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गुरुवार, जून 15, 2017

"असुरक्षा और आतंक की ज़मीन" (चर्चा अंक-2645)

मित्रों!
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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प्रतिदान 

देखा तुमने 
तुमने तो अपने तरकश से 
केवल एक ही तीर फेंका था 
लेकिन उस एक तीर ने 
असुरक्षा और आतंक की 
कैसी ज़मीन तैयार कर दी है... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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किसान की व्यथा 

खाली मेरी थाली 
भरा है तेरा पेट 
अन्न उगाऊं मैं 
खाऊँ मैं 
सल्फेट मिटटी पानी से लड़ूँ 
उसमे रोपूँ बीज 
पसीना मेरा गंधाये ... 
सरोकार पर Arun Roy 
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धूप लिफाफे में 

दिल्ली में मौसम मां-बाप की लड़ाई सरीखा हो गया है। दिल्ली की धूप हमारे जमाने के मास्टर की संटी सरीखा करंटी हुआ करती है। हमारे जमाने इसलिए कहा, काहे कि आज के मास्टर बच्चों को कहां पीट पाते हैं? दिन की धूप में बाप-सा कड़ापन है। होमवर्क नहीं किया, ज्यादा देर खेल लिए, पड़ोसी के बच्चे से लड़ लिए, किसी के पेड़ से अमरूद तोड़ लाए...ले थप्पड़, दे थप्पड़... 
गुस्ताख़ पर Manjit Thakur 
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आप से क्या मिला साहिब 

*आप से क्या मिला साहिब।*  
 दूर हुआ हर गिला साहिब।। *  
*मत पूछियेगा हाल दिल का *  
*गुलाब जैसा खिला साहिब... 
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745 

कुछ है...
मंजूषा मन
कुछ है...
हवा के  झोंके- सा
गुज़रा जो करीब से
महक उठा अन्तर्मन
बिखर गए इंद्रधनुषी रंग
खिल आई होंठों पर मुस्कान... 
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ऐंठन 

*किस बात पे इतना गरजे हो* 
*किस बात पे तुमको इतनी अकड़* 
*अपने ही बने उस जाल में कल * 
*फंस कर के मरी है एक मकड़... 
SB's Blog पर Sonit Bopche 
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ये जानते हुए कि ... 

ये जानते हुए कि 
नहीं मिला करतीं खुशियाँ यहाँ 
चाँदी के कटोरदान में सहेज कर 
जाने क्यों दौड़ता है मनवा उसी मोड़ पर 
ये जानते हुए कि सब झूठ है, 
भरम है ज़िन्दगी इक हसीं सितम है... 
vandana gupta  
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मोनू खान 

फुटपाथ पर बुक स्टॉल चलाते वक्त मित्रता हुई और कई सालों तक घंटों साथ रहा। मोनू खान, ईश्वर ने उसे असीम दुख दिया था। वह दिव्यांग था। उसके पीठ और सीने की हड्डी जाने कैसे, पर विचित्र तरीके से टेढ़ी मेढ़ी थी। असीम पीड़ा से जूझता एक आदमी। अष्टावक्र! बहुत लोग उसे कुब्बड़ कहके चिढ़ाते थे। बस इसी बात पे उसे गुस्सा से जलजलाते देखा है, कई बार। और अंदर से घूँटते हुए भी... 
चौथाखंभा पर ARUN SATHI 
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व्हाट्स एप मैत्री का अंत 

अर्चना चावजी Archana Chaoji  
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ग़ज़ल 

टूट कर दिल हमारा पिया रह गया 
ज़िन्दगी का सजन फलसफा रह गया... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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दुःख के गीत 

दुःख की घड़ी में 
कोई न देता साथ प्यारे।। 
कोई न देता साथ ।। 
सुख घड़ी में मुट्ठी बंधी 
औऱ दुःख में खुले हाथ.. 
Lovely life पर Sriram Roy 
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7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात शास्त्री जी ! बहुत सुन्दर चर्चा ! बहुत ही सार्थक सूत्र चुने हैं आज आपने ! मेरी रचना को आज के मंच पर स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात....
    बहुत ही अच्छा संयोजन
    आभार...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद शास्त्री जी 'क्रांतिस्वर ' ब्लागपोस्ट शामिल करने हेतु।

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं

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