जय माँ हाटेश्वरी...
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आँखों में कुर्सी हाथों में परचम है
मर्यादा आ गयी चिता के कंडों पर
कूंचे-कूंचे राम टंगे हैं झंडों पर
संत हुए नीलाम चुनावी हट्टी में
पीर-फ़कीर जले मजहब की भट्टी में
कोई भेद नहीं साधू-पाखण्डी में
नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में
अब निर्वाचन निर्भर है हथकंडों पर
है फतवों का भर इमामों-पंडों पर
जो सबको भा जाये अबीर नहीं मिलता
ऐसा कोई संत कबीर नहीं मिलता
जिनके माथे पर मजहब का लेखा है
हमने उनको शहर जलाते देखा है
जब पूजा के घर में दंगा होता है
गीत-गजल छंदों का मौसम रोता है
मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोते हैं
ग़ालिब, तुलसी, जिगर, कबीरा रोते हैं
भारत माँ के दिल में छाले पड़ते हैं
लिखते-लिखते कागज काले पड़ते हैं
राम नहीं है नारा, बस विश्वाश है
भौतिकता की नहीं, दिलों की प्यास है
राम नहीं मोहताज किसी के झंडों का
सन्यासी, साधू, संतों या पंडों का
राम नहीं मिलते ईंटों में गारा में
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में
राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को
राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को
राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में
राम मिले हैं पंचवटी की छाँव में
राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में
राम मिलेंगे बजरंगी के सीने में
राम मिले हैं वचनबद्ध वनवासों में
राम मिले हैं केवट के विश्वासों में
राम मिले अनुसुइया की मानवता को
राम मिले सीता जैसी पावनता को
राम मिले ममता की माँ कौशल्या को
राम मिले हैं पत्थर बनी आहिल्या को
राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में
राम मिले शबरी के झूठे बेरों में
मै भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ
मै भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ
मेरी भारत माँ मुझको वरदान है
मेरी पूजा है मेरा अरमान है
मेरा पूरा भारत धर्म-स्थान है
मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है
अब पेश है... मेरे द्वारा प्रस्तुत चर्चा...
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पररूपचन्द्र शास्त्री मयंक
कविता रचने के लिए, रखना होगा ध्यान।
उपमाओं के साथ में, अच्छे हों उपमान।।
जिसमें होती गेयता, वो कहलाता गीत।
शब्दों के ही साथ है, साज और संगीत।
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परpramod joshi
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पर Dr. Zakir Ali Rajnish Dr. Zakir Ali Rajnish
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परJyoti Dehliwal
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Rekha Joshi
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परVirendra Kumar Sharma
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परOnkar
आसमान से तुम सीधे
ज़मीन पर नहीं
पत्ते पर गिरी,
यह तुम्हारी नियति थी,
पर तुम्हें हमेशा
पत्ते पर नहीं रहना है.
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परAbhimanyu Bhardwaj
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माही.... पर Mahesh Barmate
हर सजा के बाद
गुनाह खुद मुझसे पूछता
क्यों तूने मुझे किया
और फिर मुझसे रूठता।
न जवाब था
न शर्मिंदगी
जाने किस मोड़ पे आयी
आज ये ज़िन्दगी।
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परGhotoo
पर जब से है 'मेरेज' हुई, इस तरह जिंदगी कैद हुई ,
सब दीवानापन फुर्र हुआ ,अपनी वो गुटरगूं बंद हुई
दिन भर मैं पिसता दफ्तर में,तुम दिन भर मौज करो घर में ,
मैं थका पस्त ,और अस्तव्यस्त ,अब जीवन की गति मंद हुई
मैं ऐसा फंसा गृहस्थी में ,सब आग लग गयी मस्ती में,
स्वच्छंद जिंदगी होती थी ,वो आज बड़ी पाबन्द हुई
ये तबला अब बेताल हुआ , मेरा ऐसा कुछ हाल हुआ ,
मैं मंहगाई में पिचक गया ,तुम फैली सेहतमंद हुई
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साझा आसमान पर Suresh Swapnil
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नास्तिक पर Sanjay Grover
जो होता आया है वही हो रहा है।आज भी कई लोग कह रहे हैं कि धर्म तो महान है, ग्रंथ तो ग़ज़ब के हैं मगर लोगों ने उन्हें ठीक से समझा नहीं है इसलिए वे हत्याएं कर
रहे हैं।कितना अजीब है कि अभी भी हमें चिंता लोगों, बच्चों या इंसानियत को बचाने की नहीं, धर्म और ग्रंथ को बचाने की लगी है
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krishnakant
लोकतंत्र में राजनीति को कुछ परिवारों की पुश्तैनी धरोहर नहीं होना चाहिए. लेकिन इससे मुक्त होने की शुरुआत कौन करेगा? यूपी में मुलायम के परिवार 18 सदस्य हैं
जो सांसद, मंत्री, विधायक अथवा अन्य पदों पर काबिज हैं. लालू इससे अलग नहीं हैं. अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाकर और अब अपने बेटो—बेटियों को लाकर उन्होंने
भी यह साबित किया. दिलचस्प है कि लालू—मुलायम आपस में समधी भी हैं.
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चैतन्यपूजा पर Mohini Puranik
बिहार के चुनावो में भारत के बहुप्रचारित क्रांतिकारी भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के नेता अरविन्द केजरीवाल लालूप्रसाद यादव के साथ हो गए। मैंने आरम्भ से ही
जब इस आन्दोलन पर प्रश्न उठाए थे, तब मेरी बहुत आलोचना हुई थी। मैंने अपने विचार तब रखे थे। मुझे ये भावनात्मक उन्माद आज भी समझ में नहीं आता। सबको अपना मत
रखने का अधिकार है, भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन पर जो भी अपनी अलग राय रखे उसे फेसबुक पर देशद्रोही कहा जाता था। आलोचना से बुरा नहीं लगता, उससे तो अधिक गहराई
से लिखने और सुधारने के लिए प्रेरणा मिलती है। लेकिन उस आन्दोलन पर अपना मत रखने के कारण दोस्ती में दरार वैचारिक अपरिपक्वता थी। उस आन्दोलन को बादमें राजनीती
में लाया गया और फिर कौन साथ रहा और कौन नहीं यह तो सब जानते ही हैं। उस भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के बाद से अब तक वास्तव में कितना भ्रष्टाचार समाप्त हो गया
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आज की हलचल बस यहीं तक...
धन्यवाद।
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