नमस्कार - काव्य की साप्ताहिकी लेकर हाज़िर हूँ … कल गणतंत्र दिवस है ..राजपथ पर परेड की तैयारियां जोर शोर से हैं , विभिन्न राज्यों की खूबसूरत झांकियां निकलेंगी , विद्यालयों के बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम मन को लुभाएगा …सेना के तीनों अंगों का भव्य प्रदर्शन होगा …देश के विकास का जायज़ा लिया जायेगा …पर आम जनता के मन में जो प्रश्न उमड़ते हैं उनको जानिये हमारे रचनाकारों की रचनाओं में ….आज चर्चा का प्रारम्भ कर रहे हैं ऐसी ही एक रचना से … |
अंग्रेजी से ओत-प्रोत, अपने भारत का तन्त्र, मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र। |
गिरीश पंकज जी की एक गज़ल …मुझको मंजिल नहीं , डगर देते जाना जीने का बस एक हुनर देते जाना मुझको कोई ख़्वाब इधर देते जाना बची रहे ये दुनिया हरदम पापों से ऊपरवाले का इक डर देते जाना | मनोज जी इस बार लाये हैं एक गृहणी के मनोभावों से युक्त रचना ..हाउस वाईफ फोन.. शांत, कोने में .. एकांत, तुम्हारा स्वर आए तरसती हूं दिनभर। करती हूं इंतज़ार शाम का, घर आओगे |
शोभना चौरे जी मैं और तुम के भेद को समाप्त करती हुई कह रही हैं ..कुछ यूँ ही ... मै तो हूँ तुम्हारी मै , में मुझे ऐसे खोजते हो जैसे रात में धूप खोजते हो ? |
वंदना जी गणतंत्र दिवस पर आम जनता की वेदना को शब्द दे रही हैं …फिर कैसा गणतंत्र प्यारे ? जो करते घोटाले देश को देते बेच उसी को हार पहनाते हैं देश की खातिर जान गंवाने वाले तो रूखी सूखी खाते हैं ये कैसा गणतंत्र है प्यारे ये कैसा गणतंत्र ? | अरुण सी० राय विकास के सरोकारों की बात करते हुए कह रहे हैं …होना ही था.. होना ही था जंगलों को तबाह देने के लिए रास्ता सडको को /राजमार्गों को अलग बात है यह पगडण्डी नहीं मांगती बलिदान बिठाती है सामंजस्य . |
डा० शरद सिंह प्रवासी भारतीयों के दर्द को कुछ इस तरह बयाँ कर रही हैं -- घर के बाहर घर की यादें घर के बाहर घर की यादें और अधिक गहराती हैं। कच्ची इमली, नीम की छाया, सब की यादें आती हैं। कैसा होगा देश में सूरज, चंदा कैसा दिखता होगा नदी-ताल की चंचल लहरें, आंखों में छा जाती हैं। |
इमरान अंसारी .मीरा दीवानी के मन के भावों को शब्दों में उतार कह रहे हैं ..तुमको बाँध चुकी हूँ मन में ब्लॉग पर ताला जड़ा है ..और रीडर पर पूरी पोस्ट आई नहीं …इस लिए पोस्ट का अंश नहीं उठा सकी … | पारुल जी ज़िंदगी के बारे में बस कह रही हैं ---उफ़ डूबी सी है खुद के अन्दर ढूँढती है फिर भी समंदर जाने क्यों ये खाली जिंदगी उफ़!ये साली जिंदगी !! |
मैं अंधेरे में खड़ा था, रोशनी की आस लेकर। मिट गया सब तिमिर गहरा जल गया जब दीप कोई। दे गया था धवल मोती पड़ा तट पर सीप कोई। उतर आए लो! सितारे झील में आकाश लेकर। |
रचना दीक्षित शून्य को जीवन के जोड़ घटाव में लेकर आई हैं अपनी रचना शून्य में जब भी उलझती हूँ, अंतर्मन की गांठों से. याद आते हैं आर्य भट्ट, शून्य के जनेता, प्रणेता उनका गणित | अमित चन्द्र अपने ब्लॉग एहसास पर लाये हैं ---याद याद आता है मुझे तेरे साथ गुजरा वो जमाना। तुम्हारा हॅसना, मुस्कुराना छोटी-छोटी बातों पर तुम्हारा रूठ जाना। |
डा० वर्षा सिंह गणतंत्र दिवस पर एक विशेष रचना लायी हैं …देव भूमि सा है देश गुज़र गया है वक्त जो ज़रा उसे पुकार लो अतीत की हवेलियों को फिर ज़रा बुहार लो |
