जय माँ हाटेश्वरी...
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"तुने कहा,सुना हमने अब मन टटोलकर सुन ले तु, सुन ओ आमीर खान,अब कान खोलकर सुन ले तु,"
तुमको शायद इस हरकत पे शरम नही आने की, तुमने हीम्मत कैसे की जोखीम मॅ हमॅ बताने की..
शस्य श्यामला इस धरती के जैसा जग मॅ और नही, भारत माता की गोदी से प्यारा कोई ठौर नही
घर से बाहर जरा नीकल के अकल खुजाकर पुछो, हम कीतने है यहॉ सुरक्षीत, हम से आकर पुछो
पुछो हमसे गैर मुल्क मॅ मुस्लीम कैसे जीते है, पाक, सीरीया, फीलस्तीन मॅ खुन् के आन्सु पीते है
लेबनान, टर्की,इराक मॅ भीषण हाहाकार हुए, अल बगदादी के हाथॉ मस्जीद मॅ नर सन्हार हुए
इजरायल की गली गली मॅ मुस्लीम मारा जाता है, अफगानी सडकॉ पर जीन्दा शीश उतारा जाता है
यही सीर्फ वह देश जहॉ सीर गौरव से तन जाता है, यही मुल्क है जहॉ मुसलमान राष्ट्रपती बन जाता है
इसकी आजादी की खातीर हम भी सबकुछ भुले थे, हम ही अशफाकुल्ला बन फान्सी के फन्दे झुले थे
हमने ही अन्ग्रेजॉ की लाशॉ से धरा पटा दी थी, खान अजीमुल्ला बन लन्दन को धुल चटा दी थी
ब्रीगेडीयर उस्मान अली इक शोला थे,अन्गारे थे, उस सीर्फ अकेले ने सौ पाकीस्तानी मारे थे
हवलदार अब्दुल हमीद बेखौफ रहे आघातॉ से, जान गई पर नही छुटने दीया तीरन्गा हाथॉ से
करगील मॅ भी हमने बनकर हनीफ हुन्कारा था, वहॉ मुसर्रफ के चुहॉ को खॅच खॅच के मारा था
मीटे मगर मरते दम तक हम मॅ जीन्दा ईमान रहा, होठॉ पे कलमा रसुल का दील मॅ हीन्दुस्तान रहा
इसीलीए कहता हुन् तुझसे,युन् भडकाना बन्द करो, जाकर अपनी फील्मॅ कर लो हमॅ लडाना बन्द करो
बन्द करो नफरत की स्याही से लीक्खी पर्चेबाजी, बन्द करो इस हन्गामॅ को, बन्द करो ये लफ्फाजी
यहॉ सभी को राष्ट्र वाद के धारे मॅ बहना होगा, भारत मॅ भारत माता का बनकर ही रहना होगा
भारत माता की बोली भाषा से जीनको प्यार नही, उनको भारत मॅ रहने का कोई भी अधीकार नही"
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"कवि अब्दुल गफ्फार(जयपुर) की ताजा रचना" के बाद पेश है...मेरे द्वारा प्रस्तुत आज की चर्चा इन लिंको के साथ...
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
खिचड़ी अब कैसे पके, मँहगी काली दाल।
अरहर-मूँग-मसूर का, रूप हुआ विकराल।।
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मँहगाई तो देश में, मचा रही कुहराम।
गाजर-आलू-मटर के, बढ़े हुए हैं दाम।।
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राजेंद्र कुमार
सत्ता बेलगाम है जनता गूँगी बहरी लगती है |
कोई उज़्र न करने वाला कोई नहीं सवाली है ||
सच को यूँ मजबूर किया है देखो झूठ बयानी पर |
माला फूल गले में लटके पीछे सटी दोनाली है ||
दौलत शोहरत बँगला गाड़ी के पीछे सब भाग रहे हैं |
फसल जिस्म की हरी भरी है ज़हनी रक़बा खाली है ||
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डॉ० कौशलेन्द्र
असहिष्णुता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, राष्ट्रद्रोह, धर्मनिरपेक्षता और प्रतिक्रिया जैसे शब्द जितने गम्भीर हैं उतना ही सतही उनका राजनैतिक व्यवहार हो गया
है। यह अपने आप में एक गम्भीर चिंता का विषय है। इन विषयों पर अपने विचार रखते समय हम हिंदू या मुसलमान होने और न होने की दृष्टि से चिंतन करते हैं और यही सबसे
त्रुटिपूर्ण बात है। कोई हिन्दू बात करता है तो वह असहिष्णु और सम्प्रदायवादी मान लिया जाता है। कोई मुसलमान बात करे तो वह राष्ट्रद्रोही मान लिया जाता है।
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अरुण कुमार निगम
बढते कदम हों तो उत्कर्ष जीवन
भटके कदम तब तो अपकर्ष जीवन
मिल जाए जो ध्येय तो हर्ष जीवन
विपदाएं हों तो है संघर्ष जीवन
ये धरती गीतों की धरती है टिकरी कहे म ऐसे लगथे कि सचमुच म इहाँ कवि कोदूराम दलित जी जन्मे रहिस के नहीं, हमू ला बाद में पता चलिस कि इहाँ के धरती म गीत बसे
हे कविता बसे हे.तभे त खींचथे मन ला, गागड़ा भाई इसने थोड़े न आ जाही....
