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मंगलवार, नवंबर 24, 2015

"रास्ते में इम्तहान होता जरूर है, भारत आगे बढ़ रहा है" (चर्चा-अंक 2170)

मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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किताबों की दुनिया - 114 

नीरज पर नीरज गोस्वामी 
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नही मिली ज़िंदगी मुकम्मल 

यहाँ इसे ढूँढ़ते सभी जन 

कहीं मिले ज़िंदगी 
कहीं ज़िंदगी तले मौत 
मिली किसी को हजार खुशियाँ 
कहीं मिली आज वेदना है 
नही मिली ज़िंदगी मुकम्मल यहाँ... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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जीवन की शाम 

जनम दिया पालन किया, की खुशियाँ कुर्बान 
बोझ वही माता पिता, कैसी यह संतान... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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"हार नहीं मानूँगा"


जब तक तन में प्राण रहेगा, हार नहीं माँनूगा।
कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा।।
टिक-टिक करती घड़ी, सूर्य-चन्दा चलते रहते हैं,
अपने मन की कथा-व्यथा को, कभी नहीं कहते हैं,
बिना वजह मैं कभी किसी से, रार नहीं ठाँनूगा।
 कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा... 
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ग़ज़ल 

"जमाखोरों का वतन में राज आया है"

जलाया खून है अपना, पसीना भी बहाया है।
कृषक ने अन्न खेतों में, परिश्रम से कमाया है।।

सुलगते जिसके दम से हैं, घरों में शान से चूल्हे,
उसी पालक को, साहूकार ने भिक्षुक बनाया है... 
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दोहे 

"चंचल चितवन नैन"

कह देतीं हैं सहज ही, सुख-दुख-करुणा-प्यार।
कुदरत ने हमको दिया, आँखों का उपहार।।
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आँखें नश्वर देह का, बेशकीमती अंग।
बिना रौशनी के लगे, सारा जग बेरंग।।
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नैनों से नैना मिले, मिल जाता चैन।
गैरों को अपना करें, चंचल चितवन नैन।।
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दुनिया में होती अलग, दो आँखों की रीत।
होती आँखें चार तो, बढ़ जाती है प्रीत।।
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पोथी में जिनका नहीं, कोई भी उल्लेख।
आँखें पढ़ना जानती, वो सारे अभिलेख।।
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माता पत्नी बहन से, करना जो व्यवहार।
आँखें ही पहचानतीं, रिश्तों का आकार।।
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सम्बन्धों में हो रहा, कहाँ-कहाँ व्यापार।
आँखों से होता प्रकट, घृणा और सत्कार।।

1 टिप्पणी:

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