नमस्कार ,लीजिए हाज़िर हूँ साप्ताहिक काव्य मंच ले कर आपके सम्मुख …उत्तरभारत ने ठण्ड का आनंद लिया , मकर संक्रांति ( लोहड़ी , पोंगल ) का त्योहार मनाया गया …और अब तैयारी है गणतंत्र दिवस की …इन त्योहारों के लिए सबको मेरी शुभकामनायें …अभी भी सर्दी काफी है , कभी कभी धुंध छाई रहती है …लेकिन बसंत आने को है ….इसी भाव से आज हम चर्चा प्रारंभ करते हैं डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की रचना से ---- |
डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी को सर्वप्रथम मैं उनकी दो पुस्तकों के विमोचन की हार्दिक बधाई देती हूँ ….आपकी छंदबद्ध रचनाएँ सुखद लगती हैं …आज की कविता प्रकृति का जीवंत चित्रण कर रही है ..पड़ रहा पाला है कुहासे की चादर, धरा पर बिछी हुई। नभ ने ढाँप ली है, अमल-धवल रुई।। |
नीरज गोस्वामी जी की एक खूबसूरत गज़ल ..लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से प्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से खार के बदले में यारो खार देना सीख लो गुल दिया करते जो, वो लोग हैं नादान से |
राजभाषा पर पढ़िए इस नाचीज़ की रचना अस्तित्त्व जब आया पैगाम मेरी मौत का मेरे पास कहा मैंने ठहर अभी उसका ख़त आएगा गर ठहर तू जायेगी कुछ देर और तो क्या धरा पर भूचाल आ जायेगा । | नीलेश माथुर लाये हैं अपने संघर्ष की कहानी …मेरा कुछ सामान (1) मेरा जूता मेरे पैर का अंगूठा अक्सर मेरे फटे हुए जूते में से मुँह निकाल कर झांकता है |
हरकीरत “हीर “ जी से कौन परिचित न होगा …नज़्म लिखती हैं कि दर्द को उड़ेल कर रख देती हैं …मुहब्बत ..तकदीर और कुछ चुप्पियों के बादल बरसा ही तो दिए हैं … तुमने कहा था ... / तुम आना मैं मिलूँगा तुम्हें / सड़क की उस हद पे / जहाँ गति खत्म होती है मैं बरसों तुम्हें ... / सड़क के हर छोर पे / तलाशती रही .... / पर तुम कहीं न मिले / बस एक सिरे पे ये आज / कब्र मिली है ..... |
वंदना गुप्ता जी यादों की गहनता में डूबी कह रही हैं ..एक बार तो कहो जानम इतनी बेचैनी /तो कभी ना हुयी इतना तो आँख /कभी ना रोई कुछ तो कारण होगा /शायद तुमने मुझे याद किया होगा /है ना जानम! | रामपती मेरे भाव नाम से लिखती हैं … बहुत खूबसूरत रचना लायी हैं –पाजेब आँखों ही में गुजरी रात स्याह अँधेरी और गहन सूरज से कर मीठी बात आओ रश्मि पाजेब पहन |
पी० सी० गोदियाल जी देशवासियों को चेता रहे हैं कि देश उनको पुकार रहा है …तुम्हें मादरे हिंद पुकार रही है , उठो सपूतों तुम्हे मादरे हिंद पुकार रही है,उठो सपूतों, वतन के मसले पर, तुम ढुलमुल कैसे हो ! बहुत लूट लिया देश को इन बत्ती वालों ने, अब यह सोचो, इनकी बत्ती गुल कैसे हो!! |
एक तितली उड़ी मधु मॉस में नीलाम्बर में , किसी की तलाश में | श्याम कोरी “ उदय “ जी का पढ़िए कडुआ सच ..न भी चाहेंगे , फिर भी किसी हाथ से जल जायेंगे खटमल, काक्रोच, मच्छर, दीमक, मकडी, बिच्छू हिस्से-बंटवारे में लगे हैं, लोकतंत्र असहाय हुआ है ! |
साहिल जी की एक खूबसूरत गज़ल पढ़िए तेरी यादों का दिल पे जाल रहा ज़ख्म पर रेशमी रुमाल रहा खुद ही दिल से तुझे निकाला था, ये अलग बात के मलाल रहा |
