मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
--
--
बस यूँ ही ~ 1
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjM7Dmcr_01vClwQ5tvUnL6tLL1ox-xC8NLIq-IIvsWKQDcx2gIptcU1yTBnZI20T0zzbpq56ckWiLTrbC-GqSexHh2D26h8IVkvCQol0jYqi6etsPSXz7zBK7We0wZQRdGCEA6PRe03OI/s320/1495350872937.jpg)
सु-मन (Suman Kapoor)
--
माथा अपना फोड़ रहे हैं
इक दूजे को जोड़ रहे हैं
कुछ को लेकिन छोड़ रहे हैं...
--
--
नौजवां लुट गया ...
तलाशे-मकां में जहां लुट गया
ज़मीं के लिए आस्मां लुट गया...
साझा आसमान पर
Suresh Swapnil
----- || चलो कविता बनाएँ 2 || -----
बिटिया मेरे गाँउ की,पढ़न केरि करि चाह |
दरसि दसा जब देस की पढ़न देइ पितु नाह...
--
निप्पोंज़न मायोजी बुद्ध मंदिर, कोलकाता
( Nipponzan Myohoji Buddhist Temple, Kolkata
by Kishan Bahety)
--
--
दिल हूम हूम करे ......
तुम मेरे सपनो के आखिरी विकल्प थे
शायद जिसे टूटना ही था हर हाल में
क्योंकि मुस्कुराहट के क़र्ज़
मुल्तवी नहीं किये जाते
क्योंकि उधार की सुबहों से
रब ख़रीदे नहीं जाते
एक बार फिर उसी मोड़ पर हूँ दिशाहीन ...
चलो गुरबानी पढो...
vandana gupta
--
--
चाँद
रोज़ की तरह आज फिर चाँद ने
खिड़की पर आ कर आवाज़ लगायी ,
पर आज मुझे वहाँ न पाकर आश्चर्यचकित था ,
रोज़ टकटकी लगा कर इंतज़ार करने वाली
ढेरों बातें करने वाली
आज कहाँ गायब हो गयी...
--
श्रीवास्तव जी का बदला
और भारतीय राजनीति
बचपन में मैंने मम्मी से एक कहानी सुनी थी. शर्मा और श्रीवास्तव जी कहानी के मुख्य पात्र थे. शर्मा जी का परिवार बहुत सात्विक था. मीट-मांस तो दूर कोई लहसुन-प्याज तक नहीं खाता था. सुबह-शाम आरती भजन का कार्यक्रम चलता रहता था. बिना भोग लगाये अन्न क्या कोई जल तक ग्रहण नहीं करता था. उन्हीं के बगल में श्रीवास्तव जी का परिवार रहता था. मांस-मदिरा बिना तो एक दिन भी नहीं गुजरता था. मंगलवार अपवाद था. श्रीवास्तव जी जब भी खा कर बाहर निकलते तो गली-गली में घूम कर डकार मारते. उनके डकार में भी प्रचार का पुट था. हर बार मटन-चिकन, मछली, मुर्गा ज़्यादा खा लेने की वज़ह से उन्हें डकार आ जाता था...
वंदे मातरम् पर abhishek shukla
--
--
--
फेल, पास, फर्स्ट क्लास, टॉपर्स
और हमारा ज़माना......
आज नंबरों की इस आपा - धापी के बीच अगर मुझे अपना ज़माना याद आ रहा है तो बच्चे मेरी हंसी उड़ाने लग जा रहे हैं | उस ज़माने में फर्स्ट आना ही मुश्किल होता था और नब्बे प्रतिशत अंक तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे | पर मेरा ज़माना इन अर्थों में अलग था कि कोई बच्चा कम नंबर आने या फेल होने की वजह से समाज में नीचा या ऊंचा नहीं सिद्ध होता था | मेरे ज़माने में फर्स्ट आने वाले को दूसरे ग्रह का प्राणी मान लिया जाता था | फर्स्ट के घर कोई एक आध ही बधाई देने जाता था | अधिकतर लोग रास्ते चलते ही 'बधाई' उछाल देते थे....
--
कमाई
जीवन के स्क्वाश कोर्ट में खड़ी हूँ
सोच में डूबी
सारे जीवन गेंद को पूरी ताकत से
दीवार पर मारती रही ।
तब ताक़त थी न बहुत
कभी सोचा ही नहीं
बीच में आने वाला हर व्यक्ति
इन तीव्र गेंदों के वेग से
घायल हो रहा है...