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कलम से..
" क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा। "
वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येकपिता के लिए उम्मीद (आशा)। "
दोस्तो आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसँद नही करते और कहते है क्या करोगो आप से चला तो जाता नही ठीक से खाया भी नही जाता
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प्रमोद जोशी
नेहरू की विरासत को लेकर बहस फिर से चल निकली है। हाल में नेहरू मेमोरियल को लेकर विवादास्पद बातें हुईं। दूसरी ओर सरकार आम्बेडकर और पटेल की छवि को स्थापित
करने की कोशिश कर रही है। इसे सहज रूप से लिया जाना चाहिए। कांग्रेस ने भी तो नेहरू को स्थापित किया था। राष्ट्रीय महापुरुषों और नायकों के नाम राजनीति के साथ
बदलते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार बनने के बाद अनेक संस्थाओं के नाम दलित महापुरुषों पर रखे गए। इसमें गलत क्या हुआ? यह भी समय की माँग थी। पर यह
राजनीति किसी नाम को मिटाने की नहीं होनी चाहिए।
दो दिन की चर्चा में धर्म निरपेक्षता, मौलिक अधिकार, संघवाद और संवैधानिकता से जुड़े अनेक प्रश्न उठे जिनपर देशभर में मीडिया के मार्फत चर्चा होनी चाहिए। इस
सत्र का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था प्रधानमंत्री का वक्तव्य जिसमें उन्होंने समावेशी, समन्वयकारी, न्याय की राह पर चलने की बात कही है। देश को इसकी सख्त जरूरत
है।
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शिखा कौशिक 'नूतन '
इस तथ्य से तो सब परिचित हैं ही कि फिल्मों में सफल होने के लिए कई अभिनेताओं-अभिनेत्रियों ने हिन्दू नामों का सहरा लिया जैसे दिलीप कुमार [युसूफ ] अजीत ,
मधुबाला ,मीना कुमारी आदि पर वहां कारण अलग था .मुस्लिम समाज में फिल्मों को देखने पर कड़ी पाबन्दी थी इसलिए फिल्मों के दर्शक हिन्दू ही ज्यादा थे पर आज मुस्लिम
समाज में हिन्दू नाम रखने की बढती प्रवर्ति उनमे असुरक्षा के भाव को दर्शाता है .क्यों भयभीत हैं हिंदुस्तान के मुस्लिम ? मैं एक हिन्दू के तौर पर कह सकती
हूँ कि हमारे मन में मुस्लिम समाज को लेकर कोई पूर्वाग्रह नहीं .हिन्दू-मुस्लिम मिलकर ही हमारा भारतीय समाज पूरा होता है .हिंदुस्तान हिन्दुओं के साथ साथ मुस्लिमों
का भी है .देश की रक्षा व् विकास में दोनों सामान रूप से भागीदार हैं फिर किस बात का डर है हमारे मुस्लिम समाज को ?
जहाँ तक मैं मानती हूँ ये भय -ये डर पडोसी देश में बैठे कट्टरपंथी बाशिंदे हमारे मुस्लिम भाइयों के दिल में पैदा कर रहे हैं .वे न तो पाकिस्तान में हिन्दुओं
को सुकून से रहना देना चाहते हैं और न हिंदुस्तान में मुसलमानों को .हमारे भारतीय मुस्लिम भाइयों को चाहिए कि वे इनके बहकावे में न आये .हिंदुस्तान मुस्लिमों
के लिए सबसे सुरक्षित मुल्क है और रहेगा क्योंकि यहाँ हम न हिन्दू हैं ...न मुस्लिम हैं ...हम केवल भारतीय हैं .
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Vandana Singh
किसी परीक्षा से गुजरने की
और उनसे हार जाने की तो
बिलकुल भी नही !
मैंने आसान समझा था
हर रस्म हर रिवाजों से
बगावत कर .. मीरा हो जाना
मगर मेरे पास नही था वो यकीन
जो जहर के प्यालों को
अमरित करता
हर विकल्प को हारकर
मैं बची हूँ वही आम लड़की
जिसके हिस्से में दोराहे नही होते
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Jyoti Dehliwal
जब हम किसी व्यक्ति को क्षमा करते है, तो मन को उसके लिए निरंतर चलने वाली नकारात्मक भावनाओं के बोझ से मुक्त करते है। फिर क्रोध, शिकायत आदि पर खर्च कि जाने
वाली उर्जा का इस्तेमाल जीवन को बेहतर बनाने के लिए कर सकते है।
क्षमा एक ऐसी औषधी है, जो गहराई तक जाकर घावों का इलाज करती है। क्षमा न करने से महत्वपुर्ण हार्मोन का बनना बंद हो जाता है। संक्रमण और अन्य शारीरिक बिमारिओं
जैसे मौसमी सर्दी, जुकाम आदि बिमारिओं से लडनेवाली कोशिकाओ को भी बाधा पहुंचती है।
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Vivek Surange
कुरुक्षेत्र युद्ध के 16वें दिन यह कहा गया था कि सातों ग्रह, सूर्य से दूर जा रहे हैं, चूंकि राहु और केतु जिनके पास शरीर नहीं सिर्फ परछाई है, को नजरअंदाज
किया जा सकता है
आज बस इतना ही...
धन्यवाद।
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