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गुरुवार, जून 29, 2017

"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)

मित्रों!
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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हे निराकार ! 

सु-मन (Suman Kapoor) 
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बारिश,बाइक और चाह। 

पूरब में घुमड़ते बादल गहराते जा रहे थे। गंगा का कछार अभी खत्म नही हुआ था कि हल्की हल्की बूंदे तेज बहती हवाओं के साथ मेरे चेहरे पर पड़ने लगीं। बाइक की रफ़्तार तेज थी। तुम्हारे काले बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। एक्सीलेटर पर दबाव बढ़ाने के अनुपात में ही मेरी कमर पर तुम्हारी बाहों की कसावट बढती जा रही थी। कछार पीछे छूट गया सामने सागौन के दरख्त सड़क के दोनों तरफ हवाओं में झूमते नजर आए। बाइक सड़क पर फर्राटा भर रही थी। अब तक मैं सिर से लेकर पैर तक भीग चुका था ठंडी हवाएं बदन को छूकर बरफ बनाने पर तुली थीं पर तुम्हारे धडकनों की गर्माहट से उनका मकसद बार बार असफल हो जाता... 
PAWAN VIJAY  
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"प्रवासी पुत्र" एक संक्षिप्त टिप्पणी 

shikha varshney 
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---- || दोहा-एकादश || ----- 

रत्नेस ए देस मेरा होता नहि दातार | 
देता सर्बस आपुना बदले माँगन हार... 
NEET-NEET पर Neetu Singhal  
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हम किसीसे कम नहीं 

Akanksha पर Asha Saxena 
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर दिवस - 2017 

की तैयारियां 

ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया 
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ज़िन्दगी ख़ुद को समझ बैठी है तन्हा कितना 

आदमी कितना हैं हम और खिलौना कितना
सोचना चाहिए गो फिर भी यूँ सोचा कितना... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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मौत को इश्क़... 

जब जहालत गुनाह करती है 
सल्तनत वाह वाह करती है... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil 
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हमीं से भीड़ बनती है हमीं पड़ जाते हैं तन्हा 

भीड़ जब ताली देती है हमारा दिल उछलता है 
भीड़ जब ग़ाली देती है हमारा दम निकलता है 
हमीं सब बांटते हैं भीड़ को फिर एक करते हैं 
कभी नफ़रत निकलती है कभी मतलब निकलता है... 
Sanjay Grover 
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खेल- खेल मै खेल रहा हूँ 

कितने पौधे हमने पाले नन्ही मेरी क्यारी में 
सुंदर सी फुलवारी में !  
सूखी रूखी धरती मिटटी ढो ढो कर जल लाता हूँ 
सींच सींच कर हरियाली ला खुश मै भी हो जाता हूँ ... 
Surendra shukla" Bhramar"  
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सुकून ... 

digambar_thumb[1]
सुकून अगर मिल सकता 
बाज़ार में तो कितना अच्छा होता ... 
दो किलो ले आता तुम्हारे लिए भी ... 
काश की पेड़ों पे लगा होता सुकून ... 
पत्थर मारते भर लेते जेब ... 
स्वप्न मेरे ...पर Digamber Naswa  
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हे मानव खड़ा क्या सोचा रहा? 

बिना अर्थ के शब्द व्यर्थ व्यर्थ है 
अर्थ बिना काम काम व्यर्थ है... 
pragyan-vigyan पर Dr.J.P.Tiwari 
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अम्मी चल ना बाहर ! देख कितनी सुन्दर, चमकीली, सोने चाँदी के तारों से कढ़ी फराकें ले के आया है फेरी वाला ! मुझे भी दिला दे न एक ! मामू की शादी में मैं भी नई फराक पहनूँगी !’ छ: बरस की करीना की आँखों में हसरत भी थी और चमक भी ! फेरी वाले की छड़ी पर टँगी रंग बिरंगी फ्रॉकें उसकी नज़रों के सामने से हट ही नहीं रही थीं ! बर्तन माँज कर हाथ धोती बानो की पीठ पर वह झूल गयी ! बानो का दिल मसोस उठा... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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ग़ज़ल  

तेरी महफ़िल में दीवाने रहेंगे 

शमा के पास परवाने रहेंगे । 
तेरी महफ़िल में दीवाने रहेंगे ।। 
तुम्हारी शोखियाँ कातिल हुई हैं । 
तुम्हारे खूब अफ़साने रहेंगे ... 
Naveen Mani Tripathi 
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लोहे का घर-27 


बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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ग़ज़ल? 

मात्रा के गणित का शऊर नहीं, न फ़ुर्सत। 
अगर, बात और लय होना काफ़ी हो, 
तो ग़ज़ल कहिये वर्ना हज़ल या टसल, 
जो भी कहें, स्वीकार्य है। 
(अनुराग शर्मा) ... 
Smart Indian 
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कविता की पहली हार 

आज जो चौकीदारी करता है 
मेरे मोहल्ले में 
वह जो चौक पर लगाता है 
पंक्चर की दूकान... 
सरोकार पर Arun Roy 
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कोई हलन - चलन नहीं है
कोई चिंतन - मनन नहीं है
कोई भाव - गठन नहीं है
कोई शब्द - बंधन नहीं है

स्वरूप है कोई क्रिया - रहित
बिन साधना हुआ है अर्जित
स्वभाव से ही स्वभाव निर्जित
बोध - मात्र से ही है कृतकृत्य... 

