मित्रों।
बृहस्पतिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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वक़्त चलता रहा मगर ,
तेरी यादें ठहर गयी इस दिल में
फिर वो हसीं चेहरा सामने आया
तेरा ज़िक्र जब आया महफ़िल में
तम्मनायओं के फूल सूख चुके थे
मेरी दिल की किताब में
फिर दिल की कली खिल उठी
जब तेरी सूरत नज़र आई...
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अब रंग श्वेत है... !!
आस की जलती लौ...
और आंसुओं के सहारे...
कितने मोड़ यूँ ही कर लिए गए पार...
हर बार अदृश्य शक्तियों द्वारा
थाम ली गयी पतवार...
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आईना जिंदगी का
[गीत]
यह मन तो मेरा पगला है
पर आईना वो जिंदगी का ...
डूब जाता है कभी तो
वो भावनाओं के समन्दर में
उमड़ उमड़ आता है प्यार कोई
अंत नही नफरत का ...
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सिर्फ तुम्हारे लिये लिखती हूँ....
जब भी कभी मैं अपनी
प्रकाशित, कविताओं को देखती हूँ...
तो मन में इक अजीब सी हलचल सी होती है...
सोचती हूँ कि..
कभी जो पंक्तिया इक कागज में,
लिख कर तुम्हे छुपा कर,
तुम्हे दिया करती थी....
आज वो अखबारों के पेज में होती है...
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हार जीत होती नहीं
हार जीत होती नहीं, यह मन का विज्ञान।
प्रेम पथिक कब सोचते, नफा और नुकसान।।
अक्सर उसके नैन से, चलते रहते बाण।
घायल मीठे दर्द से, फिर भी मन को त्राण...
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पोस्ट क्रमांक - २ -:-
मेरा गाँव
मेरा गाँव मोहनपुर, कालीन नगरी भदोही जनपद क एक छूता सा गाँव है, क्षेत्रफल की दृष्टी से यह बदतो नहीं है, लेकिन जनसँख्या की दृष्टी से बड़ा है | लेकिन आब नहीं रहा क्योकी आधी से ज्यादा आबादी तो रोजगार की आशा में मुंबई जैसे महानगरो की और पलायन कर चुका है | गाँव के बीचोबीच ही सारी आबादी बसी हुई है और चारो तरफ खेत-खलिहान ऐसे लगते है मानो खुले आसमान के बिच सूरज अपनी छठा बिखेर रहा हो | बाग़-बगीचो के नाम पर कई है, जहाँ अब भी गर्मी के मौसम में आम के पेड़ के निचे कई बच्चे जमा हो जाते है, और दोपहर तो वही ख़त्म होती है | हमारा गाँव भी भारत की ही तरह आर्थीक विषमता का शिकार है...
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शब्द सँभारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,
एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव।
दरिद्रता छीन लेते हैं शब्द।
मारक ही नहीं है बोधक भी हैं।
ram ram bhai
एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव।
दरिद्रता छीन लेते हैं शब्द।
मारक ही नहीं है बोधक भी हैं।
ram ram bhai
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गैरसैण विधानसभा सत्र का औचित्य
दिनेश चन्द्र जोशी
लेखक; कवि साहित्यकार, देहरादून
फिलवक्त तक उत्तराखंड की काल्पनिक राजधानी गैरसैण में विधानसभा के सत्र को आयोजित करने का हो हल्ला बड़े जोर ,शोर से चल रहा है। बिजली, पानी, आवास,सड़क, चमक दमक ,हाल ,माईक ,सजावट ,सोफे, कालीन ,बुके फूलमाला, गाडि़यों ,मिनरल वाटर , भोज, डिनर की व्यवस्था बाकायदा कार्यदल बना कर हो रही है। इस कार्य हेतु करोड़ों से कम बजट क्या लगेगा। जनभावना के सम्मान हेतु इतना गंवा भी दिया तो कोई हर्ज नहीं। खबरों में यह दृश्य बड़ा ही उत्साहजनक व पर्व की तरह पेश किया जा रहा है और राज्य की भोली भावुक जनता को दिगभ्रमित किया जा रहा है। गैरसैण भौगोलिक रूप से ...
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यदि आज मैं मर जाऊँ
कुछ भी तो नहीं बदलना
सिवाय कुछ जिंदगियों के
जहाँ कुछ वक्त एक खालीपन उभरेगा
वो भी वक्त के साथ भर जाएगा
अक्सर मन में उठते
इस विचार से होती है जद्दोजहद
तो फिर जीवन का
आखिर क्या है औचित्य...
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