मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कविता
"चौमासा बारिश से होता"
सावन सूखा बीत न जाये।
नभ की गागर रीत न जाये।।
कृषक-श्रमिक भी थे चिन्ताकुल।
धान बिना बारिश थे व्याकुल।।
रूठ न जाये कहीं विधाता।
डर था सबको यही सताता।।
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सूर्यास्त:
दुष्यंत कुमार
सूरज जब किरणों के बीज-रत्न
धरती के प्रांगण में बोकर
हारा-थका स्वेद-युक्त रक्त-वदन
सिन्धु के किनारे निज थकन मिटाने को
नए गीत पाने को आया...
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एक दिन मुक़र्रर हो...
शौक़ तो उन्हें भी है पास में बिठाने का
जो हुनर नहीं रखते दूरियां मिटाने का...
साझा आसमान पर
Suresh Swapnil
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जीवन की जंग
जीतनी तो थी जीवन की जंग
तैयारियाँ भी बहुत की थीं इसके लिए
कितनी तलवारें भांजीं
कितने हथियारों पर सान चढ़ाई
कितने तीर पैने किये
कितने चाकुओं पर धार लगाई
लेकिन एक दिन सब निष्फल हो गया...
Sudhinama पर sadhana vaid
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चेम्पियन्स ट्राफी के फायनल में भारत की हार के बाद, पाकिस्तान की जीत की खुशी में पटाखे छोड़ने और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगा कर, जश्न मना कर, ‘राष्ट्र की गरिमा के विपरीत कृत्य’ के आरोप में बुरहानपुर पुलिस ने 15 लोगों को गिरफ्तार किया। अपने प्रदेश की पुलिस पर गर्व हो आया। वर्ना कहीं हमारी पुलिस भी जम्मू-कश्मीर पुलिस की तरह ‘बन्दनयन’ होती तो ये देशद्रोही बच निकलते...
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चन्द माहिया : क़िस्त 42
:1:
दो चार क़दम चल कर
छोड़ तो ना दोगे ?
सपना बन कर ,छल कर
:2:
जब तुम ही नहीं हमदम
सांसे भी कब तक
अब देगी साथ ,सनम !
:3:..
दो चार क़दम चल कर
छोड़ तो ना दोगे ?
सपना बन कर ,छल कर
:2:
जब तुम ही नहीं हमदम
सांसे भी कब तक
अब देगी साथ ,सनम !
:3:..
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मैं.....
जब मैं , मैं नहीं होता हूँ ।
तो फिर क्या ?
तो क्या मेरे अस्तित्व का विस्तृत आकाश
अनंत तक अंतहीन होता है ?
या अनंत में विलीन होता है ?
या मेरे वजूद के संगीत की सप्तक
किसी के कानों में मूर्त एकाकार होता है...
तो फिर क्या ?
तो क्या मेरे अस्तित्व का विस्तृत आकाश
अनंत तक अंतहीन होता है ?
या अनंत में विलीन होता है ?
या मेरे वजूद के संगीत की सप्तक
किसी के कानों में मूर्त एकाकार होता है...
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पर खुद भूखे मर रहे हैं।
किसान आज से नहीं,
सदियों से आत्महत्या कर रहे हैं,
उगाते तो हम अनाज हैं,
पर खुद भूखे मर रहे हैं।
मैंने एक और किसान कि
आत्महत्या के बाद
आंदोलन कर रही भीड़...
सदियों से आत्महत्या कर रहे हैं,
उगाते तो हम अनाज हैं,
पर खुद भूखे मर रहे हैं।
मैंने एक और किसान कि
आत्महत्या के बाद
आंदोलन कर रही भीड़...
kuldeep thakur
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हे ईश्वर !
24 जून 2013 अस्पताल में
अपनी दैनिक पूजा करते हुए माँ
(मेरे लिए प्रार्थना भी) ...
बावरा मन पर
सु-मन (Suman Kapoor)
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वाकिफ़
दुनिया कहती है तू निराकार हैंपर मैं कहता हूँ मेरा हृदय ही तेरा आकार हैं
अहंकार नहीं यह जज्बात हैं
क्योंकि इसकी धड़कनों में
तेरी ही रूह का बास हैं...