हँस राज सुज्ञ साधक से प्रश्न करते हुए जानना चाहते हैं कि -दुर्गम पथ पर तुम न चलोगे कौन चलेगा कदम कदम पर बिछे हुए है, तीखे तीखे कंकर कंटक। भ्रांत भयानक पूर्वाग्रह है, और फिरते हैं वंचक। पर साथी इन बाधाओ को तुम न दलोगे कौन दलेगा | पंकज शुक्ल जी की एक खूबसूरत गज़ल ..फिर भूलूं , क्यों याद करूँ मैं तारे भी तोड़ लाता आसमां में जाकर, तुम ही छिटक के दूसरे का चांद हो गईं। घनघोर घटाटोप* से मुझको कहां था डर, तुम ही चमक के दूर की बरसात हो गईं |
गुनगुनी सी साधना छोड़ें आज धधकने दें ज्वाला, प्यास कुनकुनी प्यास ही नहीं आज छलकने दें प्याला ! भीतर छिपी अनंत शक्तियाँ प्रभु का अकूत खजाना जितना चाहें उसे उलीचें खत्म न होगा आना |
पूनम जी ज़िंदगी की बिसात पर कैसे मोहरे चलते हैं ..यह बता रही हैं अपनी रचना में - ज़िन्दगी की बिसात पर मोहरे इंसानों के चलता है कोई कभी रिश्तों के रूप में, कभी दोस्तों के रूप में, कभी भावनाओं के रूप में, तो कभी भाग्य के रूप में.... | हरीश प्रकाश गुप्त जी धूप के बिम्ब से गहन भाव का एक नवगीत लाये हैं पूस के जाड़े में ठिठुर रही धूप। सुविधा के मद में नैतिकता होम हुई |
साधना जी का मन अब किसी की आवाज़ से रूकने वाला नहीं …पढ़िए उनकी एक खूबसूरत रचना उड़ चला मन इन्द्रधनुषी आसमानों से परे, प्रणय की मदमस्त तानों से परे, स्वप्न सुख के बंधनों से मुक्त हो, कल्पना की वंचनाओं से परे, उड़ चला मन राह अपनी खोजने, तुम न अब आवाज़ देकर रोकना ! |
मृदुला प्रधान जी की एक बहुत खूबसूरत रचना- धडकनों की तर्ज़ुमानी धड़कनों की तर्ज़ुमानी,/अ़ब किताबों में/रखा है ,/मैंने भी वह/शीत चखा है . | रचना दीक्षित जी ने निशाना साधा है मीडिया पर और दी है खबर आसमान में आज परिंदों की खूब आवा-जाई है /वहां पे उन्होंने खूब खलबली मचाई है. |
श्रद्धा जैन लाईं हैं टूटे हुए दिल की बस इतनी सी कहानी …. शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी फिर कोई कबीले से कहीं दूर चला है बग़िया में किसी फूल पे आई है जवानी |
अतुल प्रकाश त्रिवेदी जी की कविताएँ गहन अभिव्यक्ति लिए होती हैं …आप भी पढ़ें …यात्रा किसी घुमक्कड़ की /सारी संपूर्ण निरर्थक यात्रा | / अंतिम पड़ाव पर किसी ने नहीं कहा /फिर मिलेंगे | ज्ञानचंद मर्मज्ञ द्वारा रचित आतंकवाद.. पर लिखी श्रृंखला का अंतिम पड़ाव … जब से आकाश उनका हुआ है, /पंख नीलाम करने लगे हैं! /हादसों की ख़बर सुन के बच्चे, /पैदा होने से डरने लगे हैं! |
ख़ाक है संसार बुलबुले सी ज़िदगानी, या ख़ुदा, है कोई झूठी कहानी, या ख़ुदा। वक़्त की फिरकी उफ़क पर जा रही, छोड़ती अपनी निशानी, या ख़ुदा। |
केवल राम जी कह रहे हैं ..देख लीजिए …. तो चलिए ज़रा देखा जाए रूठा हूँ तो मनाकर देख लीजिये दूर गर हूँ तुमसे पास बुलाकर देख लीजिये खफा क्योँ हो तुम, कि हम तुम्हें प्यार नहीं करते अपनी अदा-ए-इश्क दिखाकर देख लीजिये | मुहब्बत ज़िंदगी का खूबसूरत पहलू है ..यही कह रहे हैं शाहिद मिर्ज़ा जी …अपनी खूबसूरत गज़ल में गुनगुनाएं मुहब्बत में अजायबघरों में सजाएं मुहब्बत कहीं से चलो ढूंढ लाएं मुहब्बत तराना दिलों का बनाएं मुहब्बत चलो साथ में गुनगुनाएं मुहब्बत |
