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सोमवार, दिसंबर 21, 2009

"हाय री ये दुनिया?" (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-4
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"

आज मैंने अपनी नज़र से ये चिट्ठे चुने हैं। आप भी इन पर दृष्टिपात कर लें।
उडन तश्तरी .... हाय री ये दुनिया? - मौसम ठंडा है या गरम?
नहीं पता. जहाँ हूँ वहाँ अच्छा लग रहा है. अभी अभी आँख लगी थी या
अभी अभी आँख खुली है, समझ नहीं पा रहा हूँ. पूरा बदन दर्...
"लगा उगाने खेत में, कंकरीट और ईंट।
बिन चावल और दाल के, अपना माथा पीट।।"
- उत्तर प्रदेश में एम०एल०सी० अर्थात विधान परिषद सदस्यों के चुनाव हेतु
नामांकन प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है.
कुछ सदस्यों के बारे में समाचार पत्रों से पता चला...
"राजनीति है वोट की, खोट, नोट भरमार।
पढ़े-लिखों को हाँकते, अनपढ़, ढोल, गवाँर।।"
*एक माँ ही जब जन्म देती बेटी को तो फिर क्यूँ ऐसे रोती
जानती नहीं लाडली बेटियां ही तो माँ की परछाई होती !
कच्ची दीवारों के खोखले रिश्तो से अनजान हंसती गाती ...
"बेटी के दुख-दर्द को, समझ न पाते लोग।
नारी को वस्तु समझ, लोग रहे हैं भोग।।"
- शायरी करना तो अभी का शौक है लेकिन शायरी पढना बहुत पुराना.
बरसों से अच्छे शायरों को पढता रहा हूँ और ये काम अभी भी
बदस्तूर जारी है. इसी शौक की वजह से मैं आपका...
"छिपा खजाना ज्ञान का, पुस्तक हैं अनमोल।
इनको कूड़ा समझ कर, रद्दी में मत तोल।।"
बैटरी वाली लालटेन - शाम के समय घर आते आते कम से कम
सवा सात तो बज ही जाते हैं। अंधेरा हो जाता है।
घर आते ही मैरी पत्नीजी और मैं गंगा तट पर जाते हैं।
अंधेरे पक्ष में तट पर कुछ ...
"लालटेन जलती नहीं, गायब मिट्टी-तेल।
लालू जी आउट हुए, आयी ममता रेल।।"
Science Bloggers' Association की स्थापना के
1 वर्ष पूरे हो चुके हैं और इस शुभअवसर पर अध्यक्ष
श्री अरविन्द मिश्र जी सहित सभी पदाधिकारियों, लेखकों और पाठकों को...
"बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!!"
- मेरी सबसे प्रिय पत्रिका " आहा ! जिंदगी " के एक अंक का एक शीर्षक
" सुख के लिए झगडा करो " ने मुझे बहुत प्रभावित किया ....
अपनी सुविधा से मैंने इसमें कुछ परिवर...
"झगड़ा है सुख के लिए, जगवालों के बीच।
वैतरणी के मध्य में, डूब रहे हैं नीच।।
*संबंधित कड़ी-**जल्लाद और जिल्दसाजी* लिफाफा से जुड़े
कई मुहावरे प्रचलित हैं जैसे बंद लिफाफा। आमतौर पर गूढ़ और
अबूझ व्यक्ति के लिए यह उपमा है…...
"बन्द लिफाफों में भरा, शब्दों का सब सार।
खोलो ज्ञान कपाट को, भर लो नवल विचार।।"
आपना जीवन आप संवारो
जितनी चादर पाँव पसारो
हार गये तो कल जीतोगे
मन से अपने तुम न हारो
आशा के चप्पू को थामो
दरिया में फिर नाव उतारो...
"सुन्दर छन्द सँवार कर, दिया सुखद उपदेश।
गाँठ बाँध कर धार लो, यह अनुपम सन्देश।।"
लगभग सभी धर्मों के मानने वाले यह दावा करते हैं कि
धर्म इंसान को उदार, सहिष्णु और मानवीय बनाता है।
मेरे मन में अकसर कुछ सवाल उठते हैं।
चूंकि मैंने इन सवाल...
"प्रश्न तो बिखरे हुए हर ओर हैं,
किन्तु इनका कोई भी है हल नही।
शस्त्र तो ठहरे हुए हर ओर हैं,
किन्तु इनको थामने का बल नही।।"

हाय तुम्हारी यही कहानी ( अंतिम भाग ) साधना वैद्य

( गतांक से आगे )
नीरा का मन अपने माता-पिता की उदारता पर अभिमान से भर उठा ।
अगले दिन की सुबह उसे और दिनों की अपेक्षा अधिक उजली लगी थी ।
छ: मास की दौड़ धूप और विज्ञापनों के अध्ययन के बाद माँ बाबूजी ने
विश्वास में सौम्या के लिये उपयुक्त वर की सम्भावनायें तलाशने की
कोशिश की थी । उसकी पहली पत्नी का स्वर्गवास प्रसव के समय
हो गया था । छोटा बच्चा अपने नाना-नानी के पास रहता था और
घर में माता-पिता के अलावा एक छोटा भाई और था । सौम्या के
विरोध के बावजूद भी माँ बाबूजी ने कलेजे पर पत्थर रख कर
सौम्या का कन्यादान कर दिया इस आशा में कि वे उसे एक उज्ज्वल
और सुखद भविष्य सौंप रहे हैं । लेकिन उनके सत्प्रयासों और
निष्काम प्रत्याशाओं की परिणति ऐसी होगी
यह तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा ।
यह कैसा विद्रूप था । नीरा का मन सुलग रहा था ।........
इनके अतिरिक्त निम्न चिट्ठों पर भी मेरी नज़र पड़ी है-
राजनीति में पत्‍थर - राजनीति में पत्‍थरों का बड़ा महत्‍व है। बड़े काम की चीज होते हैं ये पत्‍थर।
इनके के बगैर राजनीति का काम नहीं चलता। न पक्ष की राजनीति का और ना ही विपक्ष क...











15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढि़या चर्चा , आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत मेहनत की है आपने इस चिठ्ठा चर्चा में...बहुत सार्थक पोस्ट...रोचक भी...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर चर्चा! आज आपने जो मुक्तक में पोस्टों के बारे में लिखा वह आपकी विशेषता है। इसको जारी रखें तो अच्छा रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चा का शास्त्रीय रूप...
    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढिया चर्चा रही शाह्स्त्री जी.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं

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