मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अरे!अब तो मत छिपाओ, उजले कफन से ढक कर
(गजल)
किस गम के गीत गाऐं ,किसको वयाँ करें।
शिकवों का जाम आखिर ,कब तक पिया करें।।
ये है यकीं कि खाक से ,मोती नहीं निकलते,
पर खाक भी न छानें, तो करें भी तो क्या करें...
अभिव्यक्ति मेरी पर मनीष प्रताप
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मेरी शिकायत दर्ज की जाए मी लॉर्ड /
देवयानी
*- देवयानी भरद्वाज * कितने साल लगते हैं एक बलात्कार, एक हत्या, एक ज़ुर्म की सजा सुनाने में अदालत को कितने साल के बाद तक है इजाज़त कि एक पीड़ित दर्ज़ कराने जाये उसके विरुद्ध इतिहास में हुए किसी अन्याय की शिकायत...
Pratibha Katiyar
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'' खरीफ़ का गीत '' नामक गीत ,
कवि श्रीकृष्ण शर्मा के गीत - संग्रह -
'' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है -
सिर से ऊँचा खड़ा बाजरा ,
बाँध मुरैठा मका खड़ीं ,
लगीं ज्वार के हाथों में हैं ,
हीरों की सात सौ लड़ी। ...
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गन्तव्य
जीवन की अनचीन्ही राहें,
पार किये कितने चौराहे ।
फिर भी जाने क्यों उलझन में,
मैं पंछी अनभिज्ञ दिशा से...
Praveen Pandey
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कैसे तुझसे प्रीत करूं?
वो तेरा सपनों में आना, आकर मुझको रोज सताना
मगर हकीकत में क्यूँ लगता झूठा तेरा प्यार जताना...
मनोरमा पर श्यामल सुमन
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लकड़बग्घे
वो घोड़े पे सवार हो के स्टेज पे आये और उन्होंने stage पे आने से पहले ही तलवार निकाल ली ........ और तलवार भी कोई छोटी मोटी नहीं , बल्कि पूरी 80 किलो वाली . महाराणा प्रताप वाली तलवार । और आते ही खून खच्चर मचा दिया ।
सभा सन्न ....... आधे लोग तो बेहोश हो गए ......... वो तो अच्छा हुआ कि सभा में कोई गर्भवती महिलाएं न थीं , वरना बहुतों के तो गर्भ गिर जाते उस दिन ......... स्टेज पे आते ही उन्होंने पहले तो 100 - 200 seculars की गर्दन उतार ली । फिर लगे वहीं स्टेज पे ही राम मंदिर बनवाने ।
सरकार रहे या जाए ......... नहीं चाहिए सरकार ......... हमको राम मंदिर चाहिए ...
सभा सन्न ....... आधे लोग तो बेहोश हो गए ......... वो तो अच्छा हुआ कि सभा में कोई गर्भवती महिलाएं न थीं , वरना बहुतों के तो गर्भ गिर जाते उस दिन ......... स्टेज पे आते ही उन्होंने पहले तो 100 - 200 seculars की गर्दन उतार ली । फिर लगे वहीं स्टेज पे ही राम मंदिर बनवाने ।
सरकार रहे या जाए ......... नहीं चाहिए सरकार ......... हमको राम मंदिर चाहिए ...
Akela Chana पर Ajit Singh Taimur
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गली मोहल्ले में फसाद करके
हम राम मंदिर नहीं बना सकते
और फिलवक्त भाजपा के पास
पूर्ण बहुमत (राज्य और लोकसभा दोनों को मिलाकर )
है नहीं
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सत्ता आने के साथ
समाज की समझ घटती जाती है
...इस चिलचिलाती गर्मी में कार चलने वालों की कार छीनकर वो कार वालों को बुरी तरह से नाराज कर ही रहे हैं। मेट्रो और बसों में ज्यादा भीड़ बढ़ने से उन लोगों को भी नाराज कर रहे हैं। लेकिन, सत्ता के साथ ये हो जाता है। समाज की समझ कम होती जाती है।
HARSHVARDHAN TRIPATHI
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*मुक्त-मुक्तक : 822 -
कागज से भी पतली
कागज से भी पतली या फिर किसी ग्रंथ से मोटी से ॥
सागर से भी अधिक बड़ी या बूँद मात्र से छोटी से...
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पता है के तू यूँ हर गाम मुझको आज़माएगा
हंसाएगा, रुलाएगा, बहाने भी बनाएगा
पता है के तू यूँ हर गाम मुझको आज़माएगा...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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गीत
"कैसे सेवा-भाव भरूँ"
कैसे मैं दो शब्द लिखूँ और कैसे उनमें भाव भरूँ?
तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ?
मौसम की विपरीत चाल है,
धरा रक्त से हुई लाल है,
दस्तक देता कुटिल काल है,
प्रजा तन्त्र का बुरा हाल है,
बौने सम्बन्धों में कैसे, लाड़-प्यार और चाव भरूँ...
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