पूजा उपाध्याय उदासी के कोहरे की चादर और साँस साँस खारा पानी लहरों का महसूस करते हुए कह रही हैं कि ज़िंदगी बड़ा बेमानी सा लफ्ज़ हो गया है -- किनारे पर डूबने की ज़िद गहरे लाल सूरज के काँधे से / रात उतारती है लिबास उदासी का / और दुपट्टे की तरह फैला देती है आसमान पर / हर बुझती किरण से कोहरे की तरह / बरस रही है उदासी |
स्वराज्य करुण देश के नेताओं को भगवदगीता का सार सुना रहे हैं .. कितनी ज़मीन ले कर जाओगे अनंत यात्रा पर हे राजन ! तुम और तुम्हारे दरबारी क्या लेकर आए थे इस दुनिया में और क्या लेकर जाओगे यहाँ से | दिव्या जी की लेखनी इस बार बादल और जुल्फों पर भी चली है …ज़रा बानगी देखिये - सौतन जुल्फें बादल में यूँ छुप-छुप के , जुल्फों की परी आई । भीगे हुए लबों पर , है मुस्कान थरथराई। |
अविनाश चन्द्र बिगुल बजा रहे हैं कि यदि हमें अपने इतिहास और भूगोल बचाए रखने हैं तो समर ही श्रेयस्कर है .. अब चीर के सप्त वितानों को, औ तोड़ के प्रति प्रतानों को। मधु-संकुल से बाहर निकलो, रज-विरज में प्राण बहाने को। |
अलोकिता जला रही हैं आशा का दिया जब सूरज उगने लगता है और पंछी गाने लगते हैं तब भोर किरण आशा बनके इस दिल को जगाने लगती है | मंजु मिश्रा अभिव्यक्ति पर लायी हैं कुछ क्षणिकाएं ..चलो जुगनू बटोरें रिश्ते, बुनी हुयी चादर एक धागा टूटा बस उधड़ गए |
तलबल पानी के कोटर में / अन्धकार के गोले में / कुछ धमनियों का शोर था / सिकुड़ी सिमटी /सकुचाई अधखिली / मैं खिलने को, खुलने को बेताब थी / रौशनी के पुंज संग /वो परी आई |
अमृता तन्मय कह रही हैं कि दुनिया ही नहीं घर भी रहस्यमय होता है और यही दावा भी कर रही हैं जितनी रहस्यमयी है घर से बाहर की दुनिया उससे कहीं ज्यादा रहस्यमय है -ये घर | के० एल० कोरी की एक खूबसूरत गज़ल -ख्वाब में ही सही आके तो मिला कर कभी मुझ पर भी तू इतनी दुआ कर ख्वाब में ही सही आके तो मिला कर | |
अनुपमा पाठक की रचना भक्ति मार्ग को अपनाने को प्रेरित करती है …मुक्ति का सोपान-- सूरज की / किरणों सा / स्निग्ध / चाँद की / चांदनी सा / सौम्य . |
राज़ी शहाब बहुत सी यादों को समेटे लाये हैं ये पल याद आएंगे ये चुलबुले से कुछ पल दुनिया के झमेलों से थक हार कर जब उठाएंगे पुरानी डायरी सच बहुत याद आएंगे ये पल | धीरेन्द्र सिंह जी रचयिता की कल्पना की उड़ान की बात कह रहे हैं - सांखल बजती रही भ्रम हवा का हुआ कल्पनाओं के सृजन की है यही कहानी डूब अपने में किल्लोल की कमनीयता लिए रसमयी फुहार चलती और कहीं जिंदगानी |
आज की चर्चा का समापन मैं प्रवीण पांडेय जी की कविता से करना चाहूंगी जिसमें उन्होंने मानव के आज के जीवन को समग्रता से समेटा है … टाटों पर पैबंद लगे हैं सुख की चाह, राह जीवन की, रुद्ध कंठ है, छंद बँधे हैं। रेशम की तुम बात कर रहे, टाटों पर पैबन्द लगे हैं। |
आशा है आज के मंच पर आपको अपनी पसंद के लिंक्स मिले होंगे …लिंक्स तक पहुँचने के लिए आप चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं ….आपकी प्रतिक्रियाएं हमारा मनोबल बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं … आपके सुझावों का हमेशा स्वागत है ….तो फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को एक नयी चर्चा के साथ …नमस्कार ----- संगीता स्वरुप |
