कल से बेहतर कल करूँ, कोशिश नेक अनेक ||
रविकर
आँख न देखे आँख को, किन्तु कर्मरत संग |
संग-संग रोये-हँसे, भाये रविकर ढंग ||
गला-काट प्रतियोगिता, प्रतियोगी बस एक |
कल से बेहतर कल करूँ, कोशिश नेक अनेक ||
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157वीं पुण्यतिथि पर
उन्हें अपने श्रद्धासुमन समर्पित करते हुए
श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की
यह अमर कविता सम्पूर्णरूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ!
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटि तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी...
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सरस बना पल-पल आ डोले
Anita
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भूले अहसास.......
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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धर्म मूल्यवान बनाता है,बिक्री-मूल्य नहीं बढ़ाता
(विष्णु बैरागी)
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अगर किसी बात पर
तुम्हारा दिल भर आए,
आंसू तुम्हारी पलकों तक चले आएं,
तो उन्हें पलकों में ही रोक लेना,
छलकने मत देना...
कविताएँपरOnkar
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ईशोपनिषद के तृतीय व चतुर्थ मन्त्र- का काव्य भावानुवाद---डा श्याम गुप्त |
कार्टून :- रूक जा
Kajal Kumar
-- *मुक्त-मुक्तक : 871 -इश्क़ की तैयारियां
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गड़बड़ी पपोलने में है
smt. Ajit Gupta
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एक कहानी :तीन किस्से
Bhavana Lalwani
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इतनी भी अकेली नहीं होतीं'अकेली औरतें'
Pratibha Katiyar
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सुन्दर चर्चा. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंउम्दा चयन..
आभार...
सादर
बहुत सुंदर चयन मेरी रचना को स्थान देने पर सादर आभार सर जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ पढ़ने को मिली मेरी रचना को मान देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंविविधरंगी सूत्रों से सजी आज की चर्चा के लिए बहुत बहुत बधाई शास्त्री जी, आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र संजोय है
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति रविकर जी।
जवाब देंहटाएं'क्रांतिस्वर ' की दो पोस्ट्स को इस अंक में स्थान देने हेतु आदरणीय शास्त्री जी का आभार एवं धन्यवाद।
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