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मंगलवार, मई 16, 2017

टेलीफोन की जुबानी, शीला, रूपा उर्फ रामूड़ी की कहानी; चर्चामंच 2632

दोहे 

रविकर  
है पहाड़ सी जिन्दगी, चोटी पर अरमान।
रविकर झुक के यदि चढ़ो, हो चढ़ना आसान।।

गली गली गाओ नहीं, दिल का दर्द हुजूर।
घर घर मरहम तो नही, मिलता नमक जरूर।।

परख :  

आशा बलवती है राजन् :  

हिमांशु पंड्या 

समालोचन पर arun dev  

मां HAPPY MOTHER'S DAY 

Dr Varsha Singh 

सबको ‘बेईमान’ बनाकर सत्ता हासिल करने वाला 

‘ईमानदार’ नेता आज ‘बेईमान’ बन गया 

HARSHVARDHAN TRIPATHI 

माँ शब्द नहीं संबल है .....कोटिशः प्रणाम ! 

udaya veer singh 

मीठे बूँद 

Rewa tibrewal 

अब भी

Aditi Poonam 

मदर्स डे कुछ सवाल भी तो उठाता है ! 

गगन शर्मा, कुछ अलग सा 

माँ.... 

रश्मि शर्मा 

दोहे "पुरखों की जागीर"  

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

टेलीफोन की जुबानी,  

शीला, रूपा उर्फ रामूड़ी की कहानी 

ताऊ रामपुरिया 

कस्तूरी मृग है - माँ 

smt. Ajit Gupta 

रहेगी बात अधूरी 

श्यामल सुमन 

वह लड़का 

मेरी भावनायें...पर रश्मि प्रभा...

बेटी-माँ. 

बेटी ,माँ बनती है 
जब समझ जाती है. ... 
शिप्रा की लहरें पर प्रतिभा सक्सेना 

विपक्षी बिखराव के तीन साल 

pramod joshi 

दोहे 

"गिरवीं बुद्धि-विवेक"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

4 टिप्‍पणियां:

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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