मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"बालगीत-आयी होली-आई होली"
आयी होली, आई होली।
रंग-बिरंगी आई होली।
मुन्नी आओ, चुन्नी आओ,
रंग भरी पिचकारी लाओ,
मिल-जुल कर खेलेंगे होली।
रंग-बिरंगी आई होली।।...
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सिर्फ तारीफों की चर्चा में बिका अखबार है
---**** ग़ज़ल***---
चैनलों की शाख पर अब झूठ का अम्बार है ।
सिर्फ तारीफों की चर्चा में बिका अखबार है ।।
रोज कलमें हो रहीं गिरवीं इसी दरबार में ।
फिर कसीदों से कलम का हो रहा व्यापार है...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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कमजोर बुनियादों का शहर
अंधेरों की पाँख पर
बीजती सुबहों में
इन्द्रधनुषी रंगों की छटा
यूँ ही नहीं उतरी होती
कोई कसमसाती रात की रानी के
जब गिरते हैं टेसू
तब जाकर सुबह की
अलसाई आँखों में उतरती है
एक बूँद ओस की...
vandana gupta
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होली खेलें कन्हाई फगुनवा में।।
होली खेलें कन्हाई फगुनवा में।
होली खेलें कन्हाई फगुनवा में।।
नंद बबा खेलें घर के दुअरिया
नंद बबा खेलें घर के दुअरिया
मईया जसोमति ओसारे ओसारे
मईया जसोमति ओसारे ओसारे
राधा जी खेलें अंगनवा में...
PAWAN VIJAY
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फ़रवरी
कमरे में हर चीज़
अपनी जगह मौजूद थी
सब ठीक ठाक था
फिर भी यूं लग रहा था
जैसे कोई चीज़ चोरी हो गयी है...
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तुम मेरे बेताब मन का
तुम मेरे बेताब मन का
दूसरा हिस्सा बन गये हो
जिसे सुनता रहूँ प्रेम का
वही किस्सा बन गये हो...
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ईमान बिकता नहीं
यहां चेहरे तो लाखों हैं
इंसां मगर दिखता नहीं
पत्थर हाथ में न रखो
शीशे का मकां मिलता नहीं...
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आसान नही था...
तुमको लिखना.....!!!
उसने कहा था.....
कि लिखते रहना...
उसे कैसे बताऊँ कि..
तुम्हारे बिन लिखना...
इतना आसान नही है...
आसान नही था..
उन लम्हों को लिखना,
जो कभी गुजरे ही नही....
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चन्द माहिया
क़िस्त 16
:1:
किस बात का हंगामा
ज़ेर-ए-नज़र तेरी
मेरा है अमलनामा
:2:
जो चाहे सज़ा दे दो
उफ़ न करेंगे हम
पर अपना पता दे दो
:3:..
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हिमालय ने शीश झुकाया है !
कामयाबी उसी का कदम चूमा है
हिम्मत से जिसने मुसीबत को ललकारा है |
फूलों की खुशबु का वही हकदार है
काँटों का चुभन जिसने स्वीकारा है...
कालीपद "प्रसाद"
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रंग नहीं होली के रंगों में
किसी मन में, चूड़ी की है खनक कहीं,
कहीं थिरकन है अंगों में,
ढोल-मंजीरों की थाप गूंजती है कानों में
मौसम हो गया है अधीर...
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यूं ही बेहिसाब न फिरा करो.....
मुक्तक और रूबाइयां-7
यूं ही बेहिसाब न फिरा करो,
कोई शाम घर भी रहा करो
वो गजल की सच्ची किताब है,
उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलायेगा,
जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नये मिजाज का शहर है,
जरा फासले से मिला करो।
-बशीर बद्र शरहे-गम
धरती की गोद पर
Sanjay Kumar Garg
--वो है ज़रूर .....!!
Anupama Tripathi
--किताबे जिंदगी खोलूँ
पलों में मुस्कराना तुम
[गजल]
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंरंगबिरंगी लिंक्स से सजा आज का चर्चा मंच |
सुंदर कड़ियाँ सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबशीर बद्र साहब के शे’र का मतला में "बेसबब" है-बेहिसाब नहीं
जवाब देंहटाएंयूँ ही बेसबब न फिरा करो . कोई शाम घर भी रहा करो
बेसबब = बेमतलब
सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत आभारी हूँ ...जो मेरी रचना शामिल किया और पढ़ने के लिए समय निकाला! अन्य लिंक्स को शामिल कर पढ़वाया ....मैं चर्चा मंच का शुक्रगुजार हूँ!!
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