मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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भीतर कुछ तो गड़बड़ है
जिसकी परदादारी है..
पहली ही मुलाकात में वे बड़े गर्व के साथ बता रहे हैं कि खेल ही उनका जीवन है और किरकिट में उनकी जान बसती है. रणजी से लेकर आई पी एल और वर्ल्ड चैम्पियनशीप सब खेलते हैं. उनकी नजर में कोई भी मैच छोटा बड़ा नहीं होता. वो २०-२०, डे नाईट, ५० ओवर, वन डे, ५ डे टेस्ट किरकिट को बस खेल मानते हैं. फॉर्मेट अलग हैं तो क्या, किरकिट तो किरकिट ही है न..वे बता रहे हैं. वे क्रिकेट को किरकिट कुछ इतने प्यार से कहते कि लगता कि दुलार में अपने प्यारे दुलारे बच्चे को पुकार रहे हैं...
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पापा जैसा कोई नहीं ,
अमृतसर के रेलवे स्टेशन पर गाड़ी से उतरते ही मेरा दिल खुशियों से भर उठा ,झट से ऑटो रिक्शा पकड़ मै अपने मायके पहुंच गई,अपने बुज़ुर्ग माँ और पापा को देखते ही न जाने क्यों मेरी आँखों से आंसू छलक आये , बचपन से ले कर अब तक मैने अपने पापा के घर में सदा सकारात्मक उर्जा को महसूस किया है ,घर के अन्दर कदम रखते ही मै शुरू हो गई ढेरों सवाल लिए ,कैसो हो?,आजकल नया क्या लिख रहे हो ?और भी न जाने क्या क्या ,माँ ने हंस कर कहा ,''थोड़ी देर बैठ कर साँस तो ले लो फिर बातें कर लेना ''...
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पिता
अँधेरे को चीरते सन्नाटे में
अपने से ही बात करते पिता
यह सोचते हैं कि
कोई उनकी आवाज
नहीं सुन रहा होगा...
Jyoti Khare
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उन श्रेष्ठ पिता के चरणों
देकर अपने नाम सदा ही
जिसने हमें तराशा
इक कोमल स्पर्श को पाकर
तन-मन जिसका हर्षा.
दृष्टि में कोमलता भरकर
जिसने सिखाई भाषा
देख के इक सुन्दर स्मित को
जिसने बोई आशा...
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बाँहों में आपकी पापा !!!
दुआओ के झूले कितने हैं झूले
बाँहों में आपकी पापा
थकान को मुस्कान में बदलने का
हुनर सीखा है आपसे ही
हम मुस्कराते हैं
वज़ह इसकी आप हैं
ज़रूरत हमारी लगती न
आपको कभी भी
भारी हिम्मत से आपने
हर मुश्क़िल की है नज़र उतारी...
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Happy Fathers day - 2017
झुका दूं शीश अपना ये
बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण
मेरे पिता के कहलाते हैं…
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परिवार और रिश्ते
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ।
समाज है तो परिवार है,
परिवार है तो रिश्ते हैं,
रिश्ते हैं तो हर रिश्ते की
एक मर्यादा है एक ज़रुरत है...
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मैं कौआ नहीं बनना चाहती
बाहर लान में खुलनेवाली हमारी खिड़की के शेड तले एक भूरी चिड़िया ने घोंसला बनाया है.अब तो अंडों में से बच्चे निकल आये हैं .चिड़िया दूर तक उड़ कर उनके लिये चुग्गा लाती है और वे चारो उसके आते ही चीं-चीं कर अपनी चोंचें बा देते हैं. मैंने थोड़ा दाना-पानी यहीं पास में रख दिया .पर चिड़िया ने छुआ तक नहीं, तीन-चार दिन यों ही रखा रहा . बच्चों के लिये दूर-दूर से चुग्गा लाती है.,घास झाड़ियों -पेड़ों आदि अपने संसाधनो से अपना खाद्य चुनती हैं....
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कैसे कह दूं ...
सुलगते ख्वाब ...
कुनमुनाती धूप में लहराता आँचल ...
तल की गहराइयों में हिलोरें लेती प्रेम की सरगम ...
सतरंगी मौसम के साथ साँसों में घुलती मोंगरे की गंध ...
क्या यही सब प्रेम के गहरे रिश्ते की पहचान है ...
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आवाज़ -
पिता की या बेटी की ?
लाठी पकड़ चलते पिता कितने अशक्त
एक एक कदम
मानो मनो शिलाओं का बोझ उठाये
कोई ढो रहा हो जीवन/सपने/उमीदें ...
vandana gupta
ब्रह्म वाक्य
दुःख दर्द आंसू आहें पुकार
सब गए बेकार
न खुदी बुलंद हुई न खुदा ही मिला
ज़िन्दगी को न कोई सिला मिला...
vandana gupta
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पिता तुम्हारा साथ ---
[नौ साल पहले पन्नों पर उतारे गए लफ्ज़ अब की बोर्ड के हवाले ]
माता - पिता की मृत्यु के पश्चात उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने के रिवाज़ का पालन तो सारी दुनिया करती है परन्तु मेरा मानना है कि अगर जीते जी हम उन्हें उनके स्नेह, वात्सल्य, संरक्षण एवं त्याग के लिए कृतज्ञता अर्पित करें तो उनका शेष जीवन शायद चैन से बीतेगा | आज लगभग पांच या छह वर्षों से लगातार [ अब नौ साल और जोड़ दीजिये - स्थिति वही की वही ] वैवाहिक जीवन के झंझावातों को झेलने के उपरान्त जब मैंने हाथ में कलम उठाई तो सबसे पहले अपनी नई ज़िंदगी लिए अपने पिता को धन्यवाद देने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुई और मैं अपने रोम - रोम से लिखती चली गयी...
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दोहे
"अपनायेंगे योग"
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पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार।
बिना आपके है नहीं, जीवन का आधार।।
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बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज...
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शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंसटीक चयन
आभार
सादर
खूबसूरत सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरे आलेख को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा। आभार 'उलूक' का सूत्र को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ब्लॉग चर्चा। धन्यवाद चर्चाकार महोदय, मेरे ब्लॉग 'चारीचुगली' को शामिल करने के लिये।
जवाब देंहटाएंaabhaar shastee ji
जवाब देंहटाएंसुंदर और सार्थक सूत्रों को संजोया है
जवाब देंहटाएंचर्चाकार को साधुवाद
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
बहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंआप जब-जब मेरे लेखे शब्दों को चर्चा मंच पर शामिल करते हैं।
वो पल मुझे ऊर्जा से भर जाते हैं। और मुझे आगे लिखने के लिए बहुत प्रोत्साहन मिलता है। इसलिए आपका तहेदिल से शुक्रिया।
सुंदर चर्चा विस्तृत चर्चा ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे शामिल करने का ...