मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अनुवाद
“Remember a poem : Christina Rossetti”
(अनुवादक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
...यादें तो यादें होती है,तब तुम यही समझना!मुझ अदृश्य के लिए,नही तुम कभी प्रार्थना करना!ऐसा करते-करते इक दिन,भूल मुझे जाओगी!किन्तु अगर तुम याद करोगी,दुःख बहुत पाओगी!!
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मेरी नज़रों में ऐसे ही कभी वो बे-खबर आता
मुझे इक शख्स अपना सा है शीशे में नज़र आता
जो आना चाहता था घर मगर किस मुंह से घर आता
इधर की छोड़ दी, पकड़ी नहीं परदेस की मिट्टी
कहो कैसे अँधेरा चीर कर ऊंचा शजर आता...
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510.
दहक रही है ज़िन्दगी...
ज़िन्दगी के दायरे से भाग रही है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी के हाशिये पर रुकी रही है ज़िन्दगी !
बेवजह वक़्त से हाथापाई होती रही ताउम्र
झंझावतों में उलझ कर गुज़र रही है ज़िन्दगी...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
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*मुक्त-मुक्तक : 820 -
गुलों की शक्ल
गुलों की शक्ल में दरअस्ल यह बस ख़ार होती है ॥
लगा करती है दरवाज़ा मगर दीवार होती है...
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भारतीय सनातन धर्म में
नववर्ष का शुभारंभ
सोमवार को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
(गुड़ी पड़वा)
से हो रहा है।
PITAMBER DUTT SHARMA
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हवा का दबाव...
हम जैसे जैसे ऊपर उठते हैं
घटता जाता है हवा का दबाव.
भारी हो जाता है, आसपास का माहौल.
और हो जाता है, सांस लेना मुश्किल.
ऐसे में जरुरी है कि, मुँह में रख ली जाए,
कोई मीठी रसीली गोली, अपनों के प्रेम की.
जिससे हो जाता है सांस लेना आसान
और कट जाता है सफ़र आराम से।
shikha varshney
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फ़िल्मी कहानियों के आगे
हिंदी में छप रही कहानियां गोबर लगती हैं
जानते हैं क्यों ?
क्यों कि हिंदी में इन दिनों थोक के भाव छप रही कहानियां ज़मीन से कटी कहानियां हैं । भाई बहन लोग ख़ुद ही लिख रहे हैं , ख़ुद ही पढ़ रहे हैं । एक दूसरे की पीठ खुजला रहे हैं । इस लिए भी कि इस समय के लगभग सारे संपादक गोबर गणेश हैं । आलोचक खऊरहा या पालतू कुकुर । और आज के कहानी लेखक इन्हीं गोबर गणेश संपादकों और खऊरहा कुकुर या पालतू कुकुर आलोचकों को प्रसन्न करने के लिए लिख रहे हैं , अपने को प्रसन्न करने के लिए नहीं , पाठकों को प्रसन्न करने के लिए नहीं । लेकिन इन गोबर गणेश और कुकुरो के लिए लिख कर जीते जी अमर हो रहे हैं ...
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