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खेल- खेल मै खेल रहा हूँ 
खेल- खेल मै खेल रहा हूँ 
कितने पौधे हमने पाले 
नन्ही मेरी क्यारी में 
सुंदर सी फुलवारी में !
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सूखी रूखी धरती मिटटी 
ढो ढो कर जल लाता हूँ
सींच सींच कर हरियाली ला 
खुश मै भी हो जाता हूँ !... 

BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA 
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मंगलवार, जून 27, 2017

"कोविन्द है...गोविन्द नहीं" (चर्चा अंक-2650)

मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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ईद मुबारक 

! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
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संदेश 

"आज के बच्चों के लिये" 

चाँद पे जाना मंगल पे जाना 
दुनिया बचाना बच्चो 
मगर भूल ना जाना... 
कविता मंच पर kuldeep thakur 
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वही घर है, वही माँ हैं, वही बाबूजी 

लोहे के घर में पापा बेटे को सुला रहे हैं 
कंधे पर हिल रहे हैं, हिला रहे हैं 
बेटा ले रहा है मजा खुली आंखों से! 
पापा सोच रहे हैं सो चुका है... 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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अच्छी नींद का कारोबार 

कौन कितना दौलतमंद है, ताकतमंद है, 
इसे जानने के लिए 
उसकी नींद पर गौर करें... 
कल्पतरु पर Vivek 
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जनाज़े पर किसी के जाके मुस्काया नहीं करते 

ज़रर हर मर्तबा वालों को बतलाया नहीं करते 
फ़लक़ छू लें भले ही ताड़ पर छाया नहीं करते... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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हेमलासत्ता 

(भाग-2) 

नाई की बात सुनकर खेतासर के लोग बोले- हेमला से हम हार गए, वह तो एक के बाद एक को मारे जा रहा है, बड़े गांव में भी हम लोगों को चैन से नहीं रहने दे रहा है। हम कुछ नहीं कर सकते। अब तो बड़े शहर जाकर वहाँ से मियां मौलवी को लाना होगा। सुना है वहां एक खलीफा जी बड़े सिद्धहस्त हैं, उनके आगे हाथ जोड़कर जो बेऔलाद औरतें भेंट चढ़ाती हैं उन्हें वह गंडे-ताबीज देते हैं, जिससे उनकी गोद भर जाती हैं। जिन्न, डाकिनी और देव सब उनसे डरते हैं, भूत, मसान, खबीस सभी उनसे कांपा करते हैं। उनके पास जाकर खेतासर के लोगों ने नगद भेंट निकालकर हाल सुनाया तो वे बोले- “मैं आप लोगों से पहले भेंट हरगिज नहीं लूँगा, पहले चलकर वहाँ उस भूत को दफन करके आऊँगा, उसके बाद ही भेंट स्वीकार करूँंगा।“  यह सुनकर सभी खुश होकर बोले- जैसी आपकी मर्जी, अब हमारी यही अर्जी है कि आप हमारे साथ चलें। विनती कर वे लोग उसे गांव लाये और उसकी खूब खातिरदारी की, जिसे देख खुश होकर खलीफा बोला- ’सुनो सब, सत्ता से डरने की कोई बात नहीं अब समझो वह भसम हो कर रहेगा.... 
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योगा के योगी 

सुबह उठते ही नाक लंबी लंबी साँसे लेने को व्याकुल हो उठती है ,जीभ फडफडाकर सिंहासन करने को उग्र हो जाती है, गला दहाड़ कर शेर से टक्कर को उद्दत होने लगता है , बाकी शरीर मरता क्या न करता वाली हालत में शवासन से जाग्रत होने पर मजबूर हो जाता है बेचारा, योग की आदत के चलते ... योग का मतलब प्राणायाम युक्त शारीरिक व्यायाम ज्यादा अच्छा है समझने को , अब समझें प्राणों का आयाम ...  
अर्चना चावजी Archana Chaoji  
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विश्व योग दिवस के मुकाबले 

विश्व अखाड़ा व जिम दिवस 

देश गढ्ढे में था और उसी गढ्ढे के भीतर गुलाटी मार मार कर योगा किया करता था. सन २०१४ में एक फकीर अवतरित हुआ जिसकी वजह से देश गढ्ढे से आजाद हुआ और निकल कर विकास के राज मार्ग पर आ गया. जब देश राज मार्ग पर आ गया तो गुलाटीबाज योगा को भी राज गद्दी मिल गई. सारी दुनिया ने इसे एकाएक पहचान लिया और यू एन ओ ने विश्व योगा दिवस की घोषणा करके भारत को विश्व गुरु घोषित कर दिया... 
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दलितों को जिंदगी जीना है मजबूरी, 
समाज उनके लिए क्या कर रही 
यह बात पता नहीं किसी को पूरी ... 
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किताबों की दुनिया -131 

नीरज पर नीरज गोस्वामी 
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वफ़ा के सताए... 

ईद में मुंह छुपाए फिरते हैं 
ग़म गले से लगाए फिरते हैं 
दुश्मनों के हिजाब के सदक़े 
रोज़ नज़रें चुराए फिरते हैं... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil 
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किस्मत की धनी 

vandana gupta 
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ज़रा सी शायरी कर ले !! 

नए किरदार गढ़ने के नशे में 
मैं बेकिरदार होकर रह गया हूँ... 
तिश्नगी पर आशीष नैथाऩी