RAAGDEVRAN पर
MANOJ KAYAL
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मध्यान्ह का सूर्य
एक दिन दोपहर मिली बड़ी बुझी -बुझी
अपने ही कन्धों पर झुकी -झुकी ...
Mera avyakta पर
राम किशोर उपाध्याय
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यूँ ही इक पल की कहानी...
उस दिन जब मैं तुमसे नाराज हो रही थी की तुमको इतने काल की तो जवाब क्यों नही दिया,कितनी इमरजेंसी थी पता है तुमको....और तुमने बहुत बेबाकी से मुझसे कहाँ पचास बार फोन करोगी,तो इमरजेंसी में भी नही उठेगा...
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जनकवि का शताब्दी वर्ष
और मेरे मोहल्ले का चौकीदार
मुक्तिबोध हुए हैं हिंदी के बड़े कवि उनकी शताब्दी वर्ष मनाई जा रही है स्कूलों में , कालेजों में , विश्वविद्यालयों में संस्थानों में कुछ लोग कहते हैं कि उनसे भी बड़े कवि थे त्रिलोचन , नागार्जुन और कई अन्य नाम लेते हैं वे इनकी कविताओं से सरकारें हिल जाया करती थी...
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आमदनी और सफाई ;
एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
मेरी ज़िंदगी में ऐसे कई लोग आए, जिनके व्यवहार के आधार पर मैंने कुछ सूत्रों और कहावतों का निर्माण किया है | इन सूत्रों में से एक सूत्र यह रहा - ''ज्यों - ज्यों इंसान की आमदनी बढ़ती जाती है त्यों - त्यों उसके घर में होने वाली सफाई का ग्राफ भी बढ़ता जाता है''| इस सूत्र को मैं एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट करूंगी....
कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे
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पारिवारिक कलह::
एक लघु दृष्टि
इस बदलते समय और समाज में परिवारिक कलह जैसे बहुत ही सामान्य सी घटना हो गई है। आये दिन इसके विकृत रूप का परिणाम कई शीर्षकों में अखबारों के किसी पन्ने में दर्ज होता रहता है। महानगरीय जीवनशैली में जैसे इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा ही दे रहा है। जहाँ एक दूसरे की दिल की बात को सुनने और समझने के लिए किसी के भी पास वक्त नहीं है। एक ऐसे सुख की तलाश में सभी बेतहासा भाग रहे है जहाँ शुष्क और रेतीले सा अंत तक यह छोड़ फैला हुआ है। किसी परिवार में सामान्यतः एक कसक और द्वन्द किसी भी बात को लेकर शुरू हो जाता है और...
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’जहां मैं हूं—
वहां विरोधाभास है—
मैं ही तो---
विरोधाभास हूं—’
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ज़रूरी
इश्क में थोड़ा झुकना भी ज़रूरी है,
लम्बा चलना है, तो रुकना भी ज़रूरी है...
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योगा में गुण बहुत हैं करते रहिए रोज....
गंगू तेली छाँडिकर बनोगे राजा भोज
अब आप कहेंगे कि ये कहां से चंडूखाने की गप्प के गले में रस्सी डालकर उठा लाये हैं? पर यकीन मानिए हम सही कह रहे हैं कोई इसरो का सेटेलाइट हवा में नही छोड़ रहे हैं। हम बात योग की नही कर रहे बल्कि योगा की कर रहे हैं...
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर चयन
आभार
सादर
सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। आभार 'उलूक' के सूत्र को स्थान देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहूत-बहूत आभार मयंक जी, मेरी दोनो रचनाओ "खूबसूरत" और "मेरे मन की" को चर्चामंच मे स्थान देने के लिये|
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमनमोहक चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना 'जीवन की जंग' को आज की चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आपका धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सभी सूत्र बहुत ही उत्कृष्ट हैं !
जवाब देंहटाएंsundar charcha. thanks
जवाब देंहटाएंबाप रे! इत्ते लोग ब्लॉग में लिख रहे हैं!
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरी कविता को स्थान देने के लिए।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरी कविता को स्थान देने के लिए।
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