मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"नूतन सम्वत्सर आया है"
फिर से उपवन के सुमनों में
देखो यौवन मुस्काया है।
उपहार हमें कुछ देने को,
नूतन सम्वत्सर आया है।।
उजली-उजली ले धूप सुखद,
फिर सुख का सूरज सरसेगा,
चौमासे में बादल आकर,
फिर उमड़-घुमड़ कर बरसेगा,
फिर नई ऊर्जा देने को,
नूतन सम्वत्सर आया है...
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मुक्त-ग़ज़ल -
मैं फ़िदा था
कैसी भी हो ताती-बासी-पतली-मोटी ॥
भूख में आँखों में नचती सिर्फ़ रोटी ॥
काटती कान है बड़े से भी बड़ों के
उम्रो क़द में छोटे छोटों से वो छोटी...
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फिर पूछते हो कौन हूँ मैं...
क्यों ना कभी तुम चुपके से पीछे से आकर,
अपनी हथेलिया मेरी पलकों पर रख दो,
फिर पूछो की कौन हूँ मैं...
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नूतन नवल उमंग
[नव संवत्सर और सरहुल पर दोहे ]
नव संवत्, नव चेतना, नूतन नवल उमंग।
साल पुराना ले गया, हर दुख अपने संग।।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, वासन्तिक नवरात।
संवत्सर आया नया, बदलेंगे हालात...
हिमकर श्याम
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वो कितने परिंदों को...
गजल
वो कितने परिंदों को नाहक उडा़या है
तब जाकर दरख़्त पे एक घर बनाया है
कहता है बड़ा सम्मान है उसका जमानें में
मगर वो जानता है कि डर बनाया है...
आपका ब्लॉग पर
Sanjay kumar maurya
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