मित्रों!
शनिवार के चर्चा के अंक में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"माँ पूर्णागिरि का दरबार सजने लगा है"
होली के समाप्त होते ही माँ पूर्णागिरि का मेला प्रारम्भ हो जाता है और भक्तों की जय-जयकार सुनाई देने लगती है!
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जीवन का पेड़
धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच
कहीं बियाबान जंगल में
अपने ही बनाये हुए सपनों के महल में ऐसा घबराया सा घूम रहा हूँ, कब कौन से दरवाजे से मेरे सपनों का जनाजा निकल रहा होगा, भाग भाग कर चाँद तक सीढ़ीयों से चढ़ने की कोशिश भी की, पर मेरे सपनों की छत कांक्रीट की बनी है किसी विस्फोट से टूटती ही नहीं...
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There were also plenty of childhood ,
how , how the game !
Run boat in the sand ,
fly sky rail !!
"कविता-सौरभ" पर
satywan verma saurabh
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ज़िन्दगी का गणित
कोण नज़रों का मेरे सदा सम रहा न्यून तो किसी को अधिक वो लगा घात की घात क्या जान पाये नहीं हम महत्तम हुए न लघुत्तम कहीं रेखा हाथों की मेरे कुछ अधिक वक्र थीं कैसे होती सरल फ़िर भला ज़िन्दगी तजुर्बे ज़िन्दगी के कटु कड़े थे बड़े सत्य सम प्रमेय सदा सिद्ध होते रहे कोशिशें की बहुत कुछ यहाँ सीख लूँ...
निर्दोष दीक्षित
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मेरे शहर में ---
हर रोज ऐसी सुबह हो - अठखेलियां करता झील का किनारा हो, पगडण्डी पर गुजरते हुए हम हो, पक्षियों का कलरव हो, सूरज मंद-मंद मुस्कराता हुआ पहाड़ों के मध्य से हमें देख रहा हो, हवा के झोंकों के साथ पक रही सरसों की गंध हो, कहीं दूर से रम्भाती हुयी गाय की आवाज आ रही हो, झुण्ड बनाकर तोते अमरूद के बगीचे में मानो हारमोनियम का स्वर तेज कर रहे हों, कोई युगल हाथ में हाथ डाले प्रकृति के नजदीक जाने का प्रयास कर रहा हो - कल्पना के बिम्ब थमने का नाम ना ले ऐसी कौन सी जगह हो सकती है...
smt. Ajit Gupta
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धागा , डोर दोहे
कच्चे धागे प्रीत के ,कोई सके न तोड़
है अदृश्य बंधन मगर,दें बंधन बेजोड़...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
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जब जब नींद बुलाऊँ, चलकर आतीं यादें
जब-जब नींद बुलाऊँ, चलकर आतीं यादें
करवट-करवट बिस्तर पर बिछ जातीं यादें...
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ज़मीन और आसमां-3
कभी कभी सोचता हूँ
क्या रिश्ता है आसमान और ज़मीन का ?
रिश्ता है भी या नहीं है तो
दूर का या पास का...
Yashwant Yash
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ .
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
...ठीक सिस्टम की तरह
अपने को सही करने की ऊहापोह
में ब्यस्त।
मदन मोहन सक्सेना
-- में ब्यस्त।
मदन मोहन सक्सेना
ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं )
गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों हैं
जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलबाता क्यों हैं
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आज तुम्हारी वर्षगाँठ को,
मिल कर सभी मनायेंगे।
जन्मदिवस पर प्यारी बिटिया को,
हम बहुत सजाएँगे।।
मम्मी-पापा हर्षित होकर,
लायेंगे उपहार बहुत,
जो तुमको अच्छे लगते हैं,
वस्त्र वही दिलवायेंगे...
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स |
प्राची को जन्म दिन पर बधाई |
सुंदर शनिवारीय चर्चा प्रस्तुति । आभार 'उलूक' का सूत्र 'आदमी की खबरों को छोड़ गधे को गधों की खबरों को ही सूँघने से नशा आता है' को शामिल करने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा सूत्र.
जवाब देंहटाएं'देहात' से मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
कार्टूनों को भी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आभार जी
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा ...मेरी रचना को स्थान दिया..आभार!
जवाब देंहटाएंदुनिया के रंग, हमारे संग: घुमक्कड़ी गाथा से मेरे यात्रा वृत्तांत को शामिल करने के लिए धन्यवाद
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