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रविवार, मार्च 15, 2015

"ख्वाबों में आया राम-राज्य" (चर्चा अंक - 1918)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देकिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"काव्य की आत्मा" 

♥ रस काव्य की आत्मा है ♥
सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि रस क्या होता है?
कविता पढ़ने या नाटक देखने पर पाठक या दर्शक को जो आनन्द मिलता है उसे रस कहते हैं।
आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा की संज्ञा दी है... 
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जीवन दर्शन 

इन्सान भीड़ में भी 
खुद को अकेला महसूस करता है 
सर्वविदित सत्य है ये लेकिन क्यों ? 
प्रश्न ये उठता है . 
शायद अपनी आकांक्षाओं चाहतों 
इच्छाओं पर सबको खरा नहीं पाता... 
एक प्रयास पर vandana gupta 
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सुनहले मोर 

(बाल कहानी) 

Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार 
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बंदर बहुत हो गये है 

उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 
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----- ॥ टिप्पणी ४ ॥ ----- 

> मूंगफली,नारियल, सरसों, बिनौला, सूर्यमुखी,सोयाबीन,राइसब्रान आदि के तेल कृषिउपज से प्राप्त होते हैं..,
>>  नीम, कोसम, पामोलिव,डोरी, अलसी, चिरौठा, सरई बीज आदि के तेल वनोपज से प्राप्त होते हैं जो कृषि उत्पाद की अपेक्षा निम्न श्रेणी के उत्पाद हैं और इसे उअपज के तेलों का मूल्य खाद्य तेलों की तुलना में न्यूनतम होंना चाहिए जो नहीं है..,
NEET-NEET पर Neetu Singhal 
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ग़ज़ल 

'द सोहेल 'कोलकाता की 
मासिक पत्रिका में छपी मेरी ग़ज़ल 
और कितने आसमान चाहिए 
उस अतके लिए ज़मीं कम पड़ने लगी है 
राहत के लिए आ कि दोस्ती का एक पौधा 
लगा दें बहुत वक़्त पड़ा है अदावत के लिए 
हर सु है गिराँबारी का आलम अल्लाह 
वक़्त माकूल सा लगत है बगावत केलिए..  
रजनी मल्होत्रा नैय्यर 
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सात जन्म का साथ ... 

पत्नी बोली , 
शादी के समय तो 
सात जन्म साथ निभाने का वादा करते हो | 
और शादी के बाद , 
सात मिनट में ऊब जाते हो... 
दिल की बातें पर Sunil Kumar 
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गम का समन्दर नही देखा….. 
हाेंठाे की हँसी देखी मगर दिल का दर्द नही देखा... 
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ख्वाबों में आया राम-राज्य

धरती अपनी अब स्वर्ग बनी
महका गुलशन चिड़ियाँ चहकीं
‘आम’ ही क्षत्रप घर सुराज्य... 

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ढोल बाजे 
तोताराम चबूतरे पर आकर बैठा लेकिन वह कहीं भी, किसी की तरफ भी नहीं देख रहा था | मन ही मन कुछ बुदबुदा रहा था और बीच-बीच में थोड़ा उछल भी रहा था | ऐसे लगता था जैसे उसमें किसी अन्य आत्मा का प्रवेश हो गया हो या जगराते में माता का भाव आ गया हो |चाय दी तो भी एकदम निस्पृह रहा |
हमने उसे झिंझोड़ा तो बड़ी मुश्किल से थोड़ा सामान्य हुआ |
हमने पूछा- क्या बड़बड़ा रहा है ? हमें तो उत्तर नहीं दिया लेकिन हमने उसके शब्दों से अनुमान लगाया कि वह बार-बार 'ढोल बाजे, ढोल बाजे' बुदबुदा रहा है |हमने फिर प्रश्न किया- क्या है ? कहाँ बज रहा है ढोल ?... 
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सीमाएँ 
एक कुएं में मेंढकों का एक समूह रहता था। समूह क्या उनका पूरा संसार ही था। एक समय की बात है जोरदार वर्षा के कारण कुआं पानी से लबालब भर गया। एक क्षमतावान मेंढक ने अपने पूरे सामर्थ्य से छलांग लगाई, परिणामस्वरूप वह कुएं से बाहर था। भीतर के मेंढक स्वयं को कुएं के सुरक्षा घेरे में सुरक्षित रखने में सफल रहे। एक जिज्ञासु बुद्धिमान मेंढक ने अपने मुखिया से प्रश्न किया, "चाचा, क्या दुनिया इतनी ही है जो हमें दिखाई देती है?"
मुखिया ने जवाब दिया, "हां, ये संसार इतना ही है जो हमें दिखायी देता है। अन्य विद्वानों से भी मैने यही जाना है, मैने अपने उम्र भर के अनुभव से भी इसे प्रमाणित किया है।"
"चाचा, दुनिया इससे बडी क्यों नहीं हो सकती?", युवा मेंढक ने फिर प्रश्न किया। चाचा ने मुस्काते हुए कहा, "उपर देख! क्या दिखाई देता है? आसमान? कितना बडा है आसमान?"...

सुज्ञ
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9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बहुत ही सुंदर संकलन .... जितना अभी तक पढ़ा सभी लिंक अच्छे लगे,, शुक्रिया काव्यसुधा को शामिल करने हेतू ॥

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  2. बहुत सुंदर रविवारीय चर्चा । आभार 'उलूक' का सूत्र 'बंदर बहुत हो गये है' को आज के अंक में जगह देने के लिये ।

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  3. बहुत सुंदर संकलन सुंदर रविवारीय चर्चा आभार 'ख्वाबों में आया राम-राज्य' को आज के अंक में जगह देने के लिये शास्त्री जी

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  4. सुन्दर लिंक्स. मेरी कविता को शामिल करने के लिए आभार

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  5. सुन्दर प्रस्तुति आपकी, आभार, शास्त्री जी!!

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  6. कलात्मक सुसज्जित सुन्दर सूत्र | पठनीय सूत्र | मेरी कहानी को शामिल करने हेतु आभार प्रकट करता हूँ | जय हो - मंगलमय हो

    जवाब देंहटाएं

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