बहुत सारी लिंक्स देने के लिये व अच्छी चर्चा के लिये बहुत बहुत बधाई |आभार मेरी रचना शामिल करने के लिये |
जवाब देंहटाएंआशा
इस सतरंगी चर्चा के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंपिछले 15 दिनों से हम तो तरस ही गये थे आपकी खूबसूरत चर्चा को देखने के लिए▬
हमेशा की तरह उम्दा रचनाएं चुनी हैं आपने..................मुझ नाचीज़ को इन नामी लेखकों और कवियों में शामिल करने का आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रखरओ उठी है यह साप्ताहिक काव्य चर्चा!!
जवाब देंहटाएंसभी उत्त्मोत्तम अहसासो लाकर को सजाया है।
मैं तो एक एक को पढने में ही व्यस्त हो गया।
मेरी रचना शामिल करने के लिये आभार!!
आज का चर्चा मंच मुझे तो किसी काव्य-कलश जैसा प्रतीत हो रहा है. सुंदर लिंक्स के साथ आपने एक सुंदर गुलदस्ते की तरह सजाया और संवारा है इसे . बहुत-बहुत बधाई.मुझे भी जगह मिली . इसके लिए आभार.
जवाब देंहटाएंbahut sundar indrdhanushi charcha ... kai rang links ke .. abhi link dekh rahi hun... aapka aabhaar meri post ko charcha me sthaan diya .. Dhanyvaad ..
जवाब देंहटाएंaaj meri aik kahani Vishwgatha blog me bhi chhapi hai padhiyega aur vichaar rakhiyega...
http://vishwagatha.blogspot.com/2011/01/blog-post_17.html?spref=fb
चर्चा मंच पर बीच बीच में आना जाना लगा रहता है . टिपण्णीयां लिखने का संकोच नहीं जाता . दूसरी बार इस यात्रा में शामिल करने के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंआद.संगीता जी,
जवाब देंहटाएंवसंत आने में अभी देर है मगर चर्चा मंच का वसंत तो जैसे आज ही आ गया है ,चुन चुन कर रंग विरंगे कविताओं की अलौकिक सुन्दरता को लेकर !
आपके मेहनत की खुशबू से सराबोर आज के चर्चा मंच की शोभा देखते ही बनती है !
मेरी कविता 'हर जनाज़ा यहाँ बेकफ़न है' को इस मंच पर स्थान देने के लिए आभार !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
संगीता जी, वाक़ई बहुत अच्छी चर्चा रही, सभी लिंक्स पर जाने का प्रयास रहेगा...
जवाब देंहटाएं’गुनगुनाएं मुहब्बत’ ग़ज़ल को शामिल करने के लिए शुक्रिया.
रंग-बिरंगी, मनभावन और आकर्षक चर्चा के लिए बधाई। हमारे ब्लॉग को स्थान देने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंbahut sundar sajeeli charcha .aanand aa gaya .badhai.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा .. इतने सारे लिंक्स के लिए आपका आभार !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सार्थक, स्तरीय व उपयोगी चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुत की आपने..... बेहतरीन लिनक्स का समायोजन..... आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर कवितामयी चर्चा के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा , इतने सारे बेहतरीन लिंक एक साथ! वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा उम्दा लिंक्स के साथ !
