मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरे द्वारा चयनित कुछ लिंक
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बीडी बनाते बच्चे
आदरणीय मुकेश कुमार सिन्हा जी!
आपका ब्लॉग खुलकर
चिट्ठाजगत की अवांछनीय साइट खुल जाती है
और ब्लॉग विलुप्त हो जाता है।
मेरे ब्लॉग "शब्दों का दंगल"
के साथ भी यही समस्या है।
इसलिए यहाँ
कोई पोस्ट भी नहीं लगा रहा हूँ।
इसका कुछ हल मिले तो
मुझे भी बताना...
Mukesh Kumar Sinha
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गंगा -प्रदूषण पर ...
सदियों से पुष्प बहे, दीप-दान होते रहे ,
दूषित हुई न कभी नदियों की धारा है |
होते रहे हैं नहान, मुनियों के ज्ञान-ध्यान,
मानव का सदा रही, नदिया सहारा है |
बहते रहे शव भी, मेले- कुंभ होते रहे ,
ग्राम नगर बस्ती के जीवन की धारा है |
श्रद्धा, भक्ति, आस्था के कृत्यों से प्रदूषित गंगा .
छद्म-ज्ञानी, अज्ञानी, अधर्मियों का नारा है...
दूषित हुई न कभी नदियों की धारा है |
होते रहे हैं नहान, मुनियों के ज्ञान-ध्यान,
मानव का सदा रही, नदिया सहारा है |
बहते रहे शव भी, मेले- कुंभ होते रहे ,
ग्राम नगर बस्ती के जीवन की धारा है |
श्रद्धा, भक्ति, आस्था के कृत्यों से प्रदूषित गंगा .
छद्म-ज्ञानी, अज्ञानी, अधर्मियों का नारा है...
डा श्याम गुप्त....
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बंजर ज़मीं पे बाग बसाएँ तो बात है
बंजर ज़मीं पे बाग, बसाएँ तो बात है
अँधियारों को चिराग, दिखाएँ तो बात है
दिल तोड़ना तो मीत! है आसान आजकल
टूटे दिलों में प्रीत, जगाएँ तो बात है...
--महका दो फिर से
मेरा अंगना इक बार
जाओ फिर से निकल तस्वीर से
महका दो फिर से
मेरा अंगना इक बार...
Rekha Joshi
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अटकते कदमों का साथ …
मेरे कदमों की
अबोली सी धड़कन
साँस - साँस
अटक जाती हैं
सामने दिखती मंज़िल
कदमों को
निहारती पुकारती हैं
पर …
अबोली सी धड़कन
साँस - साँस
अटक जाती हैं
सामने दिखती मंज़िल
कदमों को
निहारती पुकारती हैं
पर …
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चलता दिन थमा
जियारा गिरा , थका - हारा ।
चलता दिन थमा ,
हवा सुट्ट खड़ी , भुच्च अँधेरे की -
वह धौल पड़ी ;
छूट गया हाथों से पारा...
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मैंने क्या पाया
नयनों से नयनों की बातें
कनखियों की सौगातें
जब भी याद आएं
तुझे अधिक पास पाएं
यही नजदीकियां यादों में बसी हुई हैं
तुझसे मैंने क्या पाया
कैसे तुझे बताऊँ...
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बासी होली हो रही है।
आइये होली के त्यौहार को
विधिवत समापन करते हुए
आज दो शायरों विनोद पाण्डेय
और तिलक राज कपूर से सुनते हैं
उनकी ग़ज़लें।
सुबीर संवाद सेवा पर पंकज सुबीर
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न तेरे पास जवाब है
*न तेरे पास जवाब है
न तेरे पास जवाब है ,
न मेरे पास सवाल है
मेरे पास तेरा ख्वाब है...
तात्पर्य पर
कवि किशोर कुमार खोरेन्द्र
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किसानों से धान खरीद में
अरबों का घोटाला....
पूरे बिहार में धान खरीद को लेकर खुलेआम लूट मची हुई है। करोड़ों-अरबों की इस लूट में पदाधिकारियों, पैक्स अध्यक्षों और बैंकों की मिलीभगत से यह सब हो रहा है। किसान 1100 रूपये प्रति क्विंटल धान को बाजार भाव में बेच रहे हैं और वही धान पैक्स अध्यक्ष और पदाधिकारी खरीद कर एफसीआई को दे रहें हैं जहाँ उनको 1660 रू0 मिल रहा है...
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कुछ हाइकु :
फूलों पर…
1.
गुलमोहर
दहकता बैसाख
बेबुझी प्यास ।
2.
अमलतास
गुच्छे गुच्छे महक
मीठी कसक ।
3....
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ख़ामोशी चुप्पी मौन
ख़ामोशी
चुप्पी
मौन
इनका तुमने एक ही अर्थ लगाया
मगर कभी नहीं आँक पाए वास्तविक अर्थ
खामोशियों के पीछे
जाने कितने तूफ़ान छुपे होते हैं...
vandana gupta
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वो सुहाने पल...
कच्ची उम्र के वो सपने
कितने सुहाने लगते थे
पेड़ की टहनियों के झूले झूलना
उँगलियों से रेत के घर बनाना...
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"दोहे-खुलकर खिला पलाश"
स्वागत में नववर्ष के, खुलकर खिला पलाश।
नवसम्वत्सर लायेगा, जीवन में उल्लास।१।
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पावन होली खेलकर, चले गये हैं ढंग।
रंगों के त्यौहार के, अजब-ग़ज़ब थे रंग।२।...
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा संयोजन सूत्रों का |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद डॉ. शास्त्री।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ!!
Thank you so much for selecting my poem!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर-सुन्दर लिंक! मेरे लिंक को स्थान देने क लिए धन्यवाद! आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा | मेरी कहानी शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार और धन्यवाद |
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