आ गया फिर से मंगलवार!
इसलिए काव्यमंच है तैयार!
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"महके-चहके घर-परिवार"
नया साल मंगलमय होवे, महके -चहके घर परिवार।।
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अनाम भले हो...
अनाम भले हो...
******* तुम्हारी बाहें थाम पार कर ली रास्ता, तनिक तो संकोच होगा भरोसा भले हो !.... | मंथनमंथन किसी का भी करो मगर पहले तो विष ही निकलता है शुद्धिकरण के बाद ही अमृत बरसता है |
स्वाभाविक
समय का स्वभाव था
सो गुजर गया सूरज कभी चढ़ा था फिर उतर गया यह भावुकता का विषय नहीं तथ्य है नैसर्गिक चिर निरंतर का सच... |
नई आशा, नई उम्मीद
नया साल
एक नई आशा नई उम्मीद जगाता हुआ कलेंडर के पन्नों पर उतर आता है... | माँ तुझे सलाम!
सख्त रास्तों में भी आसान सफ़र लगता है,
ये मुझे मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है, एक मुद्दत से मेरी माँ सोयी नहीं है, जब से मैंने एक बार कहा था, माँ-मुझे डर लगता है! |
आचार्य संजीव वर्मा “ सलिल “ जी एक नव गीत के माध्यम से नए साल में खुद का आंकलन करने का सुझाव दे रहे हैं … एक नया पृष्ठ खुल रहा है ..महाकाल के महाग्रन्थ का |
वंदना सिंह लायी हैं एक गज़ल …जिसमें कह रही हैं कि ना कहा और न ही कबूला .. प्यार था पर कभी कहा नहीं …ज़िंदगी का खामोश सफर रहा लेकिन ठहराव नहीं आया ---
मंजिलें छूट गयीं और सबात* आया भी नहीं | कुसुम ठाकुर जी की एक प्यारी सी गज़ल -- गुम सुम रहो और न बातें करो, कहूँ मैं क्या जो यकीं मुझपर करो। ज़िद भी करूँ क्यूँ न वादा करो |
कल का इंतज़ार
ग़र गर्दिश में हो सितारा तो गम न कर,
अपने आप पर जुल्मो-सितम न कर , कल सवेरा होगा,सूरज भी निकलेगा, कुछ न कर बस कल का इंतज़ार तो कर |... |
प्रियंका राठौर बता रही हैं ज़िंदगी के शाश्वत सत्य को ..पढ़िए जीवन - मृत्यु के खेल को … जीवन और मृत्यु | दीपाली“ आब” की एक खूबसूरत गज़ल पढ़िए .. मेरी तहरीर पूछती है कान में मेरे लफ्ज़ महके हैं कौन आया ध्यान में मेरे.. क्या इज़ाफा हुआ है इम्तिहान में मेरे |
आज फिर उनके रूख पे नकाब नहीं है
आज फिर किसी का कत्ल होगा शायद
आज फिर उनके रूख पे नकाब नहीं है। हैं मुज़्तरिब वो कि उनका कोई रक़ीब नहीं आखिर इन्सॉं है वो कोई माहताब नहीं है।... |
| दिलीप तिवारी “ करिश “ बहुत दिनों बाद लाये हैं एक खूबसूरत गज़ल -- तेरा गम जब भी चखता हूँ, कड़वा सा हो जाता हूँ.... धीरे से अम्मा कहता हूँ, मैं मीठा हो जाता हूँ... एक कटोरी याद से तेरी |
उफान …सोच के
सोच ,
सर्फ़ के झाग की तरह कुछ देर फेनिल झागों के समान उभरी और ख़त्म हो गई दूध में उफान की तरह विचार उफनते हैं... |
पलाश के फूल -4
झड़ जायेंगे दिसम्बर की ठिठुरन से
कुम्हलायी आस के निस्तेजित फूल सारे
नववर्ष में नूतन स्वप्न सजाना तुम
पलाश के फूल बन खिल जाना...
| चुप - चुप - चुप ......
