जय मां हाटेश्वरी....
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आज की चर्चा में आप का स्वागत है...
चर्चा का आरंभ..
अल्लामा इक़बाल की लिखी इस नज़्म से....
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चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया,नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया,तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया,जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया,मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥सारे जहाँ को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था,मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया थातुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था,मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से,फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से,बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से,मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहाँ से,मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥बंदे किलीम जिसके, परबत जहाँ के सीना,नूहे-नबी का ठहरा, आकर जहाँ सफ़ीना,रफ़अत है जिस ज़मीं को, बामे-फलक़ का ज़ीना,जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़िज़ा में जीना,मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥गौतम का जो वतन है, जापान का हरम है,ईसा के आशिक़ों को मिस्ले-यरूशलम है,मदफ़ून जिस ज़मीं में इस्लाम का हरम है,हर फूल जिस चमन का, फिरदौस है, इरम है,मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
अब देखिये मेरी पसंद के कुछ चुने हुए लिंक...
रत्न-भूषण और श्री चाटुकारिता के चिह्न से,
मुक्त अपना प्यारा ये चमन होना चाहिए।
उग्रवादियों को सजा फाँसी की मिले तुरन्त,
अपने प्यारे देश में अमन होना चाहिए।
नेताओं की लाश को न झण्डे लपेटा जाये,
शहीदों का तिरंगा कफन होना चाहिए।
आजादी की जंग में जिन्होंने बलिदान दिया,
उन देशभक्तों का नमन होना चाहिए
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
किनारी पर लगी मेरी
कोमल भावनाओं की
निर्मल चाँदनी सी
रुपहली किरण जगह-जगह से
कट फट चुकी है !
sadhana vaid
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Abhimanyu Bhardwaj
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Priti Surana
आग लगाओ जंगलात को ,,पर्यावरण को पथभ्रष्ट करो
निज स्वार्थ के चूल्हे पर रोटी सेको मतलब की
प्रदुषण प्रसारण अधिकार तुम्हारा ,, हवा बिगाड़ो नस्लों की
क्या करेगा अग्रिम वंश भला शुद्ध पानी ,,
उसको चखना होगा मजा तुम्हारी नादानी का ,,
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विजयलक्ष्मी
यहां मौजूद लोगों में से किसी के मन में स्वतंत्रता के मीठे फलों का आनंद लेने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। एक लंबी लड़ाई अब भी हमारे सामने है। आज हमारी केवल
एक ही इच्छा होनी चाहिए – मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत करने की इच्छा, जिससे स्वतंत्रता की राह शहीदों के खून बनाई जा सके। साथियों, स्वतंत्रता
के युद्ध में मेरे साथियो! आज मैं आपसे एक ही चीज मांगता हूं, सबसे ऊपर मैं आपसे अपना खून मांगता हूं। यह खून ही उस खून का बदला लेगा, जो शत्रु ने बहाया है।
Vivek Surange
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क्या न्याय व्यवस्था , क्या प्रशसनिक व्यवस्था या फिर कहिये कार्यपालिका और क्या मीडिया (पेड ही सही). पिछले ७० सालों में इस समाज / देश की नसों में महामारी
की तरह घर कर चुके हैं. एक ही बात शासन करना बस कांग्रेस को आता है.
क्यों भाई ? इन लोगों को भी शासन करना आता है, नमूना तुम्हारे सामने है:
क्या लालू यादव कहाँ कमजोर है, और उसका वो रंग बदलू छोटका भाई जो कल तक समाजवाद की आड़ में भगवे ध्वज वाहकों के साथ गलबहियां करते करते आज लालकिले पर तिरंगा
फेहराने के ख्वाब देखने लगा. जया ललिता शासन कर ही रही है, और उसी क्षेत्र में उसका प्रतिद्वंदी वो चश्मे वाला बाबा, द्रमुक पार्टी वो भी शासन में कहाँ पीछे
है. उडीसा में देख लीजिये, कहते हैं आदिवासी राज्य है... पर नायक अंग्रेजीदां .. बोले तो अपने क्षेत्र की भाषा तक नहीं जानता .. पर शासन कर रहा है.
दीपक बाबा
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ज़रा सोचिये..
उन्हें
ज्यादा कुछ नहीं
सहानुभूति और स्नेह
के बस दो मीठे बोल चाहिये.
अपनी पत्नी को सम्मान दीजिए....
Akanksha Yadav
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कविताएँ
डॉ. अमिता शर्मा
संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि
परDr.Mahesh Parimal
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ज़िंदगी
एक मुफ्लिस सी ज़िंदगी ज़ीनत
हाथ फैलाए ही गुज़ारा करे
जाने अब कौन है जो सुन लेगा
अब किसे बोल तू पुकारा करे
ये जुआ खेलना ज़रुरी भी है
और हर रोज़ खुदको हारा करे
दिल के आँगन में दाग़दार सही
रोज़ उस चाँद को उतारा करे
दिल के जज़्बात
Kamla Singh
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दोहे "पुस्तक-दिवस"
शिक्षामन्त्री हो जहाँ, स्नातक से भी न्यून।
कैसे हों लागू वहाँ, हितकारी कानून।।
--
पाठक-पुस्तक में हमें, करना होगा न्याय।
पुस्तक-दिन हो सार्थक, ऐसा करो उपाय।।
उच्चारण
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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धन्यवाद।
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विजयलक्ष्मी
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डॉ. अमिता शर्मा
संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि
परDr.Mahesh Parimal
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ज़िंदगी
एक मुफ्लिस सी ज़िंदगी ज़ीनत
हाथ फैलाए ही गुज़ारा करे
जाने अब कौन है जो सुन लेगा
अब किसे बोल तू पुकारा करे
ये जुआ खेलना ज़रुरी भी है
और हर रोज़ खुदको हारा करे
दिल के आँगन में दाग़दार सही
रोज़ उस चाँद को उतारा करे
दिल के जज़्बात
Kamla Singh
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दोहे "पुस्तक-दिवस"
शिक्षामन्त्री हो जहाँ, स्नातक से भी न्यून।
कैसे हों लागू वहाँ, हितकारी कानून।।
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पाठक-पुस्तक में हमें, करना होगा न्याय।
पुस्तक-दिन हो सार्थक, ऐसा करो उपाय।।
उच्चारण
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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धन्यवाद।
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