पूजा जी रंग भर रही हैं अपने सफ़ेद आसमां में जब भी परेशान होती हूँ और कुछ सूझता नहीं... तब आ जाती हूँ इस सफ़ेद दुनिया में और भरने लग जाती हूँ अपना पसंदीदा रंग इसमें... | जेन्नी शबनम बता रही हैं कि क्या औकात है आज भी नारी की ….मर्द ने कहा मर्द ने कहा... ऐ औरत, ख़ामोश होकर मेरी बात सुन जो कहता हूँ वही कर मेरे घर में रहना है तो अपनी औकात में रह मेरे हिसाब से चल वरना... |
मृग – मरिचिका में .. यथार्थ और परिकल्पनाओं के अधर भावनाओं के सागर में उठती लहर सत्य समझ छद्म आभासों को पाने को लालायित हुआ ह्रदय |
कविता रावत जी जीवन के फलसफे को बता रही हैं कि- अभी कितना चलना है .. न बुझते हुए दीपक को देखो कि अभी उसे कितना जलना है न उखडती हुई सांसों को देखो कि अभी उन्हें कितना चलना है | रवि शंकर जी ने दुकान सजाई है शब्दों की …मैं शब्द बेचता हूँ साहब जी हाँ ... मैं शब्द बेचता हूँ साहब... ! चौबीसों घंटे खुली रहती है मेरी दूकान ... जब मन चाहे आइये .. और अपने काम के शब्द ले जाइए.. ! |
जाने कब तक जाने कब की, अपनी-अपनी धूप है सब की, जिस को उठाए फिरते हम-तुम, कहने को सब साथ हैं जबकि |
प्रियंका राठौर अपने ही हाथों अपने सपनों का तर्पण कर रही हैं …टूटते सपनों के साथ टूटते सपनों के साथ रिश्ते की चिता जलाती हूँ , उस सुलगती अग्नि बीच खुद ही झुलसती जाती हूँ ! | वंदना सिंह जी की पढ़िए एक गज़ल यादो के नगर में ये कौन आ गया दिल पर ये कैसा कोहरा छा गया ढूंढते हो जिसे इन मैली घटाओ में उस चाँद को रातो का अँधेरा खा गया |
अपर्णा त्रिपाठी पलाश पर लायी हैं प्रकृति के साथ जोडती विरह वर्णन की रचना ---ओढ़े चूनर नील गगन के तले धरा पर पीली चादर सरसों की ओढे चूनर मानो बिरहन राह निहारे प्रियतम की |
संतोष कुमार की बहुत भावमयी प्रस्तुति है ..बेवफा ज़िंदगी बेवफा जिंदगी ढूंढता दरबदर इस शहर, उस शहर गली-गली, डगर-डगर ठोकरें मिली फकत था आंसुओं का एक नगर | अंजना जी दे रही हैं अपने बेटे को सन्देश --बेटू , चलते रहना होगा तुम्हें चलोगे तो गिरोगे भी, मगर हर चोट का दर्द सहना होगा तुम्हें, हर बार उठना होगा, और चलते रहना होगा तुम्हें, |
इस्मत ज़ैदी जी कह रही हैं --- आज कोई तमहीद नहीं ,बस एक ग़ज़ल मुलाहेज़ा फ़रमाएं----बात अनकही जब कभी डराती है शब की तीरगी मुझ को मां ही इक मिनारा है दे जो रौशनी मुझ को बोलती थीं नज़रें पर लफ़्ज़ बे सदा से थे वक़्त पर ज़बां ने भी चोट आज दी मुझ को |
आशाजी कल्पना के सागर में डूब कह रही हैं कि अपने जीवन की एक शाम मेरे नाम कर दो अपने जीवन की एक शाम मेरे नाम कर दो और कुछ दो या ना दो एक शाम उधार दे दो | धीरेन्द्र सिंह जी शब्दों के चातुर्य से लाये हैं आस की ज्योति नयन नटखट पलक पटापट मन है हतप्रभ स्मित सिमट होंठों पर नव राग सजाए साज-सुर संगत करें नित रंगत समेटे इन्द्रधनुषीय भाल पर रहे बाण चलाए |
डा० कविता किरण बता रही हैं …दिल जलता है दीपक जैसे पहुंचेगा मंजिल तक जैसे दिल जलता है दीपक जैसे मुड-मुड कर वो देख रहा है उसको मुझ पर हो शक जैसे |
क्यूँ दर्द समझ कर भी, नासमझ बना करते हैं| वो पत्थर के रोने को झरना कहा करते हैं | ज्योति डांग अपने अदृश्य ईश्वर के बारे में बता रही हैं ..तुम ईश्वर हो मेरे एक छोटी मुस्कुराहट तुम्हारी बहुत कुछ दे जाती है मुझे सहती आई हूँ नित दुनिया की बातें तेरी हँसी सुकून सा देती है |
