मित्रों!
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हे निराकार !
बावरा मन पर
सु-मन (Suman Kapoor)
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बारिश,बाइक और चाह।
पूरब में घुमड़ते बादल गहराते जा रहे थे। गंगा का कछार अभी खत्म नही हुआ था कि हल्की हल्की बूंदे तेज बहती हवाओं के साथ मेरे चेहरे पर पड़ने लगीं। बाइक की रफ़्तार तेज थी। तुम्हारे काले बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। एक्सीलेटर पर दबाव बढ़ाने के अनुपात में ही मेरी कमर पर तुम्हारी बाहों की कसावट बढती जा रही थी। कछार पीछे छूट गया सामने सागौन के दरख्त सड़क के दोनों तरफ हवाओं में झूमते नजर आए। बाइक सड़क पर फर्राटा भर रही थी। अब तक मैं सिर से लेकर पैर तक भीग चुका था ठंडी हवाएं बदन को छूकर बरफ बनाने पर तुली थीं पर तुम्हारे धडकनों की गर्माहट से उनका मकसद बार बार असफल हो जाता...
PAWAN VIJAY
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"प्रवासी पुत्र" एक संक्षिप्त टिप्पणी
shikha varshney
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---- || दोहा-एकादश || -----
रत्नेस ए देस मेरा होता नहि दातार |
देता सर्बस आपुना बदले माँगन हार...
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हम किसीसे कम नहीं
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर दिवस - 2017
की तैयारियां
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया
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ज़िन्दगी ख़ुद को समझ बैठी है तन्हा कितना
आदमी कितना हैं हम और खिलौना कितना
सोचना चाहिए गो फिर भी यूँ सोचा कितना...
सोचना चाहिए गो फिर भी यूँ सोचा कितना...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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हमीं से भीड़ बनती है हमीं पड़ जाते हैं तन्हा
भीड़ जब ताली देती है हमारा दिल उछलता है
भीड़ जब ग़ाली देती है हमारा दम निकलता है
हमीं सब बांटते हैं भीड़ को फिर एक करते हैं
कभी नफ़रत निकलती है कभी मतलब निकलता है...
Sanjay Grover
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खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
कितने पौधे हमने पाले नन्ही मेरी क्यारी में
सुंदर सी फुलवारी में !
सूखी रूखी धरती मिटटी ढो ढो कर जल लाता हूँ
सींच सींच कर हरियाली ला खुश मै भी हो जाता हूँ ...
Surendra shukla" Bhramar"
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मुशायरा आज से शुरू कर रहे हैं,
क्योंकि ग़ज़लें अधिकांश कल ही प्राप्त हुई हैं।
तो आइये आज से हम ईद मनाना शुरू करते हैं यहाँ।
और आज दिगंबर नासवा
तथा नुसरत मेहदी जी की
ग़ज़लों के साथ मनाते हैं ईद।
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सुकून ...
सुकून अगर मिल सकता
बाज़ार में तो कितना अच्छा होता ...
दो किलो ले आता तुम्हारे लिए भी ...
काश की पेड़ों पे लगा होता सुकून ...
पत्थर मारते भर लेते जेब ...
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हे मानव खड़ा क्या सोचा रहा?
बिना अर्थ के शब्द व्यर्थ व्यर्थ है
अर्थ बिना काम काम व्यर्थ है...
pragyan-vigyan पर Dr.J.P.Tiwari
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अम्मी चल ना बाहर ! देख कितनी सुन्दर, चमकीली, सोने चाँदी के तारों से कढ़ी फराकें ले के आया है फेरी वाला ! मुझे भी दिला दे न एक ! मामू की शादी में मैं भी नई फराक पहनूँगी !’ छ: बरस की करीना की आँखों में हसरत भी थी और चमक भी ! फेरी वाले की छड़ी पर टँगी रंग बिरंगी फ्रॉकें उसकी नज़रों के सामने से हट ही नहीं रही थीं ! बर्तन माँज कर हाथ धोती बानो की पीठ पर वह झूल गयी ! बानो का दिल मसोस उठा...
Sudhinama पर sadhana vaid
Sudhinama पर sadhana vaid
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ग़ज़ल
तेरी महफ़िल में दीवाने रहेंगे
शमा के पास परवाने रहेंगे ।
तेरी महफ़िल में दीवाने रहेंगे ।।
तुम्हारी शोखियाँ कातिल हुई हैं ।
तुम्हारे खूब अफ़साने रहेंगे ...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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ग़ज़ल?
मात्रा के गणित का शऊर नहीं, न फ़ुर्सत।
अगर, बात और लय होना काफ़ी हो,
तो ग़ज़ल कहिये वर्ना हज़ल या टसल,
जो भी कहें, स्वीकार्य है।
(अनुराग शर्मा) ...
Smart Indian
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कोई हलन - चलन नहीं है
कोई चिंतन - मनन नहीं है
कोई भाव - गठन नहीं है
कोई शब्द - बंधन नहीं है
स्वरूप है कोई क्रिया - रहित
बिन साधना हुआ है अर्जित
स्वभाव से ही स्वभाव निर्जित
बोध - मात्र से ही है कृतकृत्य...
कोई चिंतन - मनन नहीं है
कोई भाव - गठन नहीं है
कोई शब्द - बंधन नहीं है
स्वरूप है कोई क्रिया - रहित
बिन साधना हुआ है अर्जित
स्वभाव से ही स्वभाव निर्जित
बोध - मात्र से ही है कृतकृत्य...
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खेल- खेल मै खेल रहा हूँ -
खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
कितने पौधे हमने पाले
नन्ही मेरी क्यारी में
सुंदर सी फुलवारी में !
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सूखी रूखी धरती मिटटी
ढो ढो कर जल लाता हूँ
सींच सींच कर हरियाली ला
खुश मै भी हो जाता हूँ !...
BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA
खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
कितने पौधे हमने पाले
नन्ही मेरी क्यारी में
सुंदर सी फुलवारी में !
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सूखी रूखी धरती मिटटी
ढो ढो कर जल लाता हूँ
सींच सींच कर हरियाली ला
खुश मै भी हो जाता हूँ !...
BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA
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शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंसुंदर व पठनीय रचनाओं का चयन
आभार
सादर
सुप्रभात शास्त्री जी ! बहुत ही सुन्दर लिन्क्स से सजी चर्चा ! मेरी कहानी 'नई फ्रॉक' को आज की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार ! आशा दीदी की ओर से भी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार। आशा है पूर्णतया स्वस्थ होंगे
भूलवश "चर्चा की कड़ी" में कढी हो गया है, जरा देख लीजिएगा
जवाब देंहटाएं'क्रन्तिस्वर ' की पोस्ट शामिल करने हेतु शास्त्री जी को धन्यवाद व् आभार.
जवाब देंहटाएंsundar charcha, shukriya
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार 'उलूक' के सूत्र का भी जिक्र करने के लिये आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा सूत्र ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे शामिल करने का ...