मित्रों
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ग़ज़ल "माँगा किसी से सहारा नहीं"
मेरे आँगन में उतरे सितारे बहुत,
किन्तु मैंने मदद को पुकारा नहीं
तक रहे थे मुझे हसरतों से बहुत,
मैंने माँगा किसी से सहारा नहीं...
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पीड़ा
गरीबी की गलियों मे,
यह मन बहुत अकेला है |
रंग महल मे उनके,
खुशियों का मेला हैं |
दिन रैन श्रम कोल्हू मे पिसकर
जीवन कण मैं रचता हूँ |
शीत से हैं प्रीत मेरी कसकर,
ग्रीष्म सखा संग मै चलता हूँ |
जिंने की जद्दोजहद में यह तन,
हरदम साहूकार तुफानो से खेला है |
गरीबी की गलियों में,
यह मन बहुत अकेला है..
यह मन बहुत अकेला है |
रंग महल मे उनके,
खुशियों का मेला हैं |
दिन रैन श्रम कोल्हू मे पिसकर
जीवन कण मैं रचता हूँ |
शीत से हैं प्रीत मेरी कसकर,
ग्रीष्म सखा संग मै चलता हूँ |
जिंने की जद्दोजहद में यह तन,
हरदम साहूकार तुफानो से खेला है |
गरीबी की गलियों में,
यह मन बहुत अकेला है..
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कहा, हम चले जब मुहब्बत में गिरने ...
भरोसे से निकलोगे जब काम करने
बचा लोगे खुद को लगोगे जो गिरने ...
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‘यह फिल्म देखकर
आने वाली पीढ़ियां कहेंगी-
हमारे राजनेता कितने छिछोरे हैं!’ ------
कमल स्वरूप
भारतीय सिनेमा में अपने किस्म के अनूठे फिल्मकार कमल स्वरूप ने लोकसभा चुनाव के दौरान बनारस जाकर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई- ‘बैटल ऑफ बनारस’। उनके शब्दों में वे ‘भारतीय जीवन में चुनाव की उत्सवधर्मिता’ और ‘भीड़ के मनोविज्ञान’ का फिल्मांकन करना चाहते थे। मगर उनकी फिल्म सेंसर बोर्ड को आपत्तिजनक लगी और इसे मंजूरी देने इनकार कर दिया गया। वे ट्रिब्यूनल के पास गए उन्होंने भी मंजूरी नहीं दी...
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आईना
एक सा नहीं दिखता चेहरा हर आईने में
पाया है रंग और भी गहरा हर आईने में
रोको नहीं सफर कि सहरा बहुत बड़ा है ,
देखा किया बहुत है ,पहरा हर आईने में
वो टुकड़ा तुम्हारे दर्श में ही,होगा कहीं छुपा नादाँ
हो ढूंढते हो वही टुकड़ा हर आईने में...
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दर्द के लम्हों में बीत जाते हैं पल
देखते ही तुम्हे महक जाते है पल
बातों बातों में बीत जाते है पल
तुम ना आये तेरी यादें है पास
तेरी यादों में बीत जाते है पल...
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मुकम्मल बादशाई चाहता हूँ
मिटाना हर बुराई चाहता हूँ
ज़माने की भलाई चाहता हूँ
तेरे दर तक रसाई चाहता हूँ
मैं तुझसे आशनाई चाहता हूँ...
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मातृ-श्रृंगार
टूटने पाये न संस्कृति, टूटने पाये न गरिमा ।
काल है यह संक्रमण का, प्रिय सदा यह याद रखना ।।
वृहद था आधार जिसका, वृक्ष अब वह कट रहा है ।
प्रेम का विस्तार भी अब, स्वार्थरत हो बट रहा है...
Praveen Pandey
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प्रकृति की दशा बदलेगी सोच से
आज नवभारत में एक ख़बर पढ़ने मिली..मध्यप्रदेश के भिंड ज़िले के किशूपुरा गाँव की प्रियंका भदौरिया ने अपनी शादी के मौके पर ससुराल वालों से चढ़ावे के रूप में गहने की बजाए 10,000 पौधे लाने का संकल्प लिया।उससे भी अच्छी बात ये कि ससुराल वाले उसकी बात से सहमत हुए और अब ये पौधे मायके और ससुराल में लगाए जाएंगे। आज तक स्त्रियों का गहनों के प्रति प्रेम और लगाव ही देखा और सुना था,पर शायद प्रियंका ही असली गहनों की पहचान कर सकी।प्रकृति ही नहीं बचेगी तो सोने-चांदी के गहने पहनने के लिए कौन बचेगा?...
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जन्नत का दीदार हुआ |
तूने जो छुआ होठो से, जन्नत का दीदार हुआ |
चाहा तुझे ना चाहे, पर फिर भी दिल बेक़रार हुआ...
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अहा ! ज़िन्दगी
दैनिक भास्कर की पत्रिका -
अहा ! ज़िन्दगी में प्रकाशित
मेरी एक आवरण कथा....
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'' मान का एक दिन '' नामक गीत ,
कवि श्रीकृष्ण शर्मा के गीत - संग्रह -
'' फागुन के हस्ताक्षर ''
से लिया गया है -
मान का एक दिन ------
मेरे अनबोले का एक बोल गूँज गया ,
जैसे ये पछुआ मनुहार तुम्हारी ! !
मटमैले वर्तमान ने अपने कन्धों पर
डाली है बीते की सात रंग की चादर ,
दुख के इस आँगन में सुधियों के सुख - जैसा
सन्ध्या ने बिखराया जाने क्यों ईंगुर ?...
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