चुप - चुप - चुप , चुप - चुप - चुप
हम तुम दोनों , क्यों हैं चुप ...
सर्द रात की स्याही में ,
कहीं चांदनी छिटक आई है ,
नन्हें - नन्हें तारों बीच ,
कहीं ध्रुव तारे ने आवाज लगाई है ,
अब तो धुंध भी छटने को है ,
फिर भी -... ....
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आप सब को नव वर्ष की शुभ कामनाएं
दोस्त सब जान से भी प्यारे हैं जब तलक दूर वो हमारे हैंजो भी चाहूं वहीँ से मिलता है मॉं के हाथों में वो पिटारे हैं |
राजेश चड्ढा जी सुबह के लिए बिलकुल एक नया विचार लाए हैं .ज़रा आप भी देखें यह क्या कह रहे हैं …खुदगर्ज़ सुबह |
मेरे जज्बात आज-कल तो वो बड़ी ही शान में रहता है - आज-कल तो वो बड़ी ही शान में रहता है क्या बात हुयी है किस गुमान में रहता है जो चला है मेरे आँगन में पत्थर बरसाने अरे खुद भी तो कांच के मकान में ......... |
असीम नाथ त्रिपाठी बड़ी बेचारगी से बता रहे हैं कि लो जी आ गया नया साल …क्या क्या होगा ..और फिर आ जायेगा एक नया साल …पढ़िए उनके विचार --नया साल |
ख़ुशियों का गहना : रावेंद्रकुमार रवि का नया बालगीत
फूलों से ख़ुशबू लाई,
तारों से लाई झिलमिल!
सबका मन सरसाती है,
हँसती है जब खिल खिलखिल!
बनकर ख़ुशियों का गहना!...
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क्यूँ उठने लगे हें सवाल
क्यूँ उठने लगे हें सवाल ,
रोज होने लगे हें खुलासे , और होते भंडाफोड , कई दबे छिपे किस्सों के , पहले जब वह कुर्सी पर था , कोई कुछ नहीं बोला , हुए तो तभी थे कई कांड , | हो जाये साले-नौ में मुहब्बत पे गुफ़्तगू
छोडो, बहुत हुई है, सियासत पे गुफ़्तगू
होजाए साले-नौ में मुहब्बत पे गुफ़्तगू बर्बाद करके जाएगा ये वक़्त देखिये करते रहे जो हम यूँही नफ़रत पे गुफ़्तगू
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बड़ा ही जानलेवा है
तुम्हारा रूठकर जाना, बड़ा ही जानलेवा है,
हुई ग़लती चलो माना, बड़ा ही जानलेवा है,
हमारी बात पर हमको भले ही बे अदब समझा
यूँ महफिल छोड़कर जाना, बड़ा ही जानलेवा है.....
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जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना
घी से भरे दीपक को जला के रखना
अपने हाथों के सहारे रोके रखना लौ को,
कितनी भी अंधी आये मुझे बुझने ना देना
जब में कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,..
| प्राण तुम्हारे नयनों मेंश्रीमती ज्ञानवती सक्सेना 'किरण'
प्राण तुम्हारे नयनों में मैं
खोज रही कुछ सुख का स्त्रोत, दीन निर्धनों की आहों से करुणामय हो ओत-प्रोत ! |
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र विदा करो मुझे - विदा करो मुझे अब अपनी रूह से अब नहीं रुक पायेगी रूह मेरी तेरे साथ रूह की चादर पर टंगे तेरे ख्वाब अब नयी ताबीर नहीं लिख पाएंगे मेरी ज़ख़्मी रूह के हर नासूर पर... |
मेरी गली के आवारा कुत्ते मेरी गली में रहते कुछ आवारा कुत्ते इंसानों के बीच रहते रहते अपना पराया सीख चुके गली में कोई उनका गैर नहीं बाहरी कुत्ते आये तो फिर उनकी खैर नहीं ये... | सर्प और सोपान
जीवन का कटु यथार्थ है , सांप सीढ़ी का खेल
त्रासदी है मानव जीवन की, इन संपोलो से मेल
मनुष्य और सर्प के रिश्ते , है बो गए विष बेल
ना जाने कितने अश्वसेन, कितने विश्रुत विषधर भुजंग
बढ़ा रहे शोभा कुटिल ह्रदय की, जैसे वो उनका हो निषंग
ताक में रहता है वो , कब छिड़े महाभारत जैसा कोई प्रसंग
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कविता - *कविता----- अपनी बात * नया साल आप सब के लिये सुख समृ्द्धि, शान्ति ले कर आये। 7-8 दिन नेट से दूर रही। आज समझ नही आ रहा कि कहाँ से शुरू करूँ। बच्चों के साथ छु... |
अब आज का चर्चा मंच समाप्त करने की आज्ञा दीजिए! |
सुन्दर और विस्तृत चर्चा के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सारी लिंक्स दी हैं आपने बधाई |नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
कुछ बड़ी सुन्दर कवितायें।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाओ की सुन्दर चर्चा ....
