आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है
रूप देवगुण की काव्य साधना को दिखाती पुस्तक
अनजानी,अनदेखी कल्पना
माँ..ओ माँ..
डर लगता है
चल समेटें बिस्तरे वक़्ते सहर होने को है
अनजानी,अनदेखी कल्पना
माँ..ओ माँ..
डर लगता है
चल समेटें बिस्तरे वक़्ते सहर होने को है
बेहतरीन सूत्रों के साथ बढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय दिलबाग विर्क जी।
बहुत खूबसूरत सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना 'नमन तुम्हें हे भुवन भास्कर' को आज की चर्चा में शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार दिलबाग जी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंदिल बाग-बाग हो गया
सादर
Dhanyawaad
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन/आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएं