मित्रों।
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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था राज्य कंस का
बेबस थे नर नार
त्राहि त्राही मची हुई थी
नगरिया मथुरा थी बेहाल |
कान्हां गए वहां
माता पिता को छुड़वाने
कारागार से मुक्त कराने
बदला कंस से लेने...
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आज की कविता और हाइकु
बातों ही बातों में
आज की कविता और हाइकु
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
आज कविता की दुर्गति बहुत अधिक है।क्यों है, यह विचारणीय प्रश्न है। और विधाओं की तुलना में कविता अधिक लिखी जा रही है।जब अधिक लिखा जाएगा ,तो उसमें सब स्तरीय हो , ग्राह्य हो , यह ज़रूरी नहीं।साहित्य में ऐसी कोई प्रशासनिक शक्ति भी किसी के हाथ में नहीं हो सकती कि क्या लिखा जा , किस शैली में लिखा जाए और कौन लिखे ...
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वह छिपकली की पूंछ थी....!
घंटी की आवाज़ सुन कर शिखा गैस बंद कर के दरवाज़े की ओर लपकी। कोरियर वाला था। अंदर पहुंचे , उससे पहले ही माँ की तकलीफ भरी आवाज़ सुन कर चौंक पड़ी। माँ की आवाज़ ऐसी थी जैसे उनके साथ बहुत छल किया जा रहा हो। बेचारगी वाले भाव , भरी आँखे जरा सी सिकोड़ कर कुछ गला भी भर्रा गया जैसे...
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केलोग्स वाले गुप्ताजी का नाश्ता
दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते |
यदन्नं भक्षयेन्नित्यं जायते तादृशी प्रजा ||
जैसे दीप का उजाला अँधेरे को खा जाता है,
और काजल को उत्पन्न करता है,
वैसे ही जिस तरह का भोजन हम ग्रहण करते हैं, वैसे ही हम उसी तरह का व्यवहार करते हैं।
उपरोक्त श्लोक आज भी पुरातनकाल की बात को सत्य साबित करता है...
Vivek Rastogi
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मन की बात...
भाग ३
मन की बात प्रतिरोध नहीं है ये मेरा उसके प्रति न ही कोई व्यंग्य बस हो जाता है आम आदमी अचंभित और सोच के कबूतर कुलबुलाने लगते हैं आखिर कैसी मन की बात और किसके? कहीं उपहास तो नहीं है ?...
vandana gupta
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पहले और बाद
*उम्र शुरू होने के ठीक पहले*
*और उम्र ढल जाने के ठीक बाद*
*होती हैं बहुत सारी बातें
अनगिनत आँकी जाने वाली अटकलें
रख लिया जाता वजूद कसौटी पर
दम तोड़ जाते हैं कुछ रिश्ते
और चेहरा देता है गवाही
वक़्त के कटहरे में खड़े होकर ।* ....
बावरा मन पर
सु-मन (Suman Kapoor)
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प्यार :
कुछ मुक्तक - 5
'' प्यार में जब मिलन होता है ,
कुछ नया तब सृजन होता है ;
आदमी देवता बनता है तब -
प्यार जब श्रद्धा - कन सँजोता है । ''...
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कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम
कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम |
रोज़ शिकायत इनकी-उनकी अस्त-व्यस्त से जन-जीवन की देख पराये काले धन की पीड़ा सहलाते निज मन की इन सब से बाहर आएँ हम कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम।1।... |
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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मन्त्र शक्ति
चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य योनि इसलिए है क्योंकि इसी योनि में प्राणी अपने सामर्थ्य का सर्वाधिक और सर्वोत्तम उपयोग कर सकता है।इतिहास साक्षी है इसका कि साधारण देह धारियों ने अपनी बुद्धि से कितने और कैसे कैसे असाधारण कृत्य कर डालें हैं। लेकिन सत्य यह भी है कि बहुसंख्यक लोग ऐसे ही हैं, जो पूरे जीवन में प्रकृति प्रदत्त क्षमताओं का साधारण और सामान्य उपयोग भी नहीं कर पाते। और शरीर के साथ ही उनकी क्षमताएँ भी माटी में मिल जाती है...
संवेदना संसार पर रंजना
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
बढ़िया लिंक्स-सह-चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स-सह-चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंwww.gyankablog.blogspot.com
थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालोंका आभारी रहूँगा।
प्रणाम गुरुदेव
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप हर बार मेरी पोस्ट डालते हैं ..और मैं भागते भागते आ ही नहीं पाती
आपने पोस्ट को चर्चा का विषय बनाया उसके लिए आपका आभारी हूँ . अगर यह पोस्ट अच्छा हो सका है तो इसमें गौरैया की ही महानता है वर्ना इस अल्पबुद्धि प्राणी में वह बात कहाँ....
जवाब देंहटाएंअजय कुमार त्रिपाठी