जवाब देंहटाएंsangeeta ji,achhe links ke liye shukriya.....sarthk akarshk chrha.............
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,
मेरे इस छोटे से प्रयास को , चर्चामंच पर स्थान देने के लिए आपका आभार। मुझे कविता लिखनी नहीं आती , लेकिन आपने मुझे प्रोत्साहन देकर अपने बडप्पन का परिचय दिया है ।
शेष लिंक्स पर धीरे-धीरे पहुँच रही हूँ।
पुनः आभार।
.
बहुत ही सुन्दर लिंक्स लगाये हैं काफ़ी सारे पढ लिये है और कुछ पहले पढ चुकी हूँ ……………बहुत मेहनत से की गयी चर्चा के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंbahut sundar aur sarthak charcha .
जवाब देंहटाएंdher sari links dene ke liye bahut-bahut aabhar!
फिर भूलूं, क्यूं याद करूं को इतने गुणी लोगों के बीच जगह मिली, इसके एहसास से ही मन प्रसन्न हो गया। सभी अग्रजों को अभिवादन और प्रणाम स्वीकार हो।
जवाब देंहटाएंचर्चा में पहली बार पदार्पण किया अच्छा लगा किन्तु समीक्षा के नाम पर सिर्फ " उम्दा लिंक्स, इन्द्रधनुषी, आदि आदि" विशेषण प्रयोग किये गए परन्तु किसको कितने नंबर दिए जाये यानि कौन सी रचना उत्तम , अति उत्तम, और सर्वोत्तम है उसके मानदंड कही नहीं दिखाई दिए क्या ऐसा हो सकता है रचना विशेष पर साहित्यिक , और गैर साहित्यिक दृष्टी विश्लेषण हो सके . यदि कुछ सीमा से अधिक और अन्यथा कह गाय हूँ तो दृष्टता के सादर क्षमा प्राथी हूँ
जवाब देंहटाएंकुछ बहुत अच्छी-अच्छी कवितायें और नज्में !दिल बाग बाग हो गया, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा ..
जवाब देंहटाएंसाप्ताहिक चर्चा मंच का मुझे हमेशा अधीरता से इंतज़ार रहता है ! इतनी सुन्दर चर्चा एवं बेहतरीन लिंक्स के लिये आभार एवं धन्यवाद ! मेरी रचना को आपने इसमें स्थान दिया उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंसर्दियाँ भी आ गईं और संगीता स्वरुप भी, अपनी चित परिचित ,रंग विरंगी,खूबसूरत लिंक्स वाली चर्चा लेकर अब इन सुन्दर रचनाओं को पढकर सर्दी का असर थोडा कम होगा :).
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी चर्चा रही आज की । काफी अच्छे अच्छे लिँक सजोय है । आभार दी ।
जवाब देंहटाएं"गजल............है जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्बत"
सबसे पहले मैं आप सबों को ह्रदय से धन्यवाद कहना चाहती हूँ .... विशेष रूप से संगीता जी को जो अथक परिश्रम से इस चर्चा -मंच को एक अलग सौंदर्य प्रदान करती हैं .मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार शब्द कम पड़ रहा है .
जवाब देंहटाएंसंगीता दी देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ . सुदर रंग बिरंगा मंच सजाया है आपने. मेरी खबर को सबको पढ़वाने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार
आज के चर्चामंच की रचनाओं बहुरंगी हैं। विभिन्न विषयों पर केन्द्रित ये रचनाएं मन को मोहती हैं।
आपने बड़े परिश्रम से इसे सजाया है।
मेरी रचना को भी सम्मिलित करने के लिए आपके प्रति आभार।
जरा ये भी पढ़िए
जवाब देंहटाएंपैसे की नयी परिभाषा.
आप के कल के चर्चा के लिए बढ़िया हैं
sundar charcha!
जवाब देंहटाएंaabhar!
बहुत अच्छे लिंक्स मिले ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत सारे लिंक्स!
