जय माँ हाटेश्वरी...
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आज की चर्चा में आप का स्वागत है....
आज की चर्चा का आरंभ ऋषभ देव शर्मा जी की एक कविता के साथ.....
मानचित्र को चीरती, मजहब की शमशीरया तो इसको तोड़ दो, या टूटे तस्वीरएल.ओ.सी के दो तरफ़, एक कुटुम दो गाँवछाती का छाला हुआ, वह सुंदर कश्मीरआदम के कंधे झुके, कंधों पर भगवान्उसके ऊपर तख्त है, उलटे कौन फकीरसेवा का व्रत धार कर, धौले चोगे ओढ़छेद रहे सीमा, सुनो! सम्प्रदाय के तीरमुहर-महोत्सव हो रहा, पाँच वर्ष के बादजाति पूछकर बंट रही, लोकतंत्र की खीरघर फूँका तब बन सकी, यारो! एक मशालहाथ लिए जिसको खड़ा बीच बज़ार कबीर
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अब चलते हैं...चर्चा की ओर...
आशाएँ श्रमदान कराती,
पत्थर को भगवान बनाती,
आशा पर उपकार टिका है।
आशा पर ही प्यार टिका है।।
आशा यमुना, आशा गंगा,
आशाओं से चोला चंगा,
आशा पर उद्धार टिका है।
आशा पर ही प्यार टिका है।।
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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लाखों गुबार दिल में दबाए हुए थे हम.
ठगता था हम को इश्क, ठगाता था खुद को इश्क,
कैसा था एतदाल, कि पाए हुए थे हम.
गहराइयों में हुस्न के, कुछ और ही मिला,
न हक़ वफ़ा को मौज़ू ,बनाए हुए थे हम.
Munkir
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ना रुकना तुम्हे,
ना थमना तुम्हे,
बस चलते जाना है।
हार नहीं अल्प विश्राम है ये,
ज़िन्दगी का एक मुकाम है ये।
Nitish Tiwary
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बेहयाई से बोला -
तू आज ही नहीं बनी फूल
उम्र के गुज़रे तमाम पलों में
तुम्हें बनाया है
अप्रैल फूल !
डॉ. जेन्नी शबनम
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जाति की गणित में सांस लेता मज़हब की घृणा वही बाँटता
सेक्यूलरिज्म की चादर पर नचाता बंदर वह बड़ा मदारी है
मंहगाई का असर नहीं है खर्चे की पैसा भर परवाह नहीं है
दुनिया जानती है आदमी ईमानदार नहीं पक्का भ्रष्टाचारी है
Dayanand Pandey
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गोरखनाथ से पहले अनेक सम्प्रदाय थे, जिनका नाथ सम्प्रदाय में विलय हो गया।
शैव एवं शाक्तों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन तथा वैष्णव योग मार्गी भी उनके सम्प्रदाय
में आ मिले थे।
गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात
तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है।
इनके माध्यम से ही उन्होंने हठयोगका उपदेश दिया।
गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे।
Vivek Surange
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इंटरवल तक तो जीवन में मस्त चलता है।
इंटरवल के बाद हाउस हस्बैंड और काममकाजी
पत्नी के बीच संबंध वैसे ही हो जाते हैं, जैसे आम विवाहों में।
अब शुरू होताहै। आर. बाल्की का संदेश।
दरअसल, आर. बाल्की कहना चाहते हैं कि वैवाहिक जीवन में
उतार चढ़ाव केवल व्यक्ति की व्यक्तिगत सपनों,
अहं और जीवन की भाग दौड़ के कारण आते हैं।
इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि
घर को कौन चला रहा है, महिला या पुरुष।
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आरक्षण महाराज की चेतावनी
SUMIT PRATAP SINGH
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बचा रहे थोड़ा मूरखपन
आज सुबह - सुबह मनुष्य के सभ्य होते जाने के बिगड़ैलपन की दैनिक कवायद के रूप 'बेड टी' पीते हुए उसे विश 'यू वेरी - वेरी हैप्पी फ़ूल्स डे' कह कर लाड़ जताया जिसको बाईस बरस के संगसाथ के बाद यह बात बताने कि जरूरत नहीं रह गई है कि ऐसे भी हम क्या - ऐसे भी तुम क्या ! कुछ देर बाद अभी परसों ही होली की छुट्टी बिताकर कालेज गई बेटी को फोन किया और इस खास दिन की बधाई दी...
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आज की चर्चा यहीं तक...
धन्यवाद।
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