जवाब देंहटाएंकुछ लिंक्स काम नहीं कर रहे हैं
सुन्दर चर्चा, अच्छे लिंक्स आभार व नवर्ष की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंsarthak charcha-bahut sare links.aabhar .
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, अच्छी चर्चा बधाई।
जवाब देंहटाएंकितनी मेहनत करती है आप बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों से सजी चर्चा , बहुत सारी सुन्दर कविताओ को पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ .
जवाब देंहटाएंकविताओं के इस बेड़े में हृदय के भाव यत्र-तत्र जम से गए। यूं ही भावों का कविता संग छूट जाना एक नई खनक को नए बोल दे जाती है और मन वहीं रम जाता है।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी की चर्चा हमेशा की तरह सुन्दर और बढ़िया लिंक ... संगीता जी को और सभी ब्लॉग मित्रों को नव वर्ष पर पुनः शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंसभी लिंक अलग-अलग विंडो में यदि खुल सकें तो ही अपना मनपसन्द पढने में आसानी होती है । वर्ना गाडी कब पटरी से उतर जाती है यह मालूम ही नहीं पड पाता ।
जवाब देंहटाएंयह सुझाव इस मंच पर मैंने कुछ दिन पहले भी दिया था और उसके अगले दो-तीन दिन विंडो अलग-अलग खुल भी रहे थे किन्तु समस्या फिर जस की तस हो गई है ।
यदि सम्भव हो तो यह सुधार अवश्य करें । धन्यवाद...
बहुत सुन्दर चर्चा मंच सजाया है……………काफ़ी अच्छे लिंक्स्…………आभार्।
जवाब देंहटाएंवाह कविताएं ही कविताएं. बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया कि हमारी रचना को आपने चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने लायक समझा। बहुत ही अच्छा लगता है कि इतने सारे लिंक्स एक साथ पढ़ने को मिल जाती है। एक बार फिर से आपका शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और विस्तृत चर्चा के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाओ की सुन्दर चर्चा ....आभार!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक लिंक्स आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक चर्चा...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक दिए आपने...
आभार...
सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंmeri post ko charcha manch pr lane ke liye bhut aabhar....nav vrsh ki shubhkamnaye....
जवाब देंहटाएंबहुत हि अच्छे लिंक्स मिले .......बहुत ही सुंदर चर्चा..आभार
जवाब देंहटाएंabhi blogging ki duniya me naya hoon aapka MANCH sach-much kafi achcha hai....achche POSTS likh kar kisi ke kaam aa paun aisa aashirvaad apekshit hai aapse. Dhanyawad
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत सजाया है आज का चर्चा मंच । बहुत उपयोगी लिँक प्राप्त हुए । आभार दी ।
जवाब देंहटाएंbahut acchhe links mile. charcha manch ke prati aapki mehnat aur nishtha ko salaam.
जवाब देंहटाएंचर्चा का अंदाज़ बेहतरीन है...
जवाब देंहटाएंनीरज