मित्रों।
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दास्तां सुनाता है मुझे
जब कभी सपनों में वो बुलाता है मुझे
बीते लम्हों की दास्तां सुनाता है मुझे
इंसानी जूनून का एक पैगाम लिए
बंद दरवाजों के पार दिखाता है...
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जल शुद्धि
पापों की अति हो गई
बाल बाल डूबे उनमें
फिर धोए पाप नदिया में
पाप तो कम न हुए
गंगा मैली कर आये...
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कलम को बात कहने दो
खुशी गम से निबटने की जगाती भावना कविता
तजुर्बे से गुजरते शब्द की नित साधना कविता...
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आत्मिक प्रेम
और कल जब तुमने कहा,
तुम बात करती हो,
जब तुम लड़ती हो,
जब तुम फ़ोन मिलाकर कहती हो,
आना मत …
पता नहीं,
मुझे सुकून सा लगता है …
Nivedita Dinkar
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“लाल टोपी फैंक दी बंदरों ने ...!!”
...रक्त जो ज़ेहन तक जाता है
जेहन जो उसे साफ़ करता है
जो मान्यताएं बदलता है...
ज़ेहन जो संवादी है ... उसे साफ़ रखो
जोड़ लो पुर्जा पुर्ज़ा
जिनको ज़रुरत है जोड़ने की ...!!
मिसफिट Misfit पर Girish Billore
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जब मिलती हैं आहट
किसी के आने की
खुशिया बिखर जाती हैं
गुलाबी गालो पर
जब मिलती हैं आहट
किसी के आने की...
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सीरिया संकट का वैश्वीकरण
सीरिया के गृह युद्ध ने विश्व को ऐसे रणक्षेत्र में लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ युद्ध के दर्शक भी वहां के सैनिकों एवं नागरिकों से कम असुरक्षित नहीं हैं भले ही युद्ध का प्रसारण उन तक दूरदर्शन के माध्यम से पहुँच रहा हो। इस युद्ध का रक्तपात ही एक मात्र लक्ष्य है और इस हिंसक एवं बर्बर युद्ध के अंत का कोई मार्ग निकट भविष्य में भी नहीं दिख रहा है। इस युद्ध के कारणों पर गौर करें तो प्रतीत होता है कि यह केवल सीरिया का गृह युद्ध नहीं है अपितु यह युद्ध दो परस्पर विरोधी वैश्विक गुटों का है...
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व्यंग: दाल के भाव!!
"दाल रोटी चल जाती है, कभी कभी पनीर और राजभोग भी नसीब हो जाता है:)" ये जवाब आज से महीने भर पहले तक चलता रहा है। पर 2-3 रोज पहले जब एक सज्जन ने जानना चाहा तो मैंने कुछ इस तरह जवाब दिया "भाईसाहब पनीर अक्सर खा लेता हूँ और कभी कभी दाल ...
Vikram Pratap singh
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स्वस्थ और दीर्घायु होने का मन्त्र :
आओ बताऊँ, तुम्हें अस्सी का फंडा,
ये तो है प्यारे , फोकट का ही फंडा !
हो ना कभी काया, अस्सी किलो से भारी,
रहे नीचे कमर भी , अस्सी से.मी. से तुम्हारी...
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ये फ़लक भी मन जैसा है... !!
कितने रंग बदलता है...
एक पल उजास तो ठीक अगले क्षण कोहरा
फिर, ये गति कितनी ही बार
दिन में, लेती है खुद को दोहरा
ठहरता नहीं कुछ :
न लालिमा... न ही कोहरा...
डोर समय के हाथों है...
हम तो मात्र हैं मोहरा...
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शर्मा जी अभी-अभी रेलवे स्टेशन पर पहुँचे ही थे। शर्मा जी पेशे से मुंबई मे रेलवे मे ही स्टेशन मास्टर थे। गर्मी
की छुट्टी चल रही थी इसलिए वह शिमला घूमने जा रहे थे, उनके साथ उनकी धर्मपत्नी मंजू और बेटी प्रतीक्षा भी
थी। ट्रेन के आने मे अभी समय था।तभी सामने एक महिला अपने पाँच साल के बच्चे के साथ आई, शायद वे भी
शिमला जा रहे थे। उस महिला के साथ जो बच्चा था वो थोड़ा बातूनी और चंचल था। उसकी चंचलता को देख
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विडंबना
जिन राहों की कोई मंजिल नहीं होती
वहां पदचिन्ह खोजने से क्या फायदा
ये जानते हुए भी आस की बुलबुल
अक्सर उन्ही डालों पर फुदकती है ...
vandana gupta
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क्षणिकाएं
उबलते रहे अश्क़ दर्द की कढ़ाई में,
सुलगते रहे स्वप्न भीगी लकड़ियों से,
धुआं धुआं होती ज़िंदगी
तलाश में एक सुबह की छुपाने को
अपना अस्तित्व भोर के कुहासे में...
Kailash Sharma
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मिली सज़ा मुझे धर्म की~!!!
बंधी तेरे संग सजन इक डोर है अंजान सी
न टूटे न छूटे ये तो बंधन मज़बूत इस प्यार की
तिरस्कार की अग्नि में जली हूँ मैं कई बार...
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ज़िंदगी
आज इस 'ब्लॉग' के दो वर्ष पूरे हो गए। इन दो वर्षों में आप लोगों का जो स्नेह और सहयोग मिला, उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार। यूँही आप सभी का स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहे यही चाह है।
इस मौक़े पर एक कविता आप सब के लिए। सादर,...
पहली बारिश में
चट्टानों के नीचे
दबी हुई बीजों से
फूटते हैं अंकुर
ज़र्ज़र इमारतों की
भग्न दीवारों के
बीच उग आते हैं
पीपल और बरगद...
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