मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
क्या कहिये
जो दिख रहा वो सच नही
फिर अनदिखे को क्या कहिये
हस रहे जख्म महफिलो में
गुमसुम खुशी को क्या कहिये...
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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मुझको ग़ैरों के लिए छोड़ के जाने वाले
आह आए ही नहीं जी को जलाने वाले
औ तमाशा भी सभी देखने आने वाले...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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हमारी माटी
(गाँव पर 20 हाइकु)
1.
किरणें आई
खेतों को यूँ जगाए
जैसे हो माई।
2.
सूरज जागा
पेड़ पौधे मुस्काए
खिलखिलाए।...
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एक व्यंग्य गीत :
मैं तेरे ब्लाग पे आऊँ
मैं तेरे ’ब्लाग’ पे जाऊँ ,तू मेरे ’ब्लाग’ पे आ
मैं तेरी पीठ खुजाऊँ , तू मेरी पीठ खुजा...
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व्यंग्य की जुगलबंदी -
'कड़ी निंदा '
वे बन्दूक की गोली के सामान फुल स्पीड में आए | गुस्से से लबालब भरे हुए | मिसाइल की तरह मारक | तोप की तरह गरजने को तैयार | बम की तरह फटने को बेकरार | ''जब देखो तब कड़ी निंदा, भर्त्सना, विरोध | सुन - सुन कर कान पक गए हैं'' ...
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बोल
किस बात का डर है तुझे,
जो तेरे पास है,
उसे खोने का या उसे,
जो तेरा हो सकता है?
बोल, क्यों चुप है तू...
कविताएँ पर Onkar
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एक ग़ज़ल :
हौसला है दो हथेली है----
हौसला है ,दो हथेली है , हुनर है
किस लिए ख़ैरात पे तेरी नज़र है ...
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तड़पन...
डॉ. सुषमा गुप्ता
हवा बजाए साँकल ..
या खड़खड़ाए पत्ते..
उसे यूँ ही आदत है बस चौंक जाने की।
कातर आँखों से ..
सूनी पड़ी राहों पे ..
उसे यूँ ही आदत है टकटकी लगाने की...
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal
नींद , सपने और ख्वाब
नींद भी अजब होती है ..ज़िन्दगी
और सपनो सी यह भी आँख मिचोली खेलती रहती है ..
इसी नींद के कुछ रंग यूँ उतरे हैं इस कलम से ...
नहीं खरीद पाती बीतती रातों से
अब कोई ख्वाब यह आँखे उफ़ !!!
यह नींद भी अब कितनी महंगी है ...
ranjana bhatia
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सूखे गुलाब
ग़ज़ल
डा श्याम गुप्त
इन शुष्क पुष्पों में आज भी जाने कितने रंग हैं |
तेरी खुशबू, ख्यालो-ख्वाब किताबों में बंद हैं...
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आप्पो दीपो भव
मैं नहीं हूँ बुद्ध हो भी नहीं सकता मैं
ने छोड़ा कहाँ यह जग
विराट मन अभी घूम आता है
कई घाट....
Mera avyakta पर
राम किशोर उपाध्याय
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शिनाक्त
सामने तेरे इक आईना होगा ,
दर को तूने जो बंद किया होगा
तेरी पलकों पे जो कहानी है
देख कर कोई सो गया होगा
"नील " लिखूँ तो फिर शिनाक्त सही ,
न लिखूँ अगर तो क्या होगा
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शोषण,शोषक और शोषित
शोषण,शोषक और शोषित
पूरक हैं आदि काल से
और रहेंगे अनादि काल तक
जब तक रहेगा यह जीवन...
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गीत
"अमलतास खिलता-मुस्काता"
सूरज की भीषण गर्मी से,
लोगो को राहत पहँचाता।।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अमलतास खिलता-मुस्काता।।
डाली-डाली पर हैं पहने
झूमर से सोने के गहने,
पीले फूलों के गजरों का,
रूप सभी के मन को भाता।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अमलतास खिलता-मुस्काता...
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मित्रों...!
गर्मी अपने पूरे यौवन पर है।
ऐसे में मेरी यह बालरचना
आपको जरूर सुकून देगी!
गर्मी अपने पूरे यौवन पर है।
ऐसे में मेरी यह बालरचना
आपको जरूर सुकून देगी!
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शुभ प्रभात.....
जवाब देंहटाएंमातृ-दिवस की शुभकामनाएँ
दुनिया देखी लाेग देखे।
राक्षस देखे फ़रिश्ते देखे।
रिश्ते देखे दोस्त देखे।
हर कहीं पर मिलावट ही दिखी।
अलग अलग रंगो के फूल देखे।
एक माँ ही है जो देती है सब सुख -
उसके प्यार में ना मिलावट।
ना कभी चेहरे पे शिकायत देखी।
बाकि तो सबके साथ अच्छा करने -
पर भी हर बार शिकायत देखी।
-विमल गांधी
आभार
सादर
बहुत सुन्दर चर्चा। आभार 'उलूक' का उसके 'सौ फीट के डंडे' को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंरचनाओं का बहुत बेहतरीन संकलन! बधाई!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक्स ! सभी को बधाई !!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार 🙏
बहुत बहुत धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंvivekkevyang.blogspot.com
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन। धरोहर की मेरी पोस्ट को भी शामिल करने के लिए धन्यवाद।
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