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मंगलवार, मई 30, 2017

"मानहानि कि अपमान में इजाफा" (चर्चा अंक-2636)

मित्रों 
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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कोई और नहीं बस मैं! 

क्योंकर अक्सर ऐसा होता है 
मैं होता हूँ ख़ुद ही ख़ुद के साथ 
कोई और नहीं बस मैं लड़ता हूँ 
झगड़ता हूँ उलझता हूँ 
बस यूँ ही ख़ुद के साथ... 
कविता मंच पर Lav Tomar 
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पर्यावरण गीत 

है प्रकृति का गीत है पर्यावरण 
वनों का प्रतीक है पर्यावरण ... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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हमें आज भी हमदर्दी है  

१३२ साला कांग्रेस से 

हमें आज भी हमदर्दी है १३२ साला कांग्रेस से जो बहुत दम्भ से कहती है कांग्रेस में विचारकों की कोई कमी नहीं है लेकिन जब पाकिस्तानी प्रेम से संसिक्त मणिशंकर अइयर जैसे लोग एक तरफ पत्रकारों से बदसूलकी और दूसरी तरफ हुर्रियत की तरफ इस निगाह से देखते मिलते हैं :हुर्रियत थूक दे तो चाटने का मौक़ा मिले -तब कांग्रेस का कथित थिंक टेंक कहने लगता है यह उनका निजी वक्तव्य है कांग्रेस का उससे कोई लेना देना नहीं है। 
Virendra Kumar Sharma 
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तानाशाह का काम 

किसी भी बहाने से चल सकता है

अनाड़ी कारीगर अपने औजारों में दोष निकालता है।
पकाने का सलीका नहीं जिसे वह देगची का कसूर बताता है... 
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जब आँखों ही आँखों में, मिलते जवाब

.. जब आँखों ही आँखों में, मिलते जवाब, 
कह दूँ कैसे नहीं होती उनसे मुलाक़ात | 
लोग कहते हैं मुझसे...खफा वो जनाब, 
उठता फिर भी नहीं मेरे लब पे सवाल 
Harash Mahajan 
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रिंद की ज़िंदगी... 

फंस गए शैख़ पहली मुलाक़ात में 
सर-ब-सज्दा पड़े हैं ख़राबात में... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil 
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नसीब की बात 

आँसुओं से सींच कर
दिल की पथरीली ज़मीन पर 
मैंने कुछ शब्द बोये थे 
ख़्वाबों खयालों और
दर्द भरे अहसासों का
खूब सारा खाद भी डाला था
उम्मीद तो कम थी लेकिन
एक दिन मुझे हैरान करतीं
मेरे दिल की क्यारी में
कुछ बेहद मुलायम बेहद खूबसूरत
नर्मो नाज़ुक सी कोंपलें फूट आईं
जिनमें चन्द नज़्में, चंद गज़लें,
चंद कवितायें और चंद गीत
खिल उठे थे... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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बैगपाइपर 

एक राजा था । काफी वर्षो से राज्य कर रहा था।उसे जो राज्य की विरासत मिली थी उसने काफी मेहनत से उसे सवारने का प्रयास किया। उसका राज्य पहले की अपेक्षा काफी मजबूत भी हो गया।लोग मेहनत कर अपना रोजी रोटी भी चला रहे थे।पहले तो कुछ पडोसी राज्यो ने परेशान भी किया किन्तु जब लगा की इससे टकराना ठीक नहीं तो अमन चैन से ही आगे बढ़ाना उचित समझा।किन्तु बीच बीच में ऐसा कुछ हरकत कर जाता की राजा और प्रजा दोनों बेचैन हो जाते.... 
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पहले तो मानहानि करवाओ 

फिर मुकदमा ठोको 

ये एहसास है कि सास है....या जरूरी धर्म है? यानी पहले तो मानहानि करवाओ फिर मुकदमा ठोको, पर ये बात जब समझ आ जाये तभी बनती है। मान और मान हानि किस चिड़िया का नाम है ये हमको हमारे बापू ने कम उम्र में ही समझा दिया था। जिस दिन तक समझ नही आया था तब तक सब ठीक था। हमारे बापू जिनके साथ हम गद्दी पर यानी वही लालाओं वाली गद्दी पर बैठा करते थे, उस समय में यदि हमने दुकानदारी के मामले में बापू की तयशुदा सीमा रेखा पार करदी तो बापू जमकर हमारी लू उतार देता था और हमारी गलती कुछ ज्यादा हुई यानी कम पैसे लेकर किसी को ज्यादा सामान दे दिया तो बापू की बेंत भी बेरहमी से हम पर बजने के इंतजार में ही रहती थी... 
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया 
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किताबों की दुनिया -  

नीरज पर नीरज गोस्वामी 
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यादें ...  

जंगली गुलाब की ... 

