मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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क्या सच में जिए ?
जीने की चाहत में मरना जरूरी था
फिर भी ज़िन्दगी से मिलन अधूरा था
सच ही तो है जी लिए इक ज़िन्दगी
फिर भी इक खलिश
जब उधेड़ती है मन के धागे...
vandana gupta
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नई ख़ल्क़ के लिए ...
हर शख़्स उमीदों का धुवां देख रहा है
तू शाहे-बेईमान ! कहाँ देख रहा है ?
बुलबुल भी जानता है क़ह्र टूटने को है
सय्याद अभी तीरो-कमां देख रहा है ...
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नवगीत (जैसा )
कुछ पल के मुसाफिर हो
यादों की लकीरें न खीचों
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कुछ पल के मुसाफिर हो
यादों की लकीरें न खीचों
ये तिनकों के घरोंदे हैं
वादों की दीवारें न खींचों
कुछ पल के मुसाफिर हो
यादों की लकीरें न खीचों...
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अभी तो और भी रातें सफर में आएंगी ,
चराग़े शब मेरे मेहबूब संभाल के रख
'करे जुम्मा पिटे मुल्ला '
और गधे से पार न पाई ,
'गधैया के जा कान उमेठे ',
दोनों मुहावरे आज पूरी तरह
समझ में आ गए...
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लिए हाथों में हाथ चल रहें साथ साथ
आज है कुछ ख़ास पाया मैने
सुखद एहसास सुबह सुबह
मुस्कुरा रहा खिड़की से
अरुण बिखेर रहा स्वर्णिम रश्मिया
दे रहा बधाई हमे...
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आत्मकथा नहीं परमात्मकथा
जिसे हम आत्मकथा कहते हैं
दरअसल वह परमात्मकथा है।
दोनों के अंत में मा आता है यानी मां।
अपने कंट्रोल में कुछ नहीं है, कुछ भी तो नहीं है।
सब कुछ या तो मां के गर्भ में है
अथवा परमात्मा के कंट्रोल में...
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चुनना
तुमने चुनी अपनी सुविधा
अपनी पसंद को जिया
किसी और के मुताबिक़ चलना
किसी के जज़्बातों की कद्र करना
कभी ये सीखा ही कहाँ
तुम तो फिर तुम हो न आखिर...
ज़िन्दगीनामा पर Nidhi Tandon
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पत्थर के सनम...
बॉलीवुड के फिल्मी गीतों ने भी आम आदमी के शब्दज्ञान को बढ़ाया है। ‘सनम’ भी ऐसा ही एक शब्द है जिसका साबका आम आदमी से किसी न किसी फिल्मी गीत के ज़रिये ही हुआ है जिनमें आमतौर पर इसका अर्थ प्यारा, प्रिय, प्रियतम के अर्थ में ही प्रयोग होता आया है मसलन “ओ मेरे सनम, ओ मेरे सनम” या “आजा सनम मधुर चान्दनी में हम”। मगर सनम का इसका मूल अर्थ है बुत या प्रतिमा। हालाँकि “पत्थर के सनम...तुझे हमने मुहब्बत का खुदा माना...” जैसे गीतों में बुत के अर्थ में भी इसका प्रयोग देखने को मिलता है। सनम फ़ारसी के रास्ते हिन्दी में आया मगर है अरबी ज़बान का। सेमिटिक मूल का ‘सनम’ صنم बनता है साद-नून-मीम ص ن م से...
शब्दों का सफर पर अजित वडनेरकर
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बालकविता
"बछड़ा और गइया"
सड़क किनारे जो भी पाया,
पेट उसी से यह भरती है।
मोहनभोग समझकर,
भूखी गइया कचरा चरती है।।
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