सादर वन्दे मातरम !आपको , आदरणीय डॉ. शास्त्री साहब एवं समस्त चर्चामंच परिवार को , नवरात्री , श्री राम नवमी एवं नव संवत की हार्दिक शुभकामनाएं !रचना के भाव को स-सम्मान मंच प्रदान करने के लिए आपका बहुत बहुत साधुवाद !सभी सम्मानित रचनाकार महानुभाव को बहुत बधाई अभिनन्दन !

    जवाब देंहटाएं
  13. सराहनीय चर्चा, उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत बढ़िया प्रस्तुति. मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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