धाड़ धाड़ चोट मारते लम्हे ... 
सर फट भी जाये तो क्या निकलेगा ... 
यादों का मवाद ... 
जंगली गुलाब का कीचड़ ...  
स्वप्न मेरे ...पर Digamber Naswa 
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लगता है अब इस धरती में,
सबके अन्तस मैले हैं। 
कंस और रावण के वंशज, 
जगह-जगह पर फैले हैं।।
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रविवार, मई 28, 2017

"इनकी किस्मत कौन सँवारे" (चर्चा अंक-2635)

मित्रों 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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उदास चेहरा -  

राकेश रोहित 

दो शब्द पर राकेश रोहित 
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Ramjaan Shayari -  

खुदा की इबादत में 

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मित्रता के आधार 

समता निश्छलता और वत्सलता, हैं मित्रता क आधार। 
वे भाई तो नहीं होते, भाई से बढ़कर होता है उनका प्यार... 
Jayanti Prasad Sharma 
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भगवान से 

भगवान,मैं मानता हूँ कि तुम बहुत बड़े इंजीनियर हो. तुमने अरबों-खरबों लोग बनाए, हर एक दूसरों से अलग, हर एक का अलग चेहरा-मोहरा, हर एक की अलग कद-काठी, हर एक का अलग रंग-रूप. पर शायद कुछ युद्ध टल जाते, शायद कुछ भाईचारा बढ़ जाता, शायद दुनिया कुछ रहने लायक हो जाती... 
कविताएँ पर Onkar 
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जीवित जातियाँ वहीं हैं  

जो आधुनिकता का प्रतिनिधित्व करती हैं; 

अपने आज के जीवन में जीती हैं। 

नवोत्पल प रनवोत्पल साहित्यिक मंच  
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बिना शीर्षक ----  

व्यंग्य की जुगलबंदी ३५ 

एक दिन ऐसा भी हुआ कि सारे अखबारों में से मोटे - मोटे अक्षरों में छपने वाले शीर्षक गायब हो गए | सारा दिन न्यूज़ चैनलों से ब्रेकिंग न्यूज़ फ्लैश नहीं हुई | व्हाट्सप्प से एक भी हिंसक वीडियो वायरल नहीं हुआ | पृथ्वी के फलाने - फलाने दिन खत्म होने की भविष्यवाणी नहीं हुई | मौसम बस मौसम की तरह आया किसी डरावने राक्षस की तरह नहीं आया कि जिसके आने से पहले चेतावनी देनी पड़े | गर्मी का मौसम आया तो बिना डराए हुए निकल गया | 'जल्दी ही खत्म हो जाएगा पानी' | 'प्यासे मरेंगे धरती वासी'|'और झुलसाएगी गर्मी'|'आने वाले दिनों में तापमान बढ़ता ही जाएगा' | लू के थपेड़े झेलने के लिए तैयार रहें '... 
कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे 
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♥कुछ शब्‍द♥: छोड़ चली हूँ_ 

मैं छोड़ चली हूँ अब तुम्हें 
हृदय में तुम्हारी याद लिए 
अनुराग के मधुर क्षणों संग 
वियोग की पीड़ा अथाह लिए.... 
आपका ब्लॉग पर Nibha choudhary 
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लीजिए वह लुत्फ़ जो ले पाइए

और अब संदेश मत भिजवाइए 
लानी हो तशरीफ़ जब भी, लाइए... 

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किसकी होने की क़स्म खाई है 
जाना आना तेरा भी है जैसे 
साँस जाती है साँस आती है 
ख़ुश्बू यह तिर रही फ़ज़ाओं में 
जो कोई चूनर हवा उड़ाई है... 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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सच का रास्ता अपनानेवाले वकील सा’ब की आपबीती से गुजरते हुए मुझे अनायास ही मिस्त्री सा’ब याद आने लगे और पूरे समय तक याद आते रहे। मिस्त्री सा’ब का नाम भँवरलाल प्रजापति था लेकिन उन्हें अपवाद स्वरूप ही ‘प्रजापति’ सम्बोधित किया गया होगा। सदैव मिस्त्री, भँवरलाल मिस्त्री या मिस्त्री सा’ब ही सम्बोधित किए गए। औसत मध्यवर्गीय संघर्षशील आदमी। मैंने उन्हें किराये के मकान में ही रहते देखा। उनमें ऐसा कुछ भी नहीं था कि लोग उन्हें ध्यान से देखें। लेकिन वे सबसे अलग थे। मुख्य काम मकान बनाना किन्तु शब्दशः हरफनमौला... 

एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 
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सजन इकरार कर लेना हमारा प्यार पढ़ लेना , 
खिला उपवन रँगी मौसम नज़ारे यार पढ़ लेना ,,  

Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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देश की स्थिति गृह युद्ध से ज्यादा घातक है, हर जगह जाति, वर्ग, वर्ण, राजनीति, अर्थ और वर्चस्व के मुद्दों पर हिंसा हो रही है। तीन सालों में यह सबसे घातक समय है और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी ने कल कहा कि जनता को सवाल और अधिक पूछने चाहिए ।कल जब वे एक मीडिया संस्थान में बोल रहे थे तो उन्होंने कहा कि सत्ता के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति और सत्ता में बैठे लोगों से सवाल होना चाहिए, खासतौर पर ऐसे समय जब सबसे ऊंची आवाज में बोलने वालों के शोर में असहमति की आवाजें डूब रही हैं! अर्थात ये स्वर कोलाहल में ज्यादा तनाव पैदा कर रहे है।ठीक इसके विपरीत मीडिया में आज सभी अखबारों में रंगीन पृष्ठों पर 2, 3 जैकेट और थोथी उपलब्धियों में अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने की प्रवृत्ति बहुत ही शर्मनाक है ...

ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik 
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'जो किताबें हम सभी को बाँट देती जात में ,
 फाड़कर नाले में उनको अब बहा दें साथियों !
 है अगर कुछ आग दिल में तो चलो ए साथियों ,
हम मिटा दें जुल्म को जड़ से मेरे ए साथियों !''
हम नहीं हिन्दू-मुसलमां ,हम सभी इंसान हैं ,
एक यही नारा फिजाओं में गूंजा दें साथियों .
है अगर कुछ आग दिल में तो चलो ए साथियों ,
हम मिटा दें जुल्म को जड़ से मेरे ए साथियों .'' 

! कौशल ! पर Shalini Kaushik  
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