जवाब देंहटाएंइतना सब देखना संभव भी नहीं.आपके चयन व श्रम को साधुवाद!
wah.ekdam man khush ho gaya.bahut achchi-achch cheezen padhne ko mili.ek baar fir mujhe lene ke liye aapki aabhari hoon.
जवाब देंहटाएंnice blog..........good post
जवाब देंहटाएंLyrics Mantra
Music Bol
संगीता जी, एक ही मंच पर इतनी सुन्दर और शशक्त रचनाएँ पढ़ने का सुअवसर प्रदान करने के लिए ह्रदय से आपका धन्यवाद करती हूँ. मंच पर देर से आने के लिए क्षमा भी चाहती हूँ. अभी कुछ रचनाएँ ही पढ़ पाई हूँ.. धीरे धीरे सब पढूंगी. लेकिन जितना भी पढ़ा है अत्यन्त प्रभावशाली है. श्रेष्ठ एवं स्तरीय रचनाओं तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करने का जो महान कार्य इस चर्चामंच के माध्यम से आप कर रही हैं उसके लिए आभार .
जवाब देंहटाएंडा० रूपचन्द्र शास्त्री जी उनकी पुस्तकों के विमोचन के लिए हार्दिक बधाई .
ज्ञानचंद जी की रचना रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख/रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख/पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे/इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख /" समय की पुकार है, आतंकवाद को ख़त्म करने को, विचार मंथन आज की जरुरत है.
रचना जी की रचना खबर " सोचती हूँ, बता दूँ, सच सबको, कल जब से अख़बार की पतंगे बना आसमान में ऊँची उड़ाई हैं. पढ़-पढ़ कर परिंदों ने इक इक खबर पूरे आकाश में सुनाई हैं." बेहद प्रभावशाली लगी. मृदुला जी की "धडकनों की तर्जुमानी... " एक संवेदनशील एवं भावपूर्ण रचना है. वंदना जी की रचना "ये प्रीत की कौन सी नयी रीत चली है जहाँ दरिया तो बहता है मगर ज़मीन सूखी है.. " एक भावमय अभिव्यक्ति...
मेरी रचना "चलो जुगनू बटोरें" को इस मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद. सबको नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित,
सादर
मंजु
व्यस्तता के कारण बहुत दिनों बाद चर्चामंच पर आया.पहले सी ही उम्दा रचनाएँ.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
इस सार्थक काव्य चर्चा के लिए मेरी बधाई स्वीकार कीजिये...आपके माध्यम से बहुत सी छूटी हुई रचनाएँ पढने को मिल जाती हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
charch manch ke madhyam se bahut kuch naya padhne ko mila..aadarniya sangeet didi ka bahut bahut abhar..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह
अच्छी चर्चा के लिये बधाई...
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
जवाब देंहटाएंपहले तो आपको धन्यवाद कि आपने मुझे चर्चामंच से अवगत कराया.मैंने "बस यूँ ही" ब्लॉग पर लिखना शुरू कर दिया था बिना कुछ ज्यादा जाने-बूझे...आपके सहयोग के लिए भी धन्यवाद कि आपने मुझे बताया कि टिप्पणी कैसे सुविधापूर्वक लिखी जा सकती है..ये मेरा सौभाग्य है कि आपने ढेर सारी बेहतरीन रचनाओं के चौपड़ में "मोहरे" को शामिल किया... यहाँ आ कर मुझे एक से एक शब्दों के महारथी मिले...आपका कितना शुक्रिया करूँ कि इतने दोस्तों की बेहतरीन रचनाओं को पढ़ने का अवसर आपने मुझे दिया.
मंच पर देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ..चर्चामंच के सभी सुधि जनों को बधाई व शुक्रिया...!!!!आपका आभार...
आशा है कि बड़ी बहन की तरह आगे भी आपका सहयोग मुझे मिलता रहेगा....
sangeeta jee,aapka bahot bahot shukriya...aapne apne charchamanch ka hissa mujhe bhi banaya...likhne ka hausla duguna ho jaata hai jab aap jaisa koi is tarah hausla badhata hai...
जवाब देंहटाएंthank you.