सोच में डूबी
सारे जीवन गेंद को पूरी ताकत से
दीवार पर मारती रही ।
तब ताक़त थी न बहुत
कभी सोचा ही नहीं
बीच में आने वाला हर व्यक्ति
इन तीव्र गेंदों के वेग से
घायल हो रहा है...
--
--
--
और क्या नाम दूं इस मंज़र को
गुड़ियों के साथ खेलती थी गुड़िया
ता-ता थइया नाचती थी गुड़िया
ता ले ग म, ता ले ग म गाती थी गुड़िया
क ख ग घ पढ़ती थी गुड़िया
तितली-सी उड़ती थी गुड़िया ...
--
--
--
तू पास नहीं और पास भी है
मायूस हूँ तेरे वादे से कुछ आस नही ,कुछ आस भी है
मैं अपने ख्यालों के सदके तू पास नही और पास भी है ....
हमने तो खुशी मांगी थी मगर जो तूने दिया अच्छा ही किया
जिस गम का तालुक्क हो तुझसे वह रास नही और रास भी है ....
ranjana bhatia
--
--
--
--
उद्धव गोपी संवाद
ज्ञान तिहारो आधो अधूरो मानो या मत मानो ,
प्रेम में का आनंद रे उधौ ,प्रेम करो तो जानो।
प्रेम की भाषा न्यारी है ,
ये ढ़ाई अक्षर प्रेम एक सातन पे भारी है।
कहत नहीं आवै सब्दन में ,
जैसे गूंगो गुड़ खाय स्वाद पावै मन ही मन में...
Virendra Kumar Sharma
--
पेरिस समझौता :
ट्रंप की चिंता पर भारी भारतीय चिंतन
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjjzfbghznF8D27_2JTut2D6dJYCE_5DcuQko4mSG4QF1bjseaHw1LvcWf7lZ1ew2L3vG3WI3hAqryRg2eb75MYpf9xSELcyU7WeRc5o2dpoeZ7uGRsqY4WG1zzGiF2ypUNMN49l75yuF2/s320/%25E0%25A4%2597%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25AE+%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B8.jpg)
ट्रंप की वक्रोक्ति आनी तय थी पर्यावरण के मसले पर विकसित देशों को दीनो-ईमान के पासंग पर रखा जाना अब तो बहुत मुश्किल है. स्मरण हो कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर 30 नवंबर से 12दिसंबर 2015.को एक महाविमर्श का आयोजन हुआ था. उद्देश्य था ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी कार्बन डाई आक्साइड गैस के विस्तार को रोका जावे. समझौता भी ऐतिहासिक ही कहा जा सकता है . 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 40 और 70 प्रतिशत के बीच कम किया जाने की और 2100 में शून्य के स्तर तक लाने के उद्देश्य की पूर्ती के लिए तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक ग्लोबल वार्मिंग में कमी लाने का लक्ष्य नियत करना भी दूसरा वैश्विक कल्याण का संकल्प है. इस समझौते का मूलाधार रहा है . जो ट्रंप भाई जी के अजीब बयान से खंडित हुआ नज़र आ रहा है...
मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल
--
--
मिट्टी का जीवन...
मिट्टी के दीपक सा ही है...
गढ़ा जाता है जलने के लिए...
रौशनी बन कर आँखों में पलने के लिए...
--
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंसादर नमन
उत्तम रचनाएँ
आभार
सादर
आज की सुन्दर प्रस्तुति में 'उलूक' के शगुन को जगह देने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंइस अंक में 'क्रांतिस्वर ' की पोस्ट को स्थान देने हेतु आदरणीय शास्त्री जी को धन्यवाद सहित आभार।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी आज की चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने के लिए । सभी सूत्र अनुपम हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंsundar rachna keep posting and keep visiting on www.kahanikikitab.com
जवाब देंहटाएंपहले ये स्वयं तो पवित्र हो जाएँ,
जवाब देंहटाएंदुर्गन्ध आती है इनके पाखंडा चोले से.....
पहले ये स्वयं तो पवित्र हो जाएँ,
जवाब देंहटाएंदुर्गन्ध आती है इनके पाखंडा चोले से.....
sundar charchA , ABHAR HAMEN SHAMIL KARNE HETU .
जवाब देंहटाएं