जय माँ हाटेश्वरी...
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मेरे भारत की विशेषता
यही पाठ पढ़ा-
और यही पढ़ाया
किन्तु प्रत्यक्ष में
एकता का
कहीं दर्शन ना पाया
कभी धर्म के नाम पर
खुले आम घर जले
मन्दिर मस्ज़िद टूटे
लाखों बर्बाद हो गए,
फिर भी हमने…….
धर्म निरपेक्षिता की
डींगे हाँकी….
प्रान्तीयता के आधार पर
देश के सर्वोच्च पद का निर्धारण
राष्ट्रीयता के हृदय पर
एक बड़ा आघात
और सारा देश चुप…..
पद का सही उम्मीदवार
अपमान सह गया
और राष्ट्र मूक रह गया
और आज फिर..
एक ओर……..
प्रान्तीयता की आवाज़
कानों में शीशा डाल रही है
देश के हर नागरिक को
किंकर्तव्य विमूढ़ बना रही है
आशा की किरणें बहुत
क्षीण होती जा रही हैं
और हम गर्व से
राष्ट्रीयता का…..
राग आलाप रहे हैं
डींगें हाँक रहे हैं
दूसरी ओर……
आरक्षण का राक्षस
अपनी बाँहें फैला रहा है
और सारा देश विवशता से
कैद में कसमसा रहा है
यह आरक्षण की माँग है या
सुरसा का मुँह....
जो निरन्तर....
बढ़ता ही जा रहा है
कोई भी आश्वासन
काम नहीं आ रहा है।
भारत माता शर्मिन्दा है
अपनी सन्तान के
कुकृत्यों पर
उसका अंग-अंग
पीड़ा से कराह रहा है
ना जाने कौन ये
जहर फैला रहा है
कोई भी उपाय
काम नहीं आ रहा है
मेरे देश की आशाओं
देश को यूँ ना जलाओ
माँ के घावों पर
थोड़ा सा मरहम भी लगाओ
हम सब एक हैं
ये प्रतिज्ञा दोहराओ
दे दो विश्वास
जो खोता जा रहा है
देश के हर कोने से
यही आग्रह
यही स्वर आ रहा है
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दर्प नहीं करना कभी, बन करके धनवान।
निर्धन-श्रमिक-किसान हैं, धरती के भगवान।।
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काँटों रखते चमन में, अपने सदा उसूल।
जो सुमनों को मसलते, उनको चुभते शूल।।
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yashoda Agrawal
बस अपने ही पीछे छूट चले हैं
छूट चले हैं या छोड़ चले हैं
आहिस्ता-आहिस्ता
उम्र के मोड़ पर
अब साथ है तो सिर्फ
रिश्तों से बंधे कुछ नाम
और दीवारों में टंगी कुछ तस्वीरें
शायद कल
इन तस्वीरों में शामिल हो जाऊँ
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रेखा जोशी
ख़्वाब जो हम को दिखाये ज़िंदगी ने
तोड़ कर फिर तुम उसे वापिस न जाना
…
ज़ख्म हमको इस ज़माने ने दिये अब
ज़िंदगी मेरी गई बन इक फ़साना
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Virendra Kumar Sharma
जामवंत सोच रहा है -ये ही तो स्वयं परशुराम थे । बावन अवतार के बावन थे। मैं मूरख इनसे लड़ था। गिर पड़ा जामवंत भगवान के चरणों में -आँखों में आंसू आ गए -मैं
अपने भगवान से ही लड़ रहा था। जामवंत ने प्रायश्चित किया। भगवान से उसने माफ़ी मांगी। और मणि ही नहीं भगवान को अपनी कन्या जामवंती भी दे दी। वानर रूप था जामवंती
का पर भगवान ने फैला दिया बहुत सुन्दर है। रुक्मणी जी को भी ईर्ष्या हो गई। पर वह तो वैसी नहीं थी। जबकि द्वारिका की सभी रानियां बड़ी सुन्दर थीं। वह बेचारी
इसीलिए अपना मुख नहीं दिखा रही थी। घूंघट काढ़े हुए थी। रुक्मणी के जामवंती ने पैर छूए।रुक्मणी पटरानी थीं।आशीर्वाद देते हुए कहा-जा तू मेरी जैसी हो जा।
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Suresh Swapnil
क़र्ज़ क्यूं लीजिए ज़माने से
माद्दा जब नहीं चुकाने का
कोई अफ़सोस नहीं शाहों को
मुल्क की आबरू लुटाने का
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प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA
जब कभी आप किसी टूरिस्ट प्लेस पर जाएं, तो वहां की खासियतों से जुड़ी चीजों को अपने साथ ला सकते हैं। ऐसी वस्तुओं को आप अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच
बांट कर उनकी प्रशंसा पा सकते हैं। ऐसी नायाब और खास वस्तुओं के संग्रह से आप अपने घर को भी खास बना सकते हैं।
करेंसी विदेश की यात्रा के दौरान सफर की शुरुआत में ही आपको अपनी करेंसी को उस देश की करेंसी के साथ बदलना होता है। यदि इनमें से आप कुछ सिक्के ले लें तो बेहतर रहेगा।
ये सिक्के बेहतरीन सूवनिर का काम करते हैं। हां, एक बात का ध्यान अवश्य रखें कि सिक्के इतनी ज्यादा संख्या में हों कि न केवल आप उन्हें अपने लिए रख सकें, बल्कि
उन्हें आप अपने बच्चों व सगे- संबंधियों को भी भेंट दे सकें। सिक्कों के अतिरिक्त पेपर करेंसी भी आपके लिए एक अच्छा सूवनिर साबित होगा। आपके कई मित्र व सगे-संबंधी
ऐसे होंगे जो क्वॉइन कलेक्शन और पेपर करेंंसी यानी नोटों के शौकीन भी होंगे, उनके लिए तो यह किसी नियामत से कम नहीं होगा।
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रौशन जसवाल विक्षिप्त
इसी अस्पताल के
किसी वार्ड के बिस्तर पर
तड़फती रहती है
जिजीविषा
दवाइयों
और सिरंज में
ढूंढती रहती है जीवन
समीप के बिस्तर से
गुम होती साँसों को देख
सोचती है
जिजिबिषा
कल का सूरज
कैसा होगा .......