आज, फिर मना गणतंत्र दिवस सुबह से ही रेडियो चीख रहे थे मॉल्स में भारी छूट मिल रही थी देशभक्तिं शीतलहर सी फैली हुई थी स्कूलों से लड्डू खाये बच्चे लौट रहे थे |
सत्यम शिवम बड़ी रूमानी सी रचना ले कर आये हैं .. तेरा साथ चाहिए .. बना लूँ खुशियों का घर मै,थोड़ी सी खुशियाँ और पास चाहिए, भूला दूँ हर गम एक पल में,बस दर्दभरी आखिरी रात चाहिए। | उदयवीर सिंह जी अंडमान घूम कर आये हैं ..और वहाँ जो उन्होंने महसूस किया उसे अपनी कविता में उतारा है ..आप भी पढ़ें …अंडमान नमन करता हृदय तुम्हें , मेरे स्वाभिमान ! अंडमान ! विरासत के प्रवक्ता ,प्रलेख, तेरे पन्नों पर किये गये ,हस्ताक्षर महान ! |
कैलाश सी० शर्मा जी की क्षणिकाएं कैसा तीखा वार करा रही हैं ज़रा गौर करें … (१) जन जन को पीस रहा शासन का तंत्र है, शायद यही जनतंत्र है. |
अजय जी रिश्तों की बात कह रहे हैं .. रिश्ते - दिल और दिमाग रिश्ते हमे चाहे जितने दर्द दे| तब भी हम उन्हें दिल से निभाये जाते है ... वो तो हमारे दिल में रहते है जिनसे हम रिश्ते बना लेते है .... | Sagebob … कुछ अलग सा नाम लगा ..इसी लिए मैंने इसे देवनागरी में नहीं लिखा है ….बहुत गहन रचना है ..शब्दों से परे- क्योंकि शब्दों के भी पंख निकल आते हैं शब्द उड़ उड़ के शून्य में बिखर जाते हैं कभी पुण्य की, कभी पाप की परिभाषा में सिमट जाते हैं शब्द |
स्वप्निल कुमार “ आतिश “ की एक गज़ल …ये नयी दौर के उजाले हैं आस्तीनों में पलने वाले हैं ये नए दौर के उजाले हैं आप कहते थे " कौडियाले* हैं" आज ये सब नसीब वाले हैं |
आज चर्चा का समापन मैं अरविन्द मिश्र जी के ब्लॉग पर लगी रचना से करना चाहूंगी … कविवर सोम ठाकुर जी की यह रचना पढवाने हेतु अरविन्द जी का आभार नज़रिए हो गए छोटे हमारे ...बौने बड़े दिखने लगे हैं नजरिये हो गए छोटे हमारे मगर बौने बड़े दिखने लगे हैं जिए हैं जो पसीने के सहारे मुसीबत में पड़े दिखने लगे हैं समय के पृष्ठ पर हमने लिखी थीं ,छबीले मोरपंखों से ऋचाएं सुनी थी इस दिशा से उस दिशा तक अंधेरों ने मशालों की कथाये |
चर्चा समाप्त करते करते कुछ नए लिंक्स मिले जो अच्छे लगे ….उनको भी दे रही हूँ …आशा है पसंद आयेंगे -- अर्चना जी भीष्म से कह रही हैं कि आपने भीषण प्रतिज्ञा न की होती ..काश अशोक व्यास जी की एक खूबसूरत रचना …अमृत की प्यास उजागर कर वीना जी लायी हैं ….नया आयाम---- धरा से जुड़ी हकीकत /होती है /नभ से ऊंची / प्यार की पूजा / होती है / ईमान से ऊंची | अपर्णा भटनागर बता रही हैं कि मैं उन्हें जानती हूँ----मैं उन्हें जानती हूँ / उनकी विधवा देह पर / कई रजनीगंधा सरसराते हैं| महेंद्र वर्मा जी गज़ल में बता रहे हैं जीवन की बात डा० अजीत तोमर जी की रचना बात कर रही है मुसाफिर की राष्ट्रीय बालिका दिवस पर आकांक्षा यादव जी की कविता पढ़िए --मैं अजन्मी मैं अजन्मी / हूँ अंश तुम्हारा / फिर क्यों गैर बनाते हो /है मेरा क्या दोष /जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो |
काफी कुछ लिंक्स समेट कर आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ ….उम्मीद है आपको आपकी पसंद की रचनाएँ ज़रूर मिलेंगी …आपकी प्रतिक्रियाएं हमारा मनोबल बढ़ाती हैं … लिंक्स तक जाने के लिए चित्रों पर भी क्लिक कर सकते हैं ….फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को नयी चर्चा के साथ ..नमस्कार ---- संगीता स्वरुप |
aaj ka charcha munch behad sundar hai aur badhai ke kabil hai
जवाब देंहटाएंaadarniya sangeetaji aapko bhi gantantra ki badhai.very nice post
जवाब देंहटाएंaadarniya sangeetaji aapko bhi gantantra ki badhai.very nice post
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र दिवस के पूर्व की आपकी यह चरेचा बहुत ही महत्वपूर्ण लिंकों से परिपूर्ण है! इसमें आपका श्रम तथा समर्पण स्तुत्य है!
जवाब देंहटाएंखास है गणतंत्र दिवस की चर्चा...... बहुत सारे अच्छे लिनक्स के लिए आभार
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस के लिये मेरी ओर से शुभकामनाएं |मैं आभारी हूँ| आपका स्नेह पूर्ण संदेश पा कर आगई हूँ आज के चर्चा मंच की लिंक्स पढ़ने के लिये उन्हें समेटने के लिये |मुझे शामिल करने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा |एक बार पुनः बधाई और आभार आपकी सफलता के लिये |
आशा
संगीताजी,आप की पोस्ट पताका गणतंत्र दिवस के तिरंगे की मानिंद फहरा रही है. आप की मेहनत और लगन को सलाम. सचमें आप मेरे जैसे असंख्य पाठकों के प्रेरणा स्त्रोत हैं.
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच में इस नाचीज़ को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.
संगीता जी बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुत की गणतंत्र स्पेशल. मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यबाद. सारे लिनक्स बेहतरीन होंगे. अभी सभी पर जाना बाकी है. पुरे दिन का होमवर्क सुबह सुबह ही मिल गया. दिन अच्छा गुजरेगा.
जवाब देंहटाएंआप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ.
रचना
सम्पूर्ण समग्र और संतृप्त कर देने वाली चर्चा !
जवाब देंहटाएंnice charcha ..sabhi ko gantantra divash ki shubhkaamnaayen :)
जवाब देंहटाएंAdarniya shreshth,
जवाब देंहटाएंpranam .
kavya shilp ke shidhahast hanthon ne
fir tamir ki hai ek vibhinn aayamon walli,bahu kakshiya sundar imarat .
shkhad anubhuti.
aabhar. badhayiyan gantantra ki.
सभी लिनक्स एक से बढ़कर एक है .......आभार
जवाब देंहटाएंसंगीता जी आपने बहुत सुन्दर चर्चा दी . हर एक लिंक बहुत अच्छा लगा अभी सब तो नहीं पढ़े लेकिन आज दिन भर के लिए काफी अच्छी खुराक मिल गई . हमारी रचना को लेने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंrespected madam
जवाब देंहटाएंpranam
sorry,by mistake my comment was
published via anonymous poit,itis to
consder by name--udaya veer singh.
once again thanks. truly you have been done a commendable job for literarians
संगीता जी,
जवाब देंहटाएंआपका आभार मेरे ब्लॉग की पोस्ट को यहाँ स्थान देने के लिए.......वाकई आपका ये प्रयास इतने सरे लिनक्स को पढना फिर उनको छांटना ........बहुत मेहनत का काम है......मेरा सलाम है चर्चामंच को और उसके सभी लेखको को......शुभकामनायें|
हमेशा की तरह बेहतरीन ...!
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसुरत मंच सजाया है आपने। एक साथ इतने सारे बेहतरीन लिंक। मजा आ गया। मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिंक्स ले कर आयी हैं,दी। बहुत अच्छी चर्चा। कुछ नये ब्लॉग्स का पता मिला आपके माध्यम से… बहुत अच्छा लगा उन्हे पढना। और इन सब गुणीजनों की चर्चा में मेरा नाम शामिल करने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंचर्चामंच के सभी सदस्यों को भारत के गौरव-गणतंत्र की हार्दिक बधाई।
बहुत-बहुत धन्यवाद इन रचनाओं से मिलवाने के लिए... एवं इस मंच पर स्थान देने के लिए...
जवाब देंहटाएंआप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत सुन्दर चर्चा. इक साथ ही बहुत कुछ सहेज लिया आपने...'शब्द-शिखर' की पोस्ट की चर्चा के लिए आभार. अपना स्नेह बनाये रहें.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा मंच सजाया है काफ़ी बढिया लिंक्स मिले और कुछ नये फ़ोलो भी किये……………बहुत मेहनत की है ……………आपका आभार्।
जवाब देंहटाएंआज एक राज की बात खोल ही दूं। आप इस मंच को इतने कलरफुल ढंग से, मनोयोग से, मेहनत से सजाती हैं, कि कई बार मन मसोस कर ही रह जाना पड़ा कि इस पर भी स्थान मिले। कविताएं मैं विशेष लिखता नहीं, और आपकी साप्ताहिक समीक्षा कविताओं पर होती है।
जवाब देंहटाएंतो विचार पर एक कविता लगाई। पर कई चर्चाकार को मालूम ही नहीं कि मेरा ‘विचार’ भी किसी काम का हो सकता है।
तो मैंने सोचा कि गृहिणी की व्यथा-कथा लिख दूं .... शायद कुछ गृहिणियों की नज़र पड़ जाए। .... और मैं सफल रहा।
कविता अच्छी हो या नहीं , इस मंच की रंगीनियत से सराबोर हो वह भी अच्छी लगने लगी है।
आभार आपका, इतने बेहतरीन मंच को और बेहतरीन बनाने के लिए।
ghar ke net devta ke roothne ke baad aaj bahut dino baad charcha manch aur net jagat par pahunchna ho paya aur vo bhi office ke net maharaz ke zariye.
जवाब देंहटाएंAaj ka charcha manch bahut khoobsoorti se aur mehnat se sajaya hai jo chitthha jagat ki kami ko pura karta hai.
संगीता जी,
जवाब देंहटाएंजिस शिद्दत से इतनी विस्तृत चर्चा की हैं उससे आपकी की हुई मेहनत साफ झलकती है। लिंक्स का खज़ाना मिला, अब कल तक ही पूरा पढ़ पाऊँगा।
चर्चा मंच में स्थान दिये जाने का शुक्रिया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कवितायन
गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर विभिन्न भावमयी रंगों से सजी प्रस्तुति मनोहारी लगी तथा प्रस्तुति का उत्तरार्ध कई भावनापूर्ण झंकार से मोहित कर रही है। यह प्रस्तुति अपने आप में एक रचना है।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच ने हफ़्ते भर की भावनाओं से पूर्ण सामग्री उपलब्ध करा दी धन्यवाद संगीता जी ,
जवाब देंहटाएंइस मंच पर इतने बड़े साहित्यकारों के साथ शामिल करने का भी शुक्रिया
sangeeta ji,
जवाब देंहटाएंmeri rachna ko shaamil karne keliye bahut bahut aabhar. yun hin protsaahit karti rahein ummid rahegi. kuchh charchaayen padhi, sabhi bahut badhiya. shubhkaamnaayen.
बहुत सुन्दर चर्चा..अच्छे लिंक्स के साथ उनके बारे में कुछ पंक्तियाँ पोस्ट को जानने में सहायक होती हैं.
जवाब देंहटाएंआभार सार्थक चर्चा का.
संगीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद चर्चा में शा मिल करने के लिए |आपकी इस प्यार भरी मेहनत की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है |इतने सारे और खूबसूरत से पेश किये गये लिनक्स के लिए आभार |
बेहद ही उम्दा किस्म की चर्चा की हैं आपने..इसमे मेरी भी रचना शामिल करके आपका शुक्र गुज़ार हूँ।
जवाब देंहटाएंआपका ब्लागजगत के समर्पण काबिल-ए-तारीफ हैं सच मे बहुत मेहनत करती है आप और मेरे जैसे अपात्र व्यक्ति को भी अपनी सभा संगत का हिस्सा बनाती रहती है जो सच मे आपका बडप्पन ही है।
सादर आभार
डा.अजीत
bahut achche links mile! dhanyawaad ek bar phir meri rachna ko shaamil karne ke liye. Aapke protsahan ke liye abhari hoon.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी बहुत ही सुंदर चर्चा है ! बहुत अच्छे लिनक्स मिले ! मेरी कविता को चर्चा मंच पर शामिल करने के आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंनमस्कार संगीता जी...बहुत ही सुंदर चर्चा...मेरी रचना"तेरा साथ चाहिए" को सराहने हेतु...धन्यवाद...बस यूही मेरा उत्साह बढ़ाते रहे........आपका आभार।
जवाब देंहटाएंआज का चर्चा मंच तो बहुत अच्छा लगा... बहुत ही अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलीं...
जवाब देंहटाएंआपको बहुत-बहुत बधाई
और मेरी रचना को चर्चा मंच का हिस्सा बनाने पर धन्यवाद
रोचक, सार्थ और उपयोगी चर्चा के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना सम्मिलित करने के लिए आभार।
आभार आपका ....इस रचना को इस योग्य समझनेके लिए....साथ ही बेहतरीन रचनाओं तक पहुचाने के लिए शुक्रिया....
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा चर्चा मंच पर आकर..मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद! सबको सहेजने का आपका प्रयास बधाई योग्य है। बहुत ही प्रभावशाली और सार्थक चर्चा रही आज की ।
आपकी इस प्यार भरी मेहनत की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।
सुन्दर लिंक्स से सजी बहुत ख़ूबसूरत चर्चा. मेरी प्रस्तुति को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद...आभार
जवाब देंहटाएंbahut saarthak posts.. achchhe links ..
जवाब देंहटाएंgantantr divas ke liye aapko dher saari shubhkaamnaen!
संगीता स्वरुप जी, चर्चा-मंच पर अपनी रचना का होना एक हृदयस्पर्शी, अद्भुत अनुभव रहता है...मुझे शामिल करने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंसचमुच, आप बहुत श्रम करती हैं सभी को वैचारिक स्तर पर परस्पर एक-दूसरे से जोड़ने के लिए। इस बार का संयोजन भी बहुत सार्थक एवं महत्वपूर्ण है।
आपको बहुत-बहुत बधाई, आभार एवं गणतन्त्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये .......... चर्चा मंच पर सभी रंग देखकर बहुत आनंद आया .... बहुत विविधता और भावनाओं से ओत प्रोत मंच सजाया आपने .... मेरी कविता को भी स्थान दिया आपने ... बहुत बहुत शुक्रिया .... आप यूं ही प्रोत्सान देती रहे .... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअरे वाह ! संगीता जी .. चर्चामंच तो बहुत सुन्दर लिंक्स से सजा है...
जवाब देंहटाएंआज भी यह चर्चा पढ़ रहा हूँ ! बहुत उपयोगी लिंक दिए हैं आपने !
जवाब देंहटाएंbahut sunder charcha
जवाब देंहटाएंmeri kavita ko sthan dene ko bahut aabhar
yuhi margdarsan karte rahe
...
aapka aabhar
संगीता जी! मेरी कविता को चर्चामंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार. व्यस्तता के चलते में समय पर उपस्थित नहीं हो पायी, क्षमा कीजियेगा... आपकी चर्चामंच की प्रस्तुति लाजवाब रहती है, देखकर मन रोमांचित हो उठता है... आप अपना बहुमूल्य समय चर्चामंच को सजाने, सवारने और हम जैसों को प्रोत्साहित करने के लिए करती है इसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ... सबसे बड़ी बात आप जैसे सभी वरिष्ट और गुणीजनों के प्रोत्साहन से ही मैं निरंतर ब्लॉग पढने और जुड़े रहने के लिए थोडा बहुत समय निकाल पा रही हूँ ....पुन: आपका आभार
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