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प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA
तब हिमालय से सिंधु, सरस्वती नदी और ब्रह्मपुत्र निकलती थी जिसकी कई सहायक नदियां होती थीं, जो संपूर्ण अखंड भारत को उर्वर प्रदेश बनाती थीं। यमुना उस काल
में सरस्वती की सहायक नदी थी। गंगा का अवतरण भागिरथ के काल में हुआ। मानव प्रारंभ में इन नदियों के आसपास ही रहा, फिर उसके कुछ समूह ने पश्चिम एशिया की ओर कदम
बढ़ाकर अरब, मिश्र, इराक और इसराइल में अपना नया ठिकाना बनाया।
कैस्पियन सागर से लेकर ब्रह्मपुत्र के समुद्र में मिलने तक के स्थान पर वैवस्वत मनु की संतानें फैल चुकी थीं और कुछ खास जगहों पर उन्होंने नगर बसाए थे। जलप्रलय
से जैसे-जैसे धरती प्रकट होती गई, वैसे-वैसे इस क्षेत्र के मानव ने फिर से आबादी को बढ़ाया। यह शोध का विषय है कि जलप्रलय से अफ्रीकी और यूरोपीय लोग प्रभावित
हुए थे ये नहीं। हालांकि जल के कैलाश पर्वत तक चढ़ जाने का मतलब तो यही है कि संपूर्ण धरती ही जलमग्न हो गई होगी।
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शिवम् मिश्रा
सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा
कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा
था "बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही
मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के ह्मदय के
सरदार थे।
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pramod joshi
राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा-विरोध की धुरी बनेंगे, राहुल-सोनिया नहीं। इसमें अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी भी शामिल होना चाहेंगे। यह एकता कब तक कायम रहेगी यह
दीगर सवाल है। पर कांग्रेस का ह्रास जारी रहेगा और शायद अब उसे क्षेत्रीय पार्टियों के नेतृत्व में जाना पड़ेगा जैसाकि बिहार में हुआ।
बिहार के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस के लिए जो भयावह स्थिति बनने वाली है उसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता देख पा रहे हैं। माखन लाल फोतेदार ने राहुल की कमजोरियों
का जिक्र करके उसकी शुरूआत कर दी है। वस्तुतः कांग्रेस के पराभव का प्रस्थान बिन्दु सन 2009 के लोकसभा चुनाव में मिली सफलता थी। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने उसे
मनमोहन सिंह सरकार की जीत मानने के बजाय उसे राहुल गांधी के युवा नेतृत्व की जीत मान लिया। उसके बाद पार्टी ने जो भी किया वह गलत साबित होता गया। कोई जीते,
कोई हारे बिहार में कांग्रेस को कुछ नहीं मिलने वाला।
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Jyoti Dehliwal
बाद में मम्मी ने मुझे पास में लेकर समझाया कि "भजिए बनाने के लिए कढई में पानी नहीं, तेल डाला जाता है! और सिर्फ देखने भर से कोई भी चीज बनानी नही आ सकती।
कोई भी चीज बनाने के लिए हमें क्या-क्या सामग्री चाहिए, बनाने की विधि क्या है? ये सब पता होना चाहिए। सबसे ज़रुरी बात, जब तक हम स्वयं कोई चीज बना कर नहीं
देख लेते, तब तक मुझे वह चीज बनाना आती है ऐसा नहीं कहना चाहिए!!!"
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Asha Saxena
जो कभी दो जिस्म एक जान हुआ करते थे
जिक्र हर बात का आपस में किया करते थे
पर आशियाँ उजड़ते ही ,एक बड़ा बदलाव आया
फिर से राहें अलग हुईं ,वे मुंह फेर लिया करते थे |
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मैं नहीं करूंगा प्रेम वैसे
जैसे कोई बच्चा जाता है स्कूल
पहली बार किताब और पाटी लेकर
और इंतजार करता है कि
उसका नाम पुकारा जायेगा
और नया सबक सीखने को उत्सुक
वह दुहरायेगा पुरानी बारहखड़ी...
प्रेम के बारे में
नितांत व्यक्तिगत इच्छाओं की एक कविता
- राकेश रोहित
जैसे कोई बच्चा जाता है स्कूल
पहली बार किताब और पाटी लेकर
और इंतजार करता है कि
उसका नाम पुकारा जायेगा
और नया सबक सीखने को उत्सुक
वह दुहरायेगा पुरानी बारहखड़ी...